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'एक वक्त का खाना, पानी सप्लाई बंद...' हिंसा से झुलस रहे बांग्लादेश की हिंदू महिला की आपबीती

शेख हसीना के देश छोड़ते ही बांग्लादेश में हिंदुओं को निशाना बनाया जाने लगा. सांप्रदायिक हमलों की खबरों के बीच पंचगढ़ की मौसमी हमसे जुड़ीं. हिंदी-अंग्रेजी न समझ सकने वाली इस महिला ने वॉट्सएप पर बांग्ला में अपनी कहानी सुनाई, जिसका हिंदी तर्जुमा हम आपसे साझा कर रहे हैं.

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बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों पर हिंसा की खबरें आ रही हैं. (Photo- AFP)
बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों पर हिंसा की खबरें आ रही हैं. (Photo- AFP)

मैं या घर का कोई भी मेंबर पिछले एक हफ्ते से बाहर नहीं निकला. रसोई में सामान खत्म हो चुका. नमक के साथ चावल उबालकर देर दोपहर खाते हैं ताकि रात में भूख न लगे. फिर रात में पहरा देते हैं. पहले आदमी जागते थे. अब हमने भी पारी पकड़ ली. 'और आपके बच्चे?' मेरी बेटी आपके देश में ही है. सिलीगुड़ी में. फोन पर रोती है लेकिन हमें तसल्ली हैं. बेआसरा भले हो जाए, वो जिंदा तो रहेगी. 

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बांग्लादेश में आए राजनैतिक भूचाल का असर पार्लियामेंट तक नहीं रहा, ये आग आम घरों को भी झुलसा रहा है. हिंदू माइनोरिटी सॉफ्ट टारगेट है. घर-दुकान जलाए जा रहे हैं. मंदिर तोड़े जा रहे हैं. भीड़ की भीड़ उन बस्तियों पर हमला कर रही है, जहां हिंदू आबादी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 27 ऐसे जिले हैं, जहां अल्पसंख्यक ये सब झेल रहे हैं. लेकिन सबसे बुरी हालत है औरतों की.

मौसमी कहती हैं- जिसे अपना वतन मानकर रोपा-सींचा, वहां हमें घरेलू सामान की तरह लूटा जा रहा है. नोवाखली में, जहां मेरा मायका है, लूट के बाद कई घरों से लड़कियां भी गायब हो गईं. 

स्टूडेंट प्रोटेस्ट शुरू हुआ, तभी से सुगबुगाहट थी कि कुछ होने वाला है. मैं गांव का अपना घर छोड़कर शहर में किराए के घर में रहती हूं. मकान मालिक भी हिंदू हैं. वे भर-भरकर रसोई की जरूरत का सामान, दवाएं ला रहे थे. मेरे पति से भी कहा कि चीजें स्टॉक कर लो. माहौल बदलने वाला है. हमने सुनी-अनसुनी कर दी. दो दिन से वही लोग हमें चावल दे रहे हैं. नमक डालकर उबालते और एक टाइम खाते हैं. पीने के पानी की सप्लाई बंद हो चुकी. पानी छानकर या उबालकर पी रहे हैं. 

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bangladesh crisis after sheikh hasina resigns situation of minority women photo Reuters

हालात बिगड़ रहे हैं, इसका अंदाजा कब हुआ?

हफ्तेभर से डर था. दूर-दराज में छुटपुट मारपीट, लूट भी होने लगी लेकिन ये तो हमारे देश में रुटीन है. बूढ़ीगंगा नदी के जैसे ही ढाका का दिल भी बदलता रहता है. हमने सब्र कर लिया. तीन दिन पहले कॉल आया कि मेरे बाबा (पिता) की दवा दुकान लूटकर जला दी गई. बाबा खुद फोन पर थे. रोते हुए. वे कह रहे थे कि मुल्कपरस्ती का उन्हें ये बदला मिला. वे बार-बार हमें भी समय रहते भाग जाने को कह रहे थे.

बाबा बहुत ईमानदार थे. कभी गलत कीमत नहीं वसूली. मुस्लिम बस्ती के बीच उनकी दुकान थी. किसी को, आधी रात भी जरूरत पड़े तो दुकान खोलकर दवा दे देते. अब उनके पास न दुकान बाकी है. न हिम्मत. मैं चाहकर भी उन्हें तसल्ली देने नहीं जा सकती. अब तो फोन पर भी बात नहीं कर रहे. 

बहुत सारे घरों के पास यही कहानी है. चिन्ह लगा-लगाकर घर लूटे गए. मेरे एक रिश्तेदार के घर को आग लगा दी गई. वहां कई सारे गाय-बछड़े थे. दंगाई उन्हें खोलकर ले गए. सामान के साथ-साथ लड़कियां भी लूटी जा रही हैं. घरवाले बौराए से रो रहे हैं लेकिन पुलिस में रिपोर्ट के लिए करा रहे. सबकुछ उनका है. पुलिस भी. लड़की गई है तो क्या पता कल को लौट भी आए, जब उनका मन भर जाए. 

