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क्या है BRICS, जिसमें हो सकती है मोदी-जिनपिंग की मुलाकात? अमेरिका क्यों है घबराया

BRICS 2023: दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आज दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जुटने जा रहीं हैं. मौका है ब्रिक्स समिट का. इस समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग में मुलाकात भी हो सकती है. जानें- कितना ताकतवर है ब्रिक्स? और इससे अमेरिका क्यों घबरा रहा है?

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ब्रिक्स में दुनिया के पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
ब्रिक्स में दुनिया के पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

BRICS 2023: दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आज से ब्रिक्स समिट शुरू हो रही है. 2019 के बाद ये पहली बार है जब ब्रिक्स की ये पहली ऑफलाइन मीटिंग होगी. 22 से 24 अगस्त तक होने वाली इस समिट में अपनी करंसी में कारोबार करने पर भी बातचीत होगी.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस समिट में आने से पहले ही मना कर चुके हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसमें शामिल होंगे. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें हिस्सा लेने के लिए मंगलवार सुबह जोहान्सबर्ग के लिए रवाना हो गए हैं.

हालांकि, अब तक ये साफ नहीं है कि क्या ब्रिक्स से इतर प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत होगी? पीएम मोदी और शी जिनपिंग की आखिरी बार पिछले साल नवंबर में G-20 बैठक के दौरान मुलाकात हुई थी.

इस बार का एजेंडा क्या?

- इस बार की ब्रिक्स समिट के दो एजेंडा हैं. पहला- ब्रिक्स का विस्तार. दूसरा- ब्रिक्स देशों में अपनी करंसी में कारोबार.

- साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने कहा कि हम ब्रिक्स के सदस्यों की संख्या बढ़ाने का समर्थन करते हैं.

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- दुनिया के करीब 23 देशों ने ब्रिक्स का हिस्सा बनने के लिए आवेदन किया है. इस पर भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि विस्तार पर हमारा इरादा सकारात्मक है.

- इसके अलावा दूसरा एजेंडा कॉमन करंसी में कारोबार का भी है. इस पर भी विदेश सचिव क्वात्रा ने कहा कि ब्रिक्स में नेशनल करंसी में कारोबार पर भी चर्चा होगी.

ब्रिक्स देशों के प्रमुख. (फाइल फोटो)

ब्रिक्स मतलब क्या?

- ब्रिक्स दुनिया की पांच सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं का ग्रुप है. ब्रिक्स का हर एक अक्षर एक देश का प्रतिनिधित्व करता है. ब्रिक्स में B से ब्राजील, R से रूस, I से इंडिया, C से चीन और S से साउथ अफ्रीका. 

- साल 2001 में गोल्डमेन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ'निल ने एक रिसर्च पेपर में BRIC शब्द का इस्तेमाल किया था. BRIC में ब्राजील, रूस, इंडिया और चीन थे.

- साल 2006 में पहली बार ब्रिक देशों की बैठक हुई. उसी साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान इन चारों देशों के विदेश मंत्रियों की मीटिंग हुई तो इस समूह को 'BRIC' नाम दिया गया.

- ब्रिक देशों की पहली शिखर स्तर की बैठक 2009 में रूस के येकाटेरिंगबर्ग में हुई थी. इसके बाद 2010 में ब्राजील के ब्रासिलिया में दूसरी शिखर बैठक हुई. उसी साल इसमें साउथ अफ्रीका भी शामिल हुआ, तब ये BRIC से BRICS बन गया.

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कब-कब होती है समिट?

- ब्रिक्स का हेडक्वार्टर चीन के शंघाई में है. इसकी समिट हर साल होती है. इस समिट में सभी पांचों देशों के राष्ट्रप्रमुख शामिल होते हैं.

- इसकी मेजबानी हर साल एक-एक कर मिलती है. अभी साउथ अफ्रीका के पास इसकी मेजबानी कर रहा है. अगले साल कोई दूसरा देश होगा. 

कितना बड़ा है ब्रिक्स?

- ब्रिक्स में जो पांच देश शामिल हैं, वो सभी दुनिया की सबसे तेजी से उभरती हुईं अर्थव्यवस्थाएं हैं. इनकी दुनिया की जीडीपी में 31.5% की हिस्सेदारी है.

- ब्रिक्स के सभी पांच देशों में दुनिया की 41 फीसदी से ज्यादा आबादी रहती है. वैश्विक कारोबार में भी इनका 16 फीसदी हिस्सा है.

- ये सभी देश G-20 का भी हिस्सा हैं. जानकारों का मानना है कि 2050 तक ये देश ग्लोबल इकोनॉमी में हावी हो जाएंगे.

ब्रिक्स में मोदी-जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता होने की उम्मीद भी है. (फाइल फोटो)

क्या और ताकतवर होगा ब्रिक्स?

- ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए कोई औपचारिक तरीका नहीं है. सभी सदस्य देश इस पर आपसी सहमति से फैसला लेते हैं.

- अभी दुनिया के 23 देशों ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया है. इसमें अल्जीरिया, अर्जेंटिना, बांग्लादेश, बहरीन, बेलारूस, बोलीविया, कजाकिस्तान, कुवैत, सऊदी अरब, थाईलैंड, यूएई जैसे देश शामिल हैं.

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पर इससे अमेरिका क्यों है घबराया?

- मंगलवार से शुरू हो रही ब्रिक्स देशों की समिट पर दुनिया की, खासतौर से अमेरिका की नजरें हैं. वो इसलिए क्योंकि माना जा रहा है कि इसके जरिए पश्चिमी दबदबे को चुनौती देने की तैयारी की जा रही है.

- इसके अलावा ब्रिक्स अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर भी विचार कर रहा है. ईरान, क्यूबा और वेनेजुएला ने भी ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है. ये वो देश हैं जो खुलकर अमेरिका के खिलाफ खड़े रहे हैं.

- इतना ही नहीं, अगर ब्रिक्स में और देश जुड़ते हैं तो इससे अपनी नेशनल करंसी में कारोबार करने पर भी सहमति बन सकती है. इसका मतलब सीधे-सीधे अमेरिका की करंसी डॉलर को कमजोर करना है. चीन और रूस यही चाहते हैं.

- अमेरिका की चिंता इसलिए भी और बढ़ जाती है, क्योंकि पिछले साल ब्रिक्स देश 122 मौकों पर रूस के साथ जुड़े हैं. जबकि, यूक्रेन संकट के कारण अमेरिका और पश्चिमी देश रूस के खिलाफ हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन. (फाइल फोटो)

- ब्रिक्स में रूस की मौजूदगी से अमेरिका असहज है. साल 2015 में रूस की अध्यक्षता में ब्रिक्स समिट में काफी अहम समझौते हुए थे. ये वो दौर था जब एक साल पहले ही रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर उसपर कब्जा कर लिया था. ऐसे में पश्चिमी प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए उसने सफलता से ब्रिक्स की मेजबानी की. चीन और साउथ अफ्रीका से संबंधों को मजबूत किया, जिससे अमेरिका और असहज हो गया.

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- अमेरिका का फोकस ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका के साथ अपने द्विपक्षीय संबंध और मजबूत करने पर है. जबकि, दूसरी तरफ चीन के साथ अमेरिका का तनाव बढ़ा हुआ है और रूस को उसने अलग-थल कर दिया है. ऐसे में एक संगठन के तौर पर ब्रिक्स से निपटना अमेरिका के लिए एक चुनौती भी होगी.

- ब्रिक्स के विस्तार से नए सवाल खड़े होंगे. अल्जीरिया और मिस्र जैसे अमेरिका के दोस्त ब्रिक्स के साथ जुड़ना चाहते हैं, जिससे उसे भविष्य में दिक्कत हो सकती है. बाइडेन सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि वो नहीं चाहते कि उनके दोस्त अन्य देशों के साथ रिश्ते बनाएं.

- इतना ही नहीं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एनर्जी सिक्योरिटी, केमिकल और बायो वेपन जैसे मुद्दों पर ब्रिक्स में होने वाली सहमति से अमेरिका से दिक्कत हो सकती है.

 

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