तालिबान के आने के बाद से अफगानिस्तान एक बार फिर पुराने पुराने रंग-ढंग अपना रहा है. इस बीच बच्चा बाजी नाम की परंपरा भी तेजी से बढ़ी. इसमें किशोर या उससे भी छोटी उम्र के बच्चों को ताकतवर तालिबानी लोग अपने मनबहलाव के लिए खरीदते हैं. उन्हें डांस की ट्रेनिंग दी जाती है. जिसके बाद शोषण का दौर शुरू हो जाता है.
अफगानिस्तान में लंबे समय तक रह चुकी स्पेशल अमेरिकी फोर्स भी इस कस्टम के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकी. यहां तक कि यूनाइटेड नेशन्स भी अफगानिस्तान के घरेलू मामलों से दूर रहता है.
क्या होता है इस कस्टम के तहत
बच्चा बाजी एक पर्शियन शब्द से उपजा है, जिसका मतलब है, बच्चों का खेल. इस प्रैक्टिस के तहत 8 साल से ज्यादा और 16 साल से कम उम्र के लड़कों को यौन गुलाम बनाकर रखा जाता है. इसे बच्चा बरीश भी कहते हैं, यानी वो बच्चा जिसकी दाढ़ी न आई हो, वो इसका मेन कैरेक्टर होता है. बच्चों की जब दाढ़ी आने लगती है, तब उन्हें वापस छोड़ दिया जाता है,
क्या होता है छोड़े हुए बच्चों के साथ
कुछ सालों के भीतर ज्यादातर बच्चे कम उम्र में यौन बीमारियों के शिकार हो चुके होते हैं, या फिर नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं. ऐसे बच्चों को उनका परिवार भी नहीं अपनाता. कुल मिलाकर, एक बार बच्चा बाजी में आ चुके लड़कों के लिए सोसायटी में कोई जगह नहीं रह जाती, सिवाय इसके कि वे नशे के कारोबार में आ जाएं, या फिर छिपकर यौन सर्विस देते रहें. कई बार ये तालिबानी सेना में भर्ती हो जाते हैं.
कहां से आते हैं ये बच्चे
आमतौर पर ये गरीब घरों से होते हैं. तालिबान सैनिक या अफसर बढ़िया खाने और पढ़ाई का वादा करके उन्हें उनके पेरेंट्स से खरीद लाते हैं, और इस काम में डाल देते हैं. पेरेंट्स अगर इसके लिए राजी न हों तो उन्हें डरा-धमकाकर भी ऐसा किया जाता है, या फिर बच्चों को अगवा भी किया जा सकता है. अगर एक बार तालिबानी मिलिटेंट टारगेट कर लें तो परिवार के पास अपने लड़के को बचाने का कोई रास्ता नहीं बच जाता.
कैसे हुई प्रथा की शुरुआत
19वीं सदी में अफगानिस्तान में हैजा फैला. तब वहां के चरमपंथियों ने कहना शुरू किया कि चूंकि औरतें डांस-गाना जैसी एक्टिविटी करती हैं इसलिए ही ऊपरवाले का कहर बीमारी बनकर आया. औरतों के सार्वजनिक डांस पर पाबंदी लग गई. तभी मनबहलाव के लिए अफगानी पुरुषों ने एक नया तरीका निकाला. वे छोटी उम्र के लड़कों को टारगेट करने लगे.
महिला डांसरों की तरह मेकअप की ट्रेनिंग
बच्चों को डांस सिखाया जाने लगा. साथ ही उन्हें सजने-संवरने की ट्रेनिंग मिलने लगी. वे किसी महिला डांसर की तरह सजते. सिल्क के कपड़े पहनते और नंगे पांव डांस करते. ऐसे बच्चों के बाल सामने से छिले होते, जबकि पीछे की तरफ महिलाओं की तरह लंबे रखे होते. साथ ही भौंहों को बेहद काले रंग से रंगा जाता था. ये मेकअप इनकी पहचान बन गया.
90 के दशक में खुद तालिबान ने लगाया था बैन
तालिबान से पहले भी अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों में बच्चा बाजी का चलन रहा. हालांकि नब्बे के दशक में तालिबान ने इसे होमोसेक्सुएल मानते हुए इसपर पाबंदी लगा थी, लेकिन आगे चलकर उसके मिलिटेंट खुद इससे जुड़ते चले गए. ये ताकतवर मुजाहिदीन थे, जो अफगान सरकार में बड़ा रुतबा रखते. चूंकि महिलाओं को घर में रखने का चलन था, और होमोसेक्सुअलिटी बैन थी, लिहाजा मनोरंजन के नाम पर छोटे लड़के शिकार बनने लगे.
अमेरिकी सेना भी दखलंदाजी से बचती रही
साल 2001 से अफगानिस्तान में अमेरिकी स्पेशल फोर्स तैनात हो गई. शुरुआत में फोर्स के लोग इसका विरोध करते, लेकिन फिर साफ हो गया कि उन्हें इसमें दखल नहीं देना है. कई इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दखल देने वाले लोगों को सेना से हटाया जाने लगा. अमेरिका का इरादा साफ था, वो आतंक को खत्म करना चाहता था, लेकिन अफगान के डोमेस्टिक झंझट से दूर रहते हुए. ये कुछ वैसा ही है, जैसा ब्रिटिश हुकूमत के दौरान अंग्रेजों के साथ था. वे कुप्रथाएं देखकर भी उनपर रोक नहीं लगाते थे.
ऐसे उछला पहला मामला
काफी हिदायतों के बाद भी अमेरिकी फोर्स के एक अधिकारी ने अफगान नेशनल पुलिस (ANP) के एक अफसर की पिटाई कर दी क्योंकि उसने एक छोटे लड़के को सेक्स स्लेव बना रखा था. इसके बाद मामले ने तूल पकड़ लिया और पहली बार बच्चा बाजी की खुलकर आलोचना होने लगी.
जांच के लिए बनी कमेटी
अपनी इमेज ठीक करने के लिए अफगानिस्तान ने इसपर जांच कमेटी भी बिठाई. स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन की अगुआई में कमेटी ने रिपोर्ट जारी की, जिसमें माना गया कि बच्चा बाजी सीधे बाल यौन शोषण से जुड़ा हुआ है. उसने लंबा-चौड़ा डेटा भी दिया कि कितने बच्चे इस दौरान शोषण का शिकार हुए.
इसके खिलाफ कानून भी है
मई 2017 में बच्चा बाजी को अवैध घोषित किया गया. अफगान कानून के तहत इसपर 7 साल की कैद तय हुई, लेकिन ऐसे मामले अनरिपोर्टेड ही रहे. यूनाइटेड नेशन्स भी इस मामले में हाथ डालने से बचता रहा. यूएन सिक्योरिटी काउंसिल ने इसी साल फरवरी में इसपर बात की. चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कन्फ्लिक्ट के नाम से एक रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें माना गया कि बच्चों का शोषण लगातार बढ़ा है, लेकिन फिलहाल तक इसपर कोई सख्त एक्शन नहीं लिया गया, सिवाय अपील करने के. मानवाधिकार संस्थाओं का मानना है कि सिक्योरिटी काउंसिल अगर चाहे तो ही कुछ हो सकता है, लेकिन वो सीधे-सीधे एक देश से दुश्मनी लेने से बच रही है.
फिलहाल तालिबान-शासित अफगानिस्तान में होमोसेक्सुअलिटी पर कड़ी सजा है, इसके बाद भी रह-रहकर बच्चा-बाजी के मामले उठ जाते हैं.