शरणार्थियों का मुद्दा पूरी दुनिया में लगातार गरमा रहा है. बीते दिनों फ्रांस में हुई आगजनी के बाद यूरोपियन देश रिफ्यूजियों से कन्नी काटते दिखे. उन्हें कहीं न कहीं ये लगने लगा है कि हिंसा-प्रभावित जगहों से आए शरणार्थी यूरोप को अपना नहीं पाते, बल्कि वहां भी हिंसक वारदातें करते रहते हैं. वहीं वर्ल्ड के सबसे बड़े रिफ्यूजी कैंप कॉक्स बाजार में अलग ही हलचल मची हुई है. बांग्लादेश में बने इस कैंप में शरणार्थी इतने ज्यादा हो गए हैं कि वहां की सरकार उन्हें वापस म्यांमार लौटाने की सोच रही है.
कौन हैं रोहिंग्या और क्यों भागे म्यांमार से?
ये सुन्नी मुस्लिम हैं, जो म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहते आए थे. बौद्ध आबादी वाले म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम माइनॉरिटी में हैं. इनकी आबादी 10 लाख से कुछ ज्यादा बताई जाती रही. लगातार सैन्य शासन के बाद थोड़े स्थिर हुए इस देश में जनगणना के दौरान रोहिंग्याओं को शामिल नहीं किया गया. कहा गया कि वे बांग्लादेश से यहां जबरन चले आए और उन्हें लौट जाना चाहिए.
बौद्ध आबादी के बीच मुस्लिमों को लेकर गुस्सा तब और भड़का जब रोहिंग्याओं ने एक युवा बौद्ध महिला की बलात्कार के बाद हत्या कर दी. इसके बाद से सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई और रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से खदेड़े जाने लगे. साल 2017 में नरसंहार के बीच बड़ी संख्या में ये लोग भागकर बांग्लादेश पहुंच गए.
बांग्लादेश में बसे सबसे ज्यादा रोहिंग्या
इसी साल पूरे 7 वर्ष हो जाएंगे, जब लाखों रोहिंग्या मुस्लिम जान बचाने के लिए पड़ोसी देश बांग्लादेश आए. बांग्लादेश खुद आर्थिक तौर पर काफी मजबूत नहीं है, लेकिन मानवीय आधार पर वो शरणार्थियों को अपने यहां बसाने के लिए तैयार हो गया. इसमें बड़ा हाथ यूएन का भी था. उसने और कई दूसरी इंटरनेशनल संस्थाओं ने बांग्लादेश को काफी मदद देने का वादा किया.
बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी तट कॉक्स बाजार में शरणार्थियों को बसाया जाने लगा. बंगाल की खाड़ी के इस लंबे समुद्री तट में शेल्टर बनने लगे. सरकार के रिफ्यूजी रिलीफ एंड रीपेट्रिएशन कमीशन के अनुसार, कॉक्स बाजार एरिया में 1 लाख 20 हजार से ज्यादा शेल्टर बने. दुनिया में खूब वाहवाही तो हुई, लेकिन देश के अपने भीतर तनाव बढ़ने लगा. रोजगार और जगह की कमी की बात होने लगी. स्थानीय लोग ये तक आरोप लगाने लगे कि कॉक्स बाजार में रहते लोगों की वजह से मानव तस्करी, नशा जैसी चीजें बढ़ रही हैं.
अब रोंहिग्याज को भेजने की बात हो रही है
ऑफिस ऑफ यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार नवंबर 2017 में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एग्रीमेंट साइन हुआ. इसके तहत रोहिंग्या रिफ्यूजी धीरे-धीरे करके वापस अपने देश भेज दिए जाएंगे. कहा गया कि वहां उन्हें राखाइन प्रांत में बसाया जाएगा और रोजगार भी दिया जाएगा. लेकिन रिफ्यूजी वहां जाने से इनकार कर रहे हैं.
एक खास इलाके को उनके लिए तैयार किया जा रहा
राखाइन प्रांत म्यांमार का वो हिस्सा है, जहां पहले भी रोहिंग्या रहा करते थे. यूनाइटेड नेशन्स के अनुसार, इसी हिस्से में 15 नए गांव बसाए गए. ये एक डेजिगनेटेड एरिया होगा, जहां उन्हें रहना है, मतलब रोंहिग्या इस इलाके से बाहर आ-जा नहीं सकते. ये एक तरह का डिटेंशन कैंप होगा, जिसे लेकर रोहिंग्या डरे हुए हैं. वे मान रहे हैं कि वहां जाने के बाद वे बंधक हो जाएंगे. इससे पहले वे एक शहर में रखे जाएंगे, जहां ट्रांजिट और रिसेप्शन होगा. मतलब इसी जगह पर वे बांग्लादेश से छोड़े और म्यांमार में अपनाए जाएंगे.
दोनों देशों के बीच इस एग्रीमेंट को कुछ इस तरह से दिखाया जा रहा है कि ये म्यांमार की अपनी भूल सुधारने की कोशिश है. हालांकि न तो शरणार्थी वापस जाने को तैयार हैं, न ही मानवाधिकार संस्थाएं इसे ठीक मान रही हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल का मानना है कि अगर इतनी जल्दी रोहिंग्या वापस लौटे तो म्यांमार के बौद्ध आक्रामक हो सकते हैं. साल 2017 में हुई हिंसा के बाद खुद रोहिंग्या वापस लौटने से बच रहे हैं. यही वजह है कि लंबे समय से योजना अटकी पड़ी है.
जबरदस्ती के लग रहे आरोप
अब कथित तौर पर ऐसे हालात बनाए जा रहे हैं, जिसमें परेशान होकर रोहिंग्या खुद ही बांग्लादेश से चले जाएं. जैसे उन्हें एक सुदूर समुद्री द्वीप पर भेजा जा रहा है, जो हमेशा तूफानों में घिरा रहता है. भाषण चार नाम के इस आइलैंड में साल 2021 के आखिर तक 20 हजार से ज्यादा शरणार्थी जबरन भेज दिए गए. इसपर भी यूएन ने काफी बात की थी. अब म्यांमार लौटाने के पायलेट प्रोजेक्ट को लेकर भी कहा जा रहा है कि कॉक्स बाजार में ऐसे लोगों को छांटा जा रहा है, जो कमजोर हों, जैसे अनाथ बच्चे, अकेली महिलाएं. चूंकि वे ज्यादा विरोध नहीं कर पाएंगे तो उन्हें पायलेट के लिए म्यांमार भेजा जा सकता है.