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कपड़ा मिलों में हड़ताल के साथ फैला था मुंबई में अंडरवर्ल्ड, करीम लाला से लेकर डी-कंपनी तक, क्यों ये शहर बना रहा हेडक्वार्टर?

बाबा सिद्दीकी की हत्या के मामले में मुंबई पुलिस लगातार कई राज्यों में दबिश दे रही है. इस हाई प्रोफाइल मर्डर में लॉरेंस बिश्वोई गैंग का नाम खूब उछल रहा है. इस बीच ये खौफ भी बढ़ा कि क्या एक बार फिर से मुंबई में अंडरवर्ल्ड का राज चलेगा! करीम लाला से शुरू खौफ की कहानी में 60 के दशक में कई और नाम जुड़े. इसके बाद दशकों तक ऑर्गेनाइज्ड क्राइम फलता-फूलता रहा.

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मुंबई ऑर्गेनाइज्ड क्राइम के लिए आसान क्षेत्र बना रहा. (Photo- Getty Images)
मुंबई ऑर्गेनाइज्ड क्राइम के लिए आसान क्षेत्र बना रहा. (Photo- Getty Images)

मुंबई के बारे में कहा जाता है कि यहां कोई भूखा नहीं सोता. इसे मौकों का शहर भी कहा जाता रहा, लेकिन इसका दूसरा चेहरा भी है, जो कहीं ज्यादा खौफनाक है. मुंबई की बंदरगाह पर कुली का काम करने वाले हाजी मस्तान उर्फ सुल्तान मिर्जा ने छुटपुट तस्करी करते हुए गुंडों-बदमाशों का एक नेटवर्क खड़ा किया, जिसके इशारे पर पूरा शहर चलने लगा. मिर्जा के बाद उनके शागिर्द ने राजपाट संभाला. बीच-बीच में दूसरे डॉन भी एंट्री-एग्जिट करते रहे. 

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शनिवार रात बांद्रा की सड़क पर एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद एक बार फिर मुंबई अंडरवर्ल्ड पर चर्चा होने लगी. ये वारदात ऐसे समय पर हुई, जब माना जा रहा था कि मुंबई का अंडरवर्ल्ड दम तोड़ रहा है. लेकिन नहीं, दशकों पहले बनी जुर्म की दुनिया अब भी जिंदा है. जानते हैं, कब और कैसे सपनों के शहर पर अंडरवर्ल्ड का कब्जा हो गया. वो कौन से गैंगस्टर थे, जिनसे पूरी मुंबई कांपती थी. 

इसकी छुटपुट शुरुआत करीम लाला के साथ हो चुकी थी. अफगानिस्तान में जन्मे लाला तीस के दशक में मुंबई चले आए और मनी लैंडिंग के कारोबार से जुड़ गए. इस बीच लोगों से मिलते-जुलते दायरा बढ़ने लगा और जुआ-सट्टा में भी उनकी एंट्री हो गई. जल्द ही मुंबई के दक्षिणी हिस्से पर लाला के नाम का सिक्का चलने लगा. उनका पूरा गुट था, जिसे पठान गैंग कहा जाता था. जुआ-सट्टा से अवैध कारोबार तस्करी, वसूली और राजनैतिक संबंधों तक पहुंच गया. ये सब बेहद महीने ढंग से गुंथा हुआ था. 

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baba siddique murder mumbai underworld from karim lala to now lawrence bishnoi

दिलचस्प बात ये थी कि करीम लाला भले ही अपराधी था, लेकिन इमेज रॉबिनहुड की थी. गरीब तबके के लोग, खासकर अफगानिस्तान से आए लोग उनके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे. इसी तरह से शार्गिदों की फौज बनी. यही सिलसिला आगे चल पड़ा. 

करीम लाला के साथ भले ही मुंबई में अंडरवर्ल्ड ने दस्तक दी, लेकिन इसमें दहशत के साथ ग्लैमर का तड़का लगा, हाजी मस्तान के साथ. तीस के दशक में हाजी मस्तान के पिता मुंबई में पंक्चर की दुकान लगाया करते थे. उनके बेटे ने पोर्ट पर काम पकड़ लिया. तब विदेशों से मुंबई बंदरगाह पर खूब सामान आता. मस्तान ने वहीं कुली की नौकरी शुरू कर दी, जो जल्द ही तस्करी के काम में बदल गई. कुछ ही सालों में मस्तान को सारा शहर जानने लगा.

सफेद कपड़ों और सफेद मर्सिडीज में चलते मस्तान का अलग रुतबा था. कहा जाता है कि इस शख्स ने खुद कभी एक आदमी की जान नहीं ली, लेकिन तब भी इसके नाम पर कई बड़े-छोटे गुंडे कांपते. 

