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बलूचिस्तान अकेला नहीं, ये इलाके भी चाहते हैं पाकिस्तान से अलगाव, बलूच टूटे तो भारत के लिए क्या बदलेगा?

पाकिस्तान से अलग होने की बलूचिस्तान की मांग अब बेहद हिंसक रूप ले चुकी. बलूच लिबरेशन आर्मी ने पिछले हफ्ते ट्रेन हाईजैक करके हड़कंप मचा दिया था. अब वो पाकिस्तानी सेना पर भी हमलावर हो चुकी. आशंका है कि बलूचों के बाद यहां कई और अलगाववादी आंदोलन तेज हो सकते हैं.

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बलूच आर्मी पाकिस्तानी सेना पर लगातार हमलावर है. (Photo- AFP)
बलूच आर्मी पाकिस्तानी सेना पर लगातार हमलावर है. (Photo- AFP)

बलूचों की आजादी का जंग ने पहले से परेशान पाकिस्तान की हालत और बिगाड़ रखी है. पिछले हफ्ते जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक करने के बाद बलूच लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान की सेना पर भीषण हमला किया, जिसमें कथित तौर पर 90 जवान मारे गए. बलूचिस्तान के लोग लंबे समय से इस्लामाबाद पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए आजादी की मांग करते रहे. लेकिन उनके अलावा भी कई और इलाके हैं, जो देश से अलग होने की कोशिश में रहे. 

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बलूच लोग लगातार पाकिस्तान सरकार पर आरोप लगाते रहे कि वो उनके रिसोर्सेज का इस्तेमाल तो कर रही है, लेकिन बदले में कोई फायदा नहीं दे रहा. ये असंतोष हाल का नहीं, बल्कि इसकी जड़ें आजादी के समय की हैं. ब्रिटिश दौर के खत्म होते-होते बलूचिस्तान भारत या पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बना, बल्कि एक अलग रियासत बन गया. वहां की संसद ने आजादी के पक्ष में वोट किया. हालांकि मार्च 1948 को पाकिस्तान ने इसपर कार्रवाई करके इसे जबरन खुद में मिला लिया. बलूच नेशनलिस्ट इसे अवैध कब्जा मानते हैं और तब से अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं. 

क्यों चाहते हैं आजादी 

- बलूचिस्तान के पास पूरे देश का 40% से ज्यादा गैस प्रोडक्शन होता है. ये सूबा कॉपर, गोल्ड से भी समृद्ध है. पाकिस्तान इसका फायदा तो लेता है, लेकिन वहां की इकनॉमी खराब ही रही. 

- बलूच लोगों की भाषा और कल्चर बाकी पाकिस्तान से अलग है. वे बलूची भाषा बोलते हैं, जबकि पाकिस्तान में उर्दू और उर्दू मिली पंजाबी चलती है. बलूचियों को डर है कि पाकिस्तान उनकी भाषा भी खत्म कर देगा, जैसी कोशिश वो बांग्लादेश के साथ कर चुका. 

- सबसे बड़ा प्रांत होने के बावजूद इस्लामाबाद की राजनीति और मिलिट्री में इनकी जगह नहीं के बराबर है. 

- पाक सरकार पर बलूच ह्यूमन राइट्स को खत्म करने का आरोप लगाते रहे. बलूचिस्तान के सपोर्टर अक्सर गायब हो जाते हैं, या फिर एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग के शिकार बनते हैं. 

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bla balochistan rebels and other separatist movements in pakistan photo Getty Images

कौन-कौन से संगठन कर रहे बंटवारे की मांग 

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) की आवाज सबसे ज्यादा सुनाई देती है. पहले वे शांति से अलगाव की मांग करते रहे. बीते कुछ दशकों से आंदोलन हिंसक हो चुका. पाकिस्तान सरकार ने बलूच इलाके में स्थिति खदानों को चीनियों को लीज पर दे रखा है. इसपर भड़के हुए बलूच प्रोटेस्टर बम धमाके भी करते रहते हैं. यह चीनी नागरिकों के अलावा पाकिस्तानी सेना और पुलिस, पर हमलों के लिए कुख्यात रहा. पाकिस्तान ने साल 2006 में ही इसे आतंकी गुट कह दिया.

इसके अलावा बलोच लिबरेशन फ्रंट भी काफी एक्टिव है. साठ के दशक में बना संगठन पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला हमलों के लिए जाना जाता रहा. बलूच रिपब्लिकन आर्मी भी है, जिसका हमलों का पैटर्न अलग रहा. वो पाकिस्तान की गैस पाइपलाइन और रेलवे ट्रैक पर अटैक करता रहा. एक और गुट है- बलूच नेशनल मूवमेंट. ये अलगाव के लिए डिप्लोमेटिक तरीके अपनाता है और वेस्ट में रहते लोगों के बीच अपनी आवाज बुलंद कर रहा है. 

क्या फॉरेन फंड आ रहा

बलूच अलगाववादी संगठनों को लेकर कई बार आरोप लगे कि उन्हें विदेशी ताकतों का समर्थन मिल रहा है. जैसे पाकिस्तान का शक अफगानिस्तान पर राज करते तालिबान पर है. तालिबान के आने के बाद से पाकिस्तान में आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ीं. पाकिस्तान में ही तहरीक-ए-तालिबान है. इसका बलूच गुटों से अच्छा संबंध रहा. पाकिस्तान कई बार कह चुका कि टीटीपी ही बलूच लड़ाकों को ट्रेनिंग दे रहा है. ताजा हमलों में भी टीटीपी और बलूच आर्मी साथ दिख रहे हैं. वैसे दोनों का एजेंडा अलग-अलग है, जैसे टीटीपी पाकिस्तान में इस्लामिक कानून चाहता है और बलूचिस्तान आजादी, लेकिन दोनों का दुश्मन एक है इसलिए वे साझी लड़ाई लड़ते दिख रहे हैं. 

