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बढ़ती आबादी, झीलों पर कब्जा और कॉन्क्रीट के जंगल... 'डॉलर' बरसाने वाला बेंगलुरु पानी को क्यों तरस रहा?

आईटी हब और भारत की सिलिकॉन वैली कहा जाने वाला बेंगलुरु पानी के लिए तरस रहा है. अब तक डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने भी कह दिया कि उनके घर का बोरवेल भी सूख गया है. लोगों को डर है कि गर्मी बढ़ते ही हालात और बिगड़ सकते हैं. लेकिन ये सब क्यों? समझते हैं...

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बेंगलुरु में गर्मी से पहले ही पानी का भयानक संकट खड़ा हो गया है़.
बेंगलुरु में गर्मी से पहले ही पानी का भयानक संकट खड़ा हो गया है़.

भारत की सिलिकॉन वैली कही जाने वाले बेंगलुरु शहर में पानी का भयानक संकट खड़ा हो गया है. आलम ये है कि बेंगलुरु की कई सोसायटियों में पीने के पानी का दुरुपयोग करने पर 5 हजार रुपये का जुर्माना वसूला जा रहा है. निगरानी के लिए स्पेशल गार्ड को तैनात किया गया है.

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बेंगलुरु भारत का वो शहर है, जिसकी तुलना अमेरिका की सिलिकॉन वैली से की जाती है. अनुमान के मुताबिक, कर्नाटक की कुल जीडीपी में लगभग आधी हिस्सेदारी अकेले बेंगलुरु की होती है. बेंगलुरु में करीब 25 हजार आईटी कंपनियां हैं और यहां हर साल 5 से 6 अरब डॉलर का एफडीआई आता है. 

लेकिन अब यही बेंगलुरु कुछ महीनों से पानी को तरस रहा है. कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा कि किसी भी कीमत पर बेंगलुरु में पानी की सप्लाई की जाएगी. उन्होंने कहा, बेंगलुरु के सभी इलाकों में पानी की समस्या है. उन्होंने दावा किया कि उनके घर का बोरवेल भी सूख गया है.

बेंगलुरु के बाबूसपाल्या में रहने वाले मुनियम्मा ने न्यूज एजेंसी को बताया कि उनके इलाके में छह महीने से पानी की समस्या है. उन्होंने बताया, पिछले छह महीने से हम पानी की कमी से जूझ रहे हैं. जिनके पास पैसा है वो टैंकर से पानी खरीद रहे हैं, लेकिन हम गरीबों को पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

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एक और स्थानीय ने बताया कि कई दिनों से पानी की समस्या बहुत बढ़ गई है. टैंकर से पानी खरीदने पर दो-दो हजार रुपये मांग रहे हैं. मार्च में ही ऐसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. अभी तो गर्मी आने वाली है और ये समस्या और बढ़ेगी. पानी नहीं है, इसलिए हम दो-दो दिन में एक बार नहा पा रहे हैं.

सूख रहे हैं बोरवेल!

नेपाल से जॉब के सिलसिले में बेंगलुरु आईं दीपा ने बताया कि यहां 4-5 महीनों से पानी की समस्या है. उन्होंने कहा, हम सुबह उठकर काम पर जाएं या पानी भरने?

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, बेंगलुरु ही नहीं, बल्कि कर्नाटक के कई गांवों में पानी के सोर्स खत्म हो गए हैं. ग्राउंडवाटर की कमी के कारण बोरवेल धीरे-धीरे सूख रहे हैं. बेंगलुरु में तीन हजार से ज्यादा बोरवेल हैं.

रेवेन्यू डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, तुमकुरू जिले के 746 गांवों और उत्तर कन्नड़ जिले के सबसे ज्यादा वार्डों में बोरवेल सूख रहे हैं. बेंगलुरु अर्बन जिले में 174 गांवों और 120 वार्डों में भी ऐसी ही स्थिति है.

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि लोग गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं, उसके बावजूद केंद्र सरकार की ओर से कर्नाटक को एक पैसे की भी मदद नहीं की जा रही है.

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ऐसा संकट क्यों?

बेंगलुरु शहर पानी के लिए कावेरी नदी पर निर्भर है. कावेरी नदी से बेंगलुरु को हर दिन 145 करोड़ लीटर पानी मिलता है. जबकि, बेंगलुरु को हर दिन 168 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है.

