भारत से अलगाव के बाद पाकिस्तान से बांग्लादेश तो बना, लेकिन अब भी उसके भीतर कई अलगाववादी आंदोलन फल-फूल रहे हैं. इनमें आजाद बलूचिस्तान की डिमांग सबसे ज्यादा है. अफगानिस्तान से सटे हुए इस प्रांत के लोगों का कहना है कि पाकिस्तान ने हमेशा उससे भेदभाव किया. उन्हें पाकिस्तान सरकार में तो पीछे रखा ही गया, अब मामला कथित तौर पर बलूच लोगों को मारने या उन्हें गायब करने तक पहुंच गया है.
फिलहाल क्यों उबल रहे बलोच
ताजा प्रोटेस्ट बलूच युवक बालाच मोला बख्श की पुलिस हिरासत में हत्या के बाद शुरू हुए. बख्श को नवंबर में आतंकवाद निरोधक पुलिस साथ ले गई. पुलिस का कहना था कि उसे विस्फोटकों के साथ पाया गया. महीनेभर हिरासत में रहने के बाद युवक की मौत हो गई. इधर परिवार का कहना है कि मृतक आतंकी नहीं, बल्कि बलूच प्रोटेस्टर था. इस बीच कथित तौर पर पुलिस ज्यादती से कई और मौतें हुईं.
इसी बात को लेकर जनवरी की शुरुआत में 'शटर डाउन स्ट्राइक' हुई. अब मामला देश से आगे जा चुका. कुछ समय पहले कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवर उल हक काकर ने बलूच लोगों को टैररिस्ट कह दिया. इससे गुस्सा और भड़क गया. हाल में बलूच समर्थकों ने अमेरिका में वाइट हाउस के बाहर भी प्रदर्शन किए. वे लगातार अपने लोगों की मौत या उनके गायब होने का आरोप लगा रहे हैं.
क्यों चाहते हैं आजादी
- बलूचिस्तान के पास पूरे देश का 40% से ज्यादा गैस प्रोडक्शन होता है. ये सूबा कॉपर, गोल्ड से भी समृद्ध है. पाकिस्तान इसका फायदा तो लेता है, लेकिन बलूचिस्तान की इकनॉमी खराब ही रही.
- बलूच लोगों की भाषा और कल्चर बाकी पाकिस्तान से अलग है. वे बलूची भाषा बोलते हैं, जबकि पाकिस्तान में उर्दू और उर्दू मिली पंजाबी चलती है. बलूचियों को डर है कि पाकिस्तान उनकी भाषा भी खत्म कर देगा, जैसी कोशिश वो बांग्लादेश के साथ कर चुका.
- सबसे बड़ा प्रांत होने के बावजूद इस्लामाबाद की राजनीति और मिलिट्री में इनकी जगह नहीं के बराबर है.
- पाक सरकार पर बलूच ह्यूमन राइट्स को खत्म करने का आरोप लगाते रहे. बलूचिस्तान के सपोर्टर अक्सर गायब हो जाते हैं, या फिर एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग के शिकार बनते हैं.
- उनके गुस्से को हवा मिली, जब साल 2006 में मौजूदा सरकार उनके कबीलाई सिस्टम को ध्वस्त करने लगी.
कौन-कौन से संगठन कर रहे आजादी की मांग
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) की आवाज सबसे ज्यादा सुनाई देती है. पहले वे शांति से अलगाव की मांग करते रहे. बीते कुछ दशकों से आंदोलन हिंसक हो चुका. पाकिस्तान सरकार ने बलूच इलाके में स्थिति खदानों को चीनियों को लीज पर दे रखा है. इसपर भड़के हुए बलूच प्रोटेस्टर बम धमाके भी करते रहते हैं. पाकिस्तान ने साल 2006 में ही BLA को आतंकी गुट कह दिया. बलोच लिबरेशन फ्रंट, बलोच रिपब्लिकन आर्मी और लश्कर-ए-बलूचिस्तान जैसे कई गुट हैं, जो बलूचिस्तान की आजादी चाह रहे हैं.
पाकिस्तान को शक है कि आजाद बलूचिस्तान आंदोलन को पड़ोसी देशों से सपोर्ट मिल रहा है. उसका सबसे ज्यादा संदेह अफगानिस्तान पर है. खासकर तालिबान पर. तीन साल पहले तालिबान के आने के बाद से पाकिस्तान में आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ीं. पाकिस्तान में ही तहरीक-ए-तालिबान (TTP) गुट है. इसका बलूच गुटों से अच्छा संबंध रहा. पाकिस्तान कई बार आरोप लगा चुका कि TTP ही बलूच लड़ाकों को ट्रेनिंग दे रहा है.
कब ऊंचा होने लगा ग्राफ?
पाकिस्तान में बलूचिस्तान की मांग को लेकर कई चरमपंथी गुट खड़े हो गए. उनके पास संसाधन कम थे. ऐसे में लंबी ट्रेनिंग देकर लड़ाकों को मजबूत बनाने का वक्त नहीं था. ये डर भी था कि अगर ब्लास्ट में शामिल लोग पकड़े जाएं तो सरकार गुट के अंदर तक पहुंच सकती है. इसी डर से बचने के लिए सुसाइड बॉम्बिंग को बढ़ावा मिला. कथित तौर पर इसके लिए तालिबानी गुट TTP ट्रेनिंग देता, और मदद करता है.
किन जगहों पर फोकस
बॉर्डर पर आत्मघाती हमले ज्यादा हो रहे हैं. ये पोरस होते हैं, जहां से आतंकी आराम से यहां-वहां हो सकते हैं. इसके अलावा सीमा को कमजोर करने पर सरकार पर सीधा असर होता है. शहरी इलाकों में मस्जिद या बाजार सॉफ्ट टारगेट बनते हैं.
पाकिस्तान में कई और सेपरेटिस्ट मूवमेंट भी हैं
- साठ के दशक से यहां अलग सिंधुदेश की मांग जोर पकड़ने लगी. इन्हें उर्दू भाषा से एतराज है.
- गिलगित-बाल्टिस्तान वाले बलवारिस्तान की डिमांड करते आए हैं. बलवारिस्तान यानी ऊंचाइयों का देश क्योंकि ये पूरा इलाका ही पहाड़ी है.
- अफगानिस्तान में तालिबान आने के बाद से पाकिस्तान का डर और बढ़ा क्योंकि यहां मौजूद पश्तून आबादी अफगानिस्तान का हिस्सा बनने की बात करती आई है. अगर ऐसा हुआ तो लगभग पूरा खैबर पख्तूनख्वा अलग हो जाएगा.