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क्या है रवांडा पॉलिसी, जिस पर घिरे ब्रिटिश PM सुनक, क्यों है रिफ्यूजियों के लिए खतरा?

जंग में घिरे देशों से लोग भागकर पश्चिम की तरफ जा रहे हैं. काफी लोग ब्रिटेन भी पहुंच रहे हैं. हालांकि नावों में बैठकर देश आ रहे इन शरणार्थियों को ब्रिटेन वेलकम नहीं कर रहा, बल्कि उन्हें रवांडा भेज रहा है. रिफ्यूजियों से छुटकारा पाने की यही पॉलिसी सुनक सरकार के गले में फंसी हड्डी बन चुकी है.

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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक. सांकेतिक फोटो (AP)
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक. सांकेतिक फोटो (AP)

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं. देश में महंगाई को लेकर उनपर निशाना साधा जा रहा है. इसके अलावा अवैध रूप से ब्रिटेन आने वालों के लिए बनाई गई रवांडा पॉलिसी को लेकर भी वे घिर चुके हैं. बुधवार को वहां की सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों को रवांडा डिपोर्ट करने की नीति को गैरकानूनी करार दे दिया.

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कोर्ट के मुताबिक रवांडा से रिफ्यूजी अपने मूल देश भी भगाए जा सकते हैं, जहां उन्हें ज्यादा खतरा होगा. लेकिन सवाल ये है कि तुर्की, सीरिया या अफगानिस्तान से भागकर आए लोग आखिर रवांडा जैसे सुदूर देश क्यों भेजे जा रहे हैं? और सुनक सरकार की इसे लेकर आलोचना क्यों हो रही है?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए एक बार अवैध घुसपैठ को समझना होगा. इस समय दुनिया के कई देश भारी मुसीबत में हैं. उनके भीतर कई गुट हैं जो आपस में लड़-कट रहे हैं. दो देश आपस में भिड़े हुए हैं. इस सबका असर आम लोगों पर होता है. वे रोटी-पानी के मोहताज हो चुके हैं. जैसे गाजा पट्टी की ही बात करें तो वहां लोगों के पास खाने या रहने का भी इंतजाम नहीं बचा. ऐसे में लोग या तो देश के भीतर ही सुरक्षित जगहों पर जाने लगते हैं, या फिर बाहर के देशों की तरफ निकल जाते हैं. ऐसा काफी समय से हो रहा है. 

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britain rwanda migration policy controversy rishi sunak photo Getty Images

घुसपैठियों को लौटाया जा रहा

शुरुआत में अमीर देशों ने गरीब देशों से आ रहे लोगों को खुले मन से स्वीकारा, लेकिन इसका उल्टा असर भी हुआ. कई देशों में रिफ्यूजियों की संख्या तेजी से बढ़ गई. अब वे अवैध घुसपैठियