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अमेरिका का विरोध या डॉलर का दबदबा... BRICS का सदस्य बनने की क्यों मची है होड़?

साउथ अफ्रीका में हो रही 15वीं ब्रिक्स समिट में संगठन में छह और सदस्यों को शामिल करने पर सहमति बन गई है. ब्रिक्स में अब सऊदी अरब और यूएई समेत छह और देशों को शामिल कर लिया गया. जनवरी 2024 से ये ब्रिक्स के परमानेंट सदस्य बन जाएंगे. लेकिन सवाल है कि ब्रिक्स में शामिल होने की होड़ क्यों मची है? इससे फायदा क्या होगा?

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ब्रिक्स में 6 देश और बढ़ गए हैं. (फोटो क्रेडिट- X)
ब्रिक्स में 6 देश और बढ़ गए हैं. (फोटो क्रेडिट- X)

ब्रिक्स अब पांच देशों का संगठन नहीं रह गया है. अब इसमें छह और नए देश जुड़ गए हैं. साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हो रही 15वीं ब्रिक्स समिट में छह देशों की एंट्री पर मुहर लग गई है. इसके बाद ब्रिक्स के सदस्य देशों की कुल संख्या बढ़कर 11 हो गई है.

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ब्रिक्स का सदस्य बनने का कोई औपचारिक तरीका नहीं है. सभी सदस्य देश आपसी से इस पर सहमति लेते हैं. अभी जिन छह देशों को ब्रिक्स में शामिल करने पर सहमति बनी है, उनमें- अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात है.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डि सिल्वा की मौजूदगी में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने नए सदस्यों का ऐलान किया. रामाफोसा ने बताया कि 1 जनवरी 2024 से ये देश ब्रिक्स के नए सदस्य बन जाएंगे. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स के विस्तार का स्वागत किया. उन्होंने कहा, 'ब्रिक्स का विस्तार बताता है कि बदलती दुनिया के हिसाब से खुद को ढालने की जरूरत है. भारत ने हमेशा ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन किया है. भारत का मानना है कि नए सदस्यों के जुड़ने से ब्रिक्स और मजबूत होगा और हमारे सभी के साझा प्रयासों को नई गति मिलेगी.'

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पीएम मोदी ने कहा कि ब्रिक्स में नए सदस्यों को जोड़ने का फैसला बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में कई देशों के विश्वास को और मजबूत करेगा.

लेकिन ये ब्रिक्स है क्या?

- ब्रिक्स दुनिया की पांच सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं का ग्रुप है. ब्रिक्स का हर एक अक्षर एक देश का प्रतिनिधित्व करता है. ब्रिक्स में B से ब्राजील, R से रूस, I से इंडिया, C से चीन और S से साउथ अफ्रीका. 

- साल 2001 में गोल्डमेन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ'निल ने एक रिसर्च पेपर में BRIC शब्द का इस्तेमाल किया था. BRIC में ब्राजील, रूस, इंडिया और चीन थे.

- साल 2006 में पहली बार ब्रिक देशों की बैठक हुई. उसी साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान इन चारों देशों के विदेश मंत्रियों की मीटिंग हुई तो इस समूह को 'BRIC' नाम दिया गया.

- ब्रिक देशों की पहली शिखर स्तर की बैठक 2009 में रूस के येकाटेरिंगबर्ग में हुई थी. इसके बाद 2010 में ब्राजील के ब्रासिलिया में दूसरी शिखर बैठक हुई. उसी साल इसमें साउथ अफ्रीका भी शामिल हुआ, तब ये BRIC से BRICS बन गया.

इसमें जुड़ना क्यों चाहते हैं देश?

- न्यूज एजेंसी के मुताबिक, ईरान, सऊदी अरब, यूएई, अर्जेंटीना, अल्जीरिया, बोलीविया, इंडोनेशिनया, मिस्र, इथियोपिया, क्यूबा, कॉन्गो, कोमोरोस और कजाकिस्तान जैसे 40 से ज्यादा देश ब्रिक्स से जुड़ना चाहते हैं.

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- ये वो देश हैं जो ब्रिक्स को पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले वैश्विक संगठनों के विकल्प के रूप में देखते हैं. इन्हें उम्मीद है कि अगर वो ब्रिक्स जैसे संगठन का हिस्सा बन गए तो इससे उनकी अर्थव्यवस्था बढ़ेगी.

- अचानक से ब्रिक्स से जुड़ने वाले देशों की लिस्ट इसलिए भी बढ़ गई, क्योंकि कोविड महामारी के दौरान बड़े और पश्चिमी देशों ने वैक्सीन की जमाखोरी कर ली थी, लेकिन इन छोटे और विकासशील देशों तक वैक्सीन नहीं पहुंच पाई थी.

ब्रिक्स से जुड़ने के दो और मकसद!

- ब्रिक्स से जुड़ने की इच्छा जताने वाले ज्यादातर मुल्क पश्चिम विरोधी हैं. इनके दो मकसद हैं. पहला- पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को कमजोर करना. और दूसरा- कारोबार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना.

- ब्रिक्स के विस्तार का सबसे ज्यादा समर्थन रूस और चीन करते हैं. यही वो दो देश हैं जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के विरोधी हैं. यूक्रेन से जंग के कारण रूस प्रतिबंधों की वजह से पश्चिमी देशों से चिढ़ा बैठा है. तो वहीं चीन खुद को ताकतवर बनाने के लिए छोटे-छोटे देशों को अपने साथ लाने में जुटा है. 

- इसलिए ब्रिक्स के विस्तार से अमेरिका की चिंता बढ़ सकती है. अल्जीरिया और मिस्र दोनों ही अमेरिका के अच्छे दोस्त हैं और दोनों ब्रिक्स में जुड़ना चाहते हैं. मिस्र तो जुड़ भी गया है. लेकिन अमेरिका ऐसा नहीं चाहता. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पहले ही साफ कर चुके हैं कि वो नहीं चाहते कि उनके दोस्त अन्य देशों के साथ रिश्ते बनाएं.

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- इतना ही नहीं, अगर ब्रिक्स में ज्यादा से ज्यादा देश जुड़ते हैं तो उनके बीच अपनी करेंसी में कारोबार करने पर सहमति बन सकती है. ऐसा होता है तो सीधे-सीधे अमेरिका की करेंसी डॉलर कमजोर हो जाएगी. ऐसा चीन और रूस ही नहीं, कई देश चाहते हैं.

छह देशों के जुड़ने से ब्रिक्स कैसे मजबूत होगा?

1. सऊदी अरबः सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से एक है. चीन का करीबी और अमेरिका का विरोधी है. इसी साल फरवरी में बीजिंग में एक समझौते पर हस्ताक्षर कर ईरान के साथ सऊदी अरब ने राजनयिक संबंध बहाल किए हैं. तीन करोड़ से ज्यादा की आबादी वाला देश है. ब्रिक्स देशों के साथ सऊदी अरब का सालाना 160 अरब डॉलर का कारोबार है.

2. अर्जेंटीनाः ब्राजील और मैक्सिको के बाद लैटिन अमेरिका की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था अर्जेंटीना की ही है. इसकी आबादी 4.6 करोड़ है. हालांकि, पिछले एक साल से अर्जेंटीना आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. इसकी 40 फीसदी आबादी गरीब हो चुकी है. हालिया सालों में अर्जेंटीना के साथ चीन के साथ वित्तीय संबंध मजबूत हुए हैं.

3. ईरानः दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गैस भंडार होने के साथ-साथ एक-चौथाई तेल का भंडार भी यहीं हैं. अमेरिका के सबसे बड़े विरोधियों में से एक है. ईरान दुनिया की 22वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी जीडीपी 2 ट्रिलियन डॉलर है.

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4. मिस्रः ये वो देश है जो अमेरिकी मदद पर निर्भर है. लेकिन बीते कुछ समय में रूस और चीन के साथ इसके रिश्ते मजबूत हुए हैं. मिस्र की जीडीपी 1.8 ट्रिलियन डॉलर है. पहले कोविड और फिर रूस-यूक्रेन जंग की वजह से मिस्र का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से कम हुआ है. मिस्र डॉलर की बजाय अपनी करंसी में कारोबार करने की वकालत करता रहा है.

5. संयुक्त अरब अमीरातः 90 लाख से ज्यादा की आबादी वाले देश की अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर है. संयुक्त अरब अमीरात मिडिल ईस्ट में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. इसकी जीडीपी 1.8 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है.

6. इथियोपियाः अफ्रीकी महाद्वीप का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश इथियोपिया है. यहां 11 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं. इथियोपिया भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में से है. इसकी जीडीपी 156 अरब डॉलर से ज्यादा है.

अभी कितना ताकतवर है ब्रिक्स?

- ब्रिक्स में जो पांच देश शामिल हैं, वो सभी दुनिया की सबसे तेजी से उभरती हुईं अर्थव्यवस्थाएं हैं. इनकी दुनिया की जीडीपी में 31.5% की हिस्सेदारी है.

- ब्रिक्स के सभी पांच देशों में दुनिया की 41 फीसदी से ज्यादा आबादी रहती है. वैश्विक कारोबार में भी इनका 16 फीसदी हिस्सा है.

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- ये सभी देश G-20 का भी हिस्सा हैं. जानकारों का मानना है कि 2050 तक ये देश ग्लोबल इकोनॉमी में हावी हो जाएंगे.

 

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