नामों के आने-जाने के बीच ही मुंबई में ग्रेट बाम्बे टैक्सटाइल स्ट्राइक हुई. अस्सी की शुरुआत में हुई हड़ताल के बाद कपड़ा उद्योग लगभग खत्म हो गया. इस बीच हजारों लोग एकदम से बेरोजगार हो गए. आर्थिक तंगी के दौर में युवाओं ने लोकल गैंग जॉइन करना शुरू कर दिया. ये लोकल गैंग असल में किसी न किसी बड़े डॉन से जुड़े होते. छोटे गुट स्थानीय स्तर पर, जबकि बड़े गुट बड़े लेवल पर वसूली करने लगे. अस्सी से नब्बे के बीच अंडरवर्ल्ड अवैध लेकिन एक पूरे कारोबार की तरह शहर के कोने-कोने में फैल चुका था. राजनेताओं से लेकर बॉलीवुड पर भी इनका दबदबा था. 

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हाजी मस्तान के बाद उनके चेला दाऊद इब्राहिम आ गया, जो अंडरवर्ल्ड को अलग ही लेवल पर ले गया. दाऊद की गैंग, जिसे डी-कंपनी के नाम से जाना जाता था, गोल्ड और इलेक्ट्रॉनिक्स की तस्करी से लेकर ड्रग सिंडिकेट चलाने तक का काम कर रही थी. लेकिन मुंबई ने डी कंपनी का खौफनाक चेहरा मार्च 1993 में देखा, जब स्टॉक एक्सचेंज से लेकर शहर के 12 इलाके बम धमाकों से दहल उठे. सीरियल ब्लास्ट में ढाई सौ से ज्यादा जानें गई थीं, जबकि लगभग हजार लोग घायल हुए थे.

इन हमलों के बाद दाऊद छिप गया. लेकिन जुर्म का कारोबार चलता रहा. इस बीच कई और चेहरे भी आए, जैसे छोटा राजन और अरुण गवली. कई बड़े गैंगस्टरों के बीच लड़ाइयां भी होती रहीं. बॉलीवुड से लेकर राजनीति में बड़े नामों के लिए जरूरी था कि उनके सिर पर इनमें से किसी न किसी हाथ रहे. 

ऑर्गेनाइज्ड क्राइम पर लगाम कसी साल 1997 में. उस साल अगस्त में गुलशन कुमार की हत्या में अंडरवर्ल्ड का हाथ पता लगने के बाद पुलिस समेत सारी जांच एजेंसियां एक्टिव हो गईं. धरपकड़ होने लगी.

दो ही सालों के भीतर पूरे राज्य में मकोका (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम ) लागू हो गया. ऑर्गेनाइज्ड क्राइम की कमर तोड़ने के लिए बना ये कानून मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद और इसी तरह के दूसरे गंभीर अपराधों को खत्म करने के लिए आया. इसके तहत पुलिस को काफी छूट दी गई. साथ ही खुफिया एजेंसियों के साथ महाराष्ट्र पुलिस का तालमेल बढ़ा. इस दौर में कई एनकाउंटर हुए और लगने लगा कि मुंबई में अंडरवर्ल्ड खत्म न सही, लेकिन बहुत कमजोर हो चुका है. हालांकि बाबा सिद्दीकी की हत्या से एक बार फिर खाली जगह भरती दिख रही है. 

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लॉरेंस बिश्नोई गैंगस्टरों की नई पौध है, जिसका हेडक्वार्टर मुंबई नहीं, बल्कि उसके लोग दूसरे राज्यों में हैं. साल 2022 में पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या से चर्चा में आया लॉरेंस गैंग हाईटेक है और उसे पकड़ा जाना उतना आसान नहीं. लॉरेंस फिलहाल गुजरात की साबरमती जेल में बंद है, लेकिन कथित तौर पर वो जेल से ही अपना कामकाज चला रहा है. 

मुंबई में क्यों फलता-फूलता रहा अंडरवर्ल्ड

इसकी कई वजहें हैं. सबसे बड़ी बात, ये देश का इकनॉमिक कैपिटल है, जहां पैसों की आवाजाही होती रही. दूसरा- मुंबई का समुद्री किनारा इसे इंटरनेशनल तस्करी के लिए आसान बना देता है. बॉलीवुड के चलते इस शहर पर मीडिया की नजरें हरदम बनी रहती हैं. इससे अंडरवर्ल्ड के लिए अपनी इमेज बनाना और चमकाना बहुत आसान है. 

लेकिन बॉलीवुड क्यों इससे जुड़ा रहा!

इसके पीछे भी दोनों पक्षों का स्वार्थ था. फिल्में बनाने में भारी पैसे लगते हैं. बहुत से निर्माता बैंक से लोन नहीं ले पाते थे. अंडरवर्ल्ड के पास ब्लैक मनी का भंडार होता. वे मूवीज में इसे लगाते, जिससे मुनाफे का बड़ा हिस्सा उन्हें भी मिलता था. इससे फिल्म बनाने वालों को आसान फंडिंग मिलने लगी और अंडरवर्ल्ड का दबदबा भी बढ़ता गया. यहां तक कि डी कंपनी और छोटा राजन के बारे में कहा जाता है कि वे फिल्मों के लिए एक्टर-एक्ट्रेस का नाम भी खुद सुझाते थे. नब्बे के दौर में कई फिल्में बनीं, जो गैंगस्टरों को दुखियारा रॉबिनहुड दिखाती थीं. 

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