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bla balochistan rebels and other separatist movements in pakistan photo AFP

कब ऊंचा होने लगा ग्राफ 

पाकिस्तान में बलूचिस्तान की मांग को लेकर कई चरमपंथी गुट खड़े हो गए. उनके पास संसाधन कम थे. ऐसे में लंबी ट्रेनिंग देकर लड़ाकों को मजबूत बनाने का वक्त नहीं था. ये डर भी था कि अगर ब्लास्ट में शामिल लोग पकड़े जाएं तो सरकार गुट के अंदर तक पहुंच सकती है. इसी डर से बचने के लिए सुसाइड बॉम्बिंग को बढ़ावा मिला. कथित तौर पर इसके लिए टीटीपी ट्रेनिंग देता, और मदद करता है. इस बात में कहीं न कहीं दम भी लगता है. बलूच आर्मी ने हाल में आत्मघाती हमला किया, जिसमें दर्जनों पाक सैनिक मारे गए. खुद पाकिस्तान की नेशनल पार्टी के सांसद फुलैन बलूच दावा कर चुके कि बीएलए के पास बहुत ज्यादा सुसाइड बॉम्बर हो चुके.

किन जगहों पर फोकस 

बॉर्डर पर आत्मघाती हमले ज्यादा हो रहे हैं. ये पोरस होते हैं, जहां से आतंकी आराम से यहां-वहां हो सकते हैं. इसके अलावा सीमा को कमजोर करने पर सरकार पर सीधा असर होता है. शहरी इलाकों में मस्जिद या बाजार सॉफ्ट टारगेट बनते हैं. इसके अलावा पाकिस्तान सेना की मौजूदगी वाली हर जगह इनके निशाने पर रहती आई.. 

फल-फूल रहे कई और अलगाववादी आंदोलन

सिंधदेश मूवमेंट इनमें से एक है, जहां सिंधी राष्ट्रवादी संगठन लंबे समय से आजाद सिंधु देश की मांग करते आए. कराची समेत सिंधी भाषा बोलने वाले कई हिस्सों में ये अलगाववादी एक्टिव हैं. साल 2020 में पाक सरकार ने एक साथ कई सेपरेटिस्ट मूवमेंट चलाने वाली पार्टियों को बैन किया. सिंधुदेश लिबरेशन आर्मी और सिंधुदेश रिवॉल्यूशनरी आर्मी भी इनमें से एक थे.

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गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का उत्तरी इलाका है. यहां पर भी लंबे समय से आजादी की मांग चल रही है. चरमपंथी संगठनों ने अपने देश का नाम भी तय कर रखा है- बलवारिस्तान यानी ऊंचाइयों का देश. ये इसलिए क्योंकि ये पूरा इलाका ही पहाड़ों और वादियों का है. समय-समय पर यहां आंदोलन होते रहे. यहां के नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान का सबसे शानदार टूरिस्ट स्पॉट होने के बाद भी वो उन्हें ज्यादा प्रमोट नहीं करती. सरकारी योजनाएं भी यहां पूरी तरह से लागू नहीं होतीं. यही देखते हुए गिलगित-बाल्टिस्तान की मांग होती रही. 

bla balochistan rebels and other separatist movements in pakistan photo Wikipedia

खैबर पख्तूनख्वा और अफगानिस्तान के पख्तून इलाके को मिलाकर एक अलग देश पख्तूनिस्तान बनाने की मांग कई बार उठ चुकी. हाल-हाल के सालों में पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट तेज हुआ. इसका एजेंडा पख्तून बोलने वालों के लिए अलग देश बनाना है ताकि वे अपनी सभ्यता-संस्कृति को अपनी तरह से लागू कर सकें. वैसे साल 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद ये आंदोलन कमजोर पड़ा, क्योंकि तालिबान खुद पश्तून मेजोरिटी वाला गुट है. 

इसके अलावा भी पूरे देश में छिटपुट हिस्सों में अलगाववाद पनपता रहा. यहां तक कि देश के विभाजन के कुछ समय बाद आए मुस्लिमों को भी वहां स्वीकारा नहीं जा रहा. ये लोग मुहाजिर कहलाते और योजनाओं से दूर रखे जाते हैं. ये भी मुहाजिर सूबे की मांग बीच-बीच में कर लेते हैं, जिसमें कराची, हैदराबाद और मीरपुर खास जैसे इलाके शामिल हों. हालांकि ये डिमांड उस तरह की एक्सट्रीम नहीं है, जिनपर पाकिस्तान परेशान रहे. 

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बलूचिस्तान के अलग होने का भारत पर क्या असर हो सकता है

- बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. इसके टूटने से पाकिस्तान का क्षेत्रफल और संसाधनों पर काबू कम हो जाएगा. 

- बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह पर चीन ने भारी निवेश कर रखा है. अगर बलूच अलग हो जाएं तो चीन को बड़ा झटका लगेगा. 

- पाकिस्तान अलगाव को रोकने में लगा रहेगा, तो कश्मीर मुद्दे से उसका ध्यान भी हटेगा. इससे इंटरनेशनल मंच पर हमारी आवाज ऊंची हो जाएगी. 

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