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bangladesh crisis after sheikh hasina resigns situation of minority women photo Reuters

क्या आपकी जान-पहचान में भी किसी के साथ ऐसा हुआ है?

देर तक चुप्पी के बाद जवाब आता है- हम सबके मोबाइल पर उनकी नजर है. ज्यादा कुछ नहीं बता सकती. छाती फट रही है, बस इतना समझ लीजिए. मैं खुद एक वकील थी लेकिन कोर्ट जाती तो साड़ी पर बुरका डालती थी. सालभर बाद भी किसी ने अपना केस नहीं दिया. टेबल पर आते और देख-देखकर चले जाते. फिर एक कंपनी से जुड़ गई. ये तब की बात है, जब माहौल हल्का था. अब जिंदा बचे तो भी शायद कभी काम न कर पाएंगे. कुछ साल रुकिए, हमारे यहां से भी अफगानिस्तान जैसी खबरें आएंगी. डॉक्टर-वकील औरतें रात-दिन खाना पकाती दिखेंगी. 

हमारे बीच ऑनलाइन ट्रांसलेटर की मदद से कई घंटों की चैट हुई. बीच-बीच में उनकी तरफ से लंबा ब्रेक आया. लौटने पर हल्के सॉरी के साथ कहती हैं- अभी पहरा देने की मेरी बारी थी. या पहरा दे रहे लोगों को कोई मदद चाहिए थी. 

फोन के उस पार से ढेर के ढेर वीडियो और तस्वीरें भी आती रहीं. दिल दहला देने वाली तस्वीरें. खून से सनी लाशें. धू-धू जलते घर. रोते-चीखते लोग. पूजा की जली हुई किताबें. एक तस्वीर अलग थी. पूछने पर रहती हैं- ये पंचगढ़ के लोग हैं. भारत जाने के लिए बॉर्डर तक पहुंचना चाह रहे हैं. लगभग 2 हजार लोग होंगे. 

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हर कोई भारत जाना चाहता है....मैं भी अगर मौका मिले. कुछ हिचकिचाती हुई आवाज आती है- बेटी सिलीगुड़ी में पढ़ रही है. उसके एडमिशन के लिए हम आपके वहां गए थे. पहली बार लगा कि क्यों हमारे पुरखे उसी पार नहीं बसे. दारुण कष्ट... वे बांग्ला में आधे-अधूरे वाक्य लिख रही हैं. 

बेटी के बारे में कुछ बताइए?

ज्यादा कुछ नहीं बता सकती. वो पढ़ रही है. थोड़े दिन पहले घर आने वाली थी. हमने रोक दिया कि इकट्ठे पूजा में आ जाना. अब लग रहा है कि कभी मिल नहीं सकेंगे. 

bangladesh crisis after sheikh hasina resigns situation of minority women photo AFP

कई खबरें ऐसी आ रही हैं कि मुस्लिम पड़ोसी हिंदुओं को सुरक्षा दे रहे हैं!

ये एक चेहरा है. दिखावे वाला. कई मुस्लिम संगठन मंदिरों के आगे डंडे-तलवार लेकर खड़े होंगे. फोटो खिंचवाएंगे. और फिर हट जाएंगे. ये सुरक्षा तब क्यों नहीं मिल रही, जब लोगों के घरों पर अटैक हो रहा है. तब कोई क्यों नहीं बचा रहा, जब सड़क चलते हिंदुओं को तलवार से काटा जा रहा है. हां. लेकिन आम मुसलमान खुद परेशान है कि उनके वतन का क्या होगा. वे डरे हुए हुए हैं कि कहीं बांग्लादेश भी पाकिस्तान या अफगानिस्तान न बन जाए. कई भले लोग चाहकर भी मदद नहीं कर पा रहे. डरे हुए हैं कि उन्होंने हमारी मदद की तो खुद घिर जाएंगे. 

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रात में हम बारी-बारी पहरा दे रहे हैं. पुरुष घर के बाहर गली में, और हम लोग घरों के भीतर. बिजली पूरे-पूरे दिन के लिए जाने लगी है. रात में दिया और टॉर्च के भरोसे रहते हैं. कल रात ही हमारे लोकल मंदिर को तोड़ने के लिए 50 लोगों की भीड़ आई थी. हमारे लोग ज्यादा थे. उन्हें खदेड़ दिया. लेकिन कितने वक्त तक, पता नहीं. 

हमारी बातचीत में उनकी आखिरी चैट है- मैं यहां मर-खप जाऊं तो क्या आप लोग मेरी बेटी को बचा लेंगे...! 

(मौजूदा खतरों के मद्देनजर महिला की पहचान छिपाई गई है.)

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