कम बारिश के कारण कावेरी नदी का जलस्तर घट रहा है. इससे न सिर्फ पीने के पानी बल्कि खेती के लिए सिंचाई के पानी की भी समस्या हो रही है. इतना ही नहीं, बोरवेल भी धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं, जिससे ये समस्या और गंभीर हो गई है.

डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने हाल ही में बताया था कि बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (BMRDA) और बेंगलुरु वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (BWSSB) के 14,781 बोरवेल में से 6,997 पूरी तरह सूख गए हैं. 

कर्नाटक स्टेट नैचुरल डिजास्टर मैनेजमेंट सेंटर (KSNDMC) के मुताबिक, पांच मार्च तक भाद्रा, तुंगाभाद्रा, घाटप्रभा, मालाप्रभा, अलमट्टी और नारायणपुरा जैसे कावेरी नदी के 6 अहम जलाशयों में जल स्तर उनकी कुल क्षमता का मात्र 38% था.

इन जलाशयों की क्षमता 114.57 हजार मिलियन क्यूबिक फीट है, लेकिन 5 मार्च तक इनमें सिर्फ 43.80 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी ही था. 

एक वजह ये भी!

बेंगलुरु की आबादी तेजी से बढ़ रही है. अनुमान के मुताबिक, 2011 तक बेंगलुरु की आबादी 86 लाख के आसपास थी, जो अब बढ़कर एक करोड़ से ज्यादा पहुंच गई है. 2025 तक बेंगलुरु की आबादी सवा करोड़ के पार पहुंचने का अनुमान है.

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आबादी बढ़ने के कारण वहां तेजी से गांव और कॉलोनियां बस रही हैं. बेंगलुरु को एक समय 'गार्डन सिटी' कहा जाता था. लोग रिटायरमेंट के बाद यहां बसना पसंद करते थे. लेकिन अब यहां की जलवायु तेजी से बदल रही है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) के मुताबिक, बीते चार दशकों में बेंगलुरु की वाटर बॉडीज में 79% और ग्रीन कवर में 88% तक की कमी आई है. जबकि, इसके इतर कॉन्क्रीट से ढंकी जगहों का एरिया 11 गुना तक बढ़ गया है.

आईआईएससी से जुड़े टीवी रामचंद्रन ने न्यूज एजेंसी को बताया था कि कॉन्क्रीट वाले इलाकों के बढ़ने और ग्रीन कवर के घटने से ग्राउंडवाटर में कमी आ रही है. 

इतना ही नहीं, वाटर बॉडीज यानी जल निकायों पर अतिक्रमण भी चिंता की एक बड़ी वजह है. 2017 में कर्नाटक के तब के राजस्व मंत्री कागोडु थिमप्पा ने बताया था कि बेंगलुरु की 837 में से 744 झीलों पर लोगों ने कब्जा कर लिया है. 

उन्होंने बताया था कि बेंगलुरु के शहरी जिले में 4,247 लोगों ने कुल 2,340 एकड़ झील और उसके आसपास के इलाकों पर अतिक्रमण कर रखा है. इन झीलों को बस स्टेशनों, स्टेडियमों और रिहायशी इलाकों में बदल दिया गया है.

इससे निपटने की तैयारी क्या?

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कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार का कहना था कि कावेरी नदी पर डैम ही बेंगलुरु की पानी की समस्या का समाधान था. हालांकि, कावेरी नदी के पानी को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच विवाद है, जिस कारण ये डैम नहीं बन सका.

कर्नाटक सरकार ने पीने के पानी के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए बजट में 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था. इसके साथ ही बोरवेल को और गहरा करने पर भी विचार किया जा रहा है.

इसके अलावा, पानी की कमी को दूर करने के लिए 2024-25 के बजट में कावेरी प्रोजेक्ट के पांचवें फेज की घोषणा भी की गई. इस प्रोजेक्ट के लिए 5,500 करोड़ रुपये का बजट रखा है. प्रोजेक्ट के इसी साल मई तक पूरा होने की उम्मीद है. इससे 110 गांवों के 12 लाख लोगों को पीने का पानी मिलेगा.

पांचवें फेज में अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम भी होगा, जिसके इस साल दिसंबर तक पूरा होने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्ट के तहत, 228 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन और 13 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएंगे.

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