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क्या है BKI, जिसने पंजाब में हालिया ब्लास्ट की ली जिम्मेदारी, और कौन-कौन से अलगाववादी समूह सक्रिय?

सोमवार रात पंजाब के गुरदासपुर में एक ब्लास्ट हुआ, जिसकी जिम्मेदारी बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने ली. एजेंसियां फिलहाल मामले की जांच कर रही हैं. वैसे बब्बर खालसा सत्तर के दशक में बना खालिस्तानी चरमपंथी गुट है, जो अपनी मांगें मनवाने के लिए अक्सर ही धमाकों और हत्याओं का सहारा लेता रहा.

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पंजाब में कई चरमपंथी समूह लंबे समय से काम कर रहे हैं. (Photo- Getty Images)
पंजाब में कई चरमपंथी समूह लंबे समय से काम कर रहे हैं. (Photo- Getty Images)

पंजाब में अलगाववाद की मांग के बीच सोमवार रात एक धमाका हुआ. ब्लास्ट वैसे तो लो-इंटेंसिटी था, जिसमें किसी नुकसान की खबर नहीं आई. इस बीच बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) ने सोशल मीडिया पर पंजाबी में एक पोस्ट करते हुए घटना की जिम्मेदारी ली. कई देशों में एक्टिव ये गुट खालिस्तान के नाम पर आतंकी गतिविधियां करता रहता है. यही वजह है कि इस समेत कई गुट देश में आतंकवादी संगठन करार दिए जा चुके. 

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यहां कई सवाल आते हैं. जैसे हमले के बाद आतंकी या चरमपंथी गुट क्यों उसकी जिम्मेदारी लेते हैं, जबकि पहचान छिपाए रखने पर वे साफ बच सकते हैं? साथ ही, अलगाववाद की मांग के साथ पंजाब से कौन-कौन से संगठन कहां-कहां सक्रिय हैं?

सबसे पहले जानते हैं, ताजा घटना के बारे में. 17 फरवरी की रात गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक इलाके में एक पुलिस कर्मी के घर के पास ब्लास्ट हुआ. आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने इसका जिम्मा लेते हुए लिखा कि उन्होंने संबंधित पुलिस वाले की कथित बदसलूकी के खिलाफ ये ब्लास्ट किया. पोस्ट में धमकी दी गई कि जल्द ही बड़ा एक्शन होगा, जिसका टारगेट पुलिस अधिकारी होंगे. गुरदासपुर में बीते साल भी कई धमाके हुए, जिनकी जिम्मेदारी किसी न किसी खालिस्तानी गुट ने ली. 

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क्या है बीकेआई का इतिहास

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बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) एक चरमपंथी समूह है, जो साल 1978 में बना था. खालिस्तान को लेकर बने इस गुट को मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स ने टैररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन्स की लिस्ट में सबसे ऊपर रखा है. इसकी ताकत और असर का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि नब्बे के दशक में जब चरमपंथ को रोकने का अभियान चला और साल 1993 में पाकिस्तान या विदेशी शक्तियों की मदद से चल रहे ऐसे तमाम समूह खत्म हो गए, तब भी जो बचे-खुचे संगठन थे, उनमें बीकेआई एक था. साउथ एशिया टैररिज्म पोर्टल में इसे सबसे संगठित और खतरनाक समूहों में रखा गया है. 

ये गुट फिलहाल कनाडा, यूके, यूएस के अलावा कई यूरोपियन देशों जैसे जर्मनी, फ्रांस और स्विटजरलैंड से भी संचालित हो रहा है. वाधवा सिंह इसका वर्तमान लीडर है जो कथित तौर पर पाकिस्तान में छिपा हुआ है. मेहाल सिंह डिप्टी चीफ है. इसके भी पाकिस्तान में शरण ली हुई है. ये दोनों उन 20 आतंकियों में से हैं, जिनके प्रत्यर्पण की भारत लगातार मांग करता रहा. 

कई और अलगाववादी गुट ऑपरेट हो रहे

बब्बर खालसा के अलावा कई और अलगाववादी समूह पंजाब समेत दुनिया के कई देशों से ऑपरेट कर रहे हैं. इनमें सिख फॉर जस्टिस का नाम लगातार आता रहा. अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट के तहत आतंकी घोषित हो चुके और बैन किए जा चुके समूह का लीडर गुरपतवंत सिंह पन्नू है, जो अमेरिका में शरण लिए हुए है. वो लगातार बड़ी गतिविधियां करता रहा और आएदिन सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयान भी देता है. इन दोनों के अलावा भी खालिस्तान लिबरेशन फोर्स, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, खालिस्तान टाइगर फोर्स जैसे कई गुट हैं जो सक्रिय हैं. 

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babbar khalsa international khalistan movement punjab trrroirst activities photo AFP

अक्सर किसी धमाके या हमले के बाद कोई न कोई आतंकी संगठन इसकी जिम्मेदारी ले लेता है. इसके अलग-अलग तरीके हैं. कोई सोशल मीडिया पर पोस्ट डालता है, तो कोई बाकायदा वीडियो जारी करता है. कई बार ये भी होता है कि कोई दूसरा समूह उत्पात मचाकर दूसरे का नाम ले ले. कई बार ऐसी फेक न्यूज भी आती है. तो हर आतंकी संगठन ने अपना पैटर्न तय कर रखा है कि वो किस तरीके से अपने हमले की जिम्मेदारी लेगा, ताकि कोई उसके नाम से फेक बातें न फैलाए.

ये आतंकी संगठन हैं, जिनका काम ही झूठ और कत्लेआम मचाना है. फिर हमले के बाद ये लोग सच क्यों बोलते हैं? 

इसकी भी वजह है. फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज के अनुसार टैररिस्ट ग्रुप्स के लिए ये वैसा ही है, जैसा किसी कंपनी के लिए साल के आखिर में अपना प्रॉफिट गिनाना. वे इसे अपनी उपलब्धि की तरह देखते हैं. अगर कोई समूह बताएगा कि उसने फलाने बड़े देश में बड़ा धमाका कर दिया, तो बाकी जगहों पर उसका खौफ बढ़ जाएगा. सरकारें भी उससे डरेंगी और चाहेंगी कि कहीं न कहीं नेगोशिएट हो जाए.

फंडिंग आसान हो जाती है 

इससे उन्हें एक फायदा ये भी होता है कि एक जैसी सोच वाले छोटे समूह भी उससे मिल जाते हैं. इससे ताकत और बढ़ती है. फंडिंग मिलने में भी इससे आसानी होती है. समान एजेंडा वाले ग्रुप, जो बाहर से सफेदपोश होते हैं, वे ऐसे संगठनों को पैसे देते हैं. इससे ब्लैक मनी भी नहीं दिखती और काम भी बन जाता है. जैसे मान लीजिए कि इस्लामिक स्टेट को हथियार खरीदने या मिलिटेंट्स की ट्रेनिंग के लिए पैसे चाहिए, तो इसमें मदद तभी मिलेगी, जब वे खुद को आतंक की दुनिया में स्थापित कर लें.

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