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भारत के अलावा कुछ ही देशों में है दहेज विरोधी कानून, कई देशों में ब्राइड मनी पर रोक के लिए बने नियम, क्या है वजह?

बेंगलुरु में अतुल सुभाष नाम के एक शख्स की खुदकुशी के बाद महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के गलत इस्तेमाल पर बहस हो रही है. मृतक ने लगभग सवा घंटे के वीडियो में बताया कि पत्नी समेत उनके परिवार ने अतुल पर दहेज उत्पीड़न का झूठा आरोप लगाया और उसे वापस लेने के लिए पैसों की डिमांड की.

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घरेलू हिंसा कानून के दुरुपयोग को लेकर एससी ने भी टिप्पणी की. (Photo- Reuters)
घरेलू हिंसा कानून के दुरुपयोग को लेकर एससी ने भी टिप्पणी की. (Photo- Reuters)

इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने देश में नई बहस छेड़ दी है. हमारे यहां दहेज और घरेलू हिंसा के खिलाफ कड़े कानून हैं, जो महिलाओं की सुरक्षा पक्की करते हैं. वहीं अतुल के मामले में यह दिख रहा है कि शायद इस कानून के चलते कई झूठे मामले भी दर्ज हो रहे हैं. खुद सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 498ए को लेकर कहा कि इसके गलत इस्तेमाल की प्रवृत्ति बढ़ रही है. यानी यह कानून अपने मकसद को पूरा भी नहीं कर सका कि उल्टा पड़ने लगा. 

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क्या है धारा 498ए

इसके तहत क्रूरता का मतलब है कोई भी ऐसा व्यवहार जिसे महिला को गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान हो, या उसके भीतर खुद को ही नुकसान पहुंचाने की इच्छा आ जाए, या फिर एक्सट्रीम तक जाकर उसने आत्महत्या कर ली हो. महिला से पैसों या कीमती चीजों की मांग करना, और उसे पूरा करने का दबाव बनाना भी इसी सेक्शन का हिस्सा है. गैरजमानती इस धारा में पुलिस बिना वारंट के भी पति या उसके परिवार को गिरफ्तार कर सकती है. कुल मिलाकर ये बहुत सख्त धारा थी, जिसका मकसद महिलाओं की सुरक्षा था. लेकिन इस सख्ती के साथ कई झोल होने की वजह से इसके गलत उपयोग की खबरें भी आने लगीं.

फिलहाल अतुल के मामले को भी इसी श्रेणी में रखा जा रहा है. अब आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) लागू हो चुकी है और इसमें धारा 498ए जैसे प्रावधान धारा 85 के तहत हैं लेकिन उनका भी निचोड़ वही है. 

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Bengaluru techie Atul Subhash suicide raise questions on domestic violence law india

भारत के अलावा और किन देशों में दहेज विरोधी कानून

- पाकिस्तान में भी शादी में लेनदेन की परंपरा है. इसे रोकने के लिए डावरी एंड ब्राइडल गिफ्ट्स रेस्ट्रिक्शन एक्ट 1976 है. 

- बांग्लादेश और नेपाल में भी दहेज का चलन है और इसके खिलाफ कानून भी है.  

- बाकी एशियाई देशों में शादी के समय तोहफों का लेनदेन तो होता है लेकिन दहेज का परंपरागत रूप नहीं.

ग्रीस में भी दहेज का इतिहास रहा. ये भारत की तर्ज पर ही था. अस्सी के दशक में वहां की तत्कालीन सरकार ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया. लेकिन अब भी परंपरागत तौर पर ये होता है, हालांकि दहेज के लिए हिंसा जैसे मामले वहां नहीं सुनाई देते. कई और मुस्लिम बहुल देशों जैसे तुर्की में भी लेनदेन हुआ करता था लेकिन चूंकि यहां मेहर भी दी जाती है इसलिए मांग के चलते मारपीट जैसी घटनाएं नहीं होतीं. या कम से कम खबरों में नहीं आतीं. 

इन देशों में चलता है ब्राइड प्राइस

दहेज के बारे में आमतौर पर माना जाता है कि ये पत्नी पक्ष की तरफ से पति या उसके परिवार को मिलता है लेकिन कई देशों में इससे ठीक उलट चलन भी है. जैसे अफ्रीका के ज्यादातर देशों में लोबोला नाम का कस्टम है. इसमें लड़की को फ्यूचर में बच्चों को जन्म देने या घर संभालने के लिए पहले से ही शुक्रिया बोला जाता है. इसके तहत शादी के दौरान वर पक्ष, लड़की वालों को तोहफे देता है. अक्सर ये पैसों के अलावा मवेशी या जरूरत की चीजें होती हैं. हालांकि इसका इतना दबाव बन गया कि ये दहेज की तरह ही परेशान करने लगा. 

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Bengaluru techie Atul Subhash suicide raise questions on domestic violence law india photo Getty Images

लोबोला पर कंट्रोल के लिए नियम

कई मामलों में लड़की पक्ष की मांग पूरी न कर पाने के चलते लड़के शादी ही नहीं कर पाते. या इसकी वजह से कर्ज लेना भी आम हो चुका था ताकि महंगे तोहफे दिए जा सकें. फिलहाल कई अफ्रीकी देश इसे रोकने के लिए कानून बना चुके. 

साउथ अफ्रीका में राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने पहल करते हुए एक लॉ पारित किया जो देखता है कि लोबोला में किसी भी पक्ष से जबर्दस्ती न हो. 

जिम्बाब्वे में लोबोला को कानूनी मान्यता दी गई है लेकिन साथ ही गाइइलाइन बन चुकी. 

युगांडा की अदालतों ने कहा है कि लोबोला शादी के लिए अनिवार्य नहीं और इसके लिए वर पक्ष से जबरदस्ती नहीं की जा सकती.

ये देश दे रहे घरेलू हिंसा पर पुरुषों को भी सुरक्षा

घरेलू हिंसा के मामलों में केवल महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी प्रताड़ित होते हैं. बढ़ते केसों को देखते हुए कई देशों ने पुरुषों के लिए भी कानून बनाए और उनका उसी सख्ती से पालन भी हो रहा है. इसमें स्वीडन, फिनलैंड और पोलैंड सबसे ऊपर हैं. यहां परेशान पुरुषों को न केवल लॉ की मदद मिलती है, बल्कि उन्हें काउंसलिंग और शेल्टर भी देने का नियम है. स्वीडन में न्यूट्रल लॉ है, जिसका नाम है डोमेस्टिक वायलेंस लेजिस्लेशन. इसमें पुरुष और महिला, दोनों के खिलाफ हिंसा शामिल हैं. 

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अमेरिका में वायलेंस अगेंस्ट वीमन एक्ट (वीएडब्ल्यूए) हुआ करता था, जो जाहिर तौर पर शुरुआत में महिलाओं के लिए ही था. बाद में इसके उलट मामले भी दिखने पर इस कानून में पुरुषों के लिए स्पेस बना दिया गया. वहां घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष भी सुरक्षा और कानूनी मदद मांग सकते हैं. कई स्टेट रिहैबिलिटेशन भी करते हैं, जिसमें नए सिरे से उन्हें बसाना शामिल है. सोशल सेक्टर में भी पुरुषों के लिए काफी काम हो रहा है, जैसे मेन्स रिसोर्स इंटरनेशनल  पुरुषों को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए कैंपेन और काम करता है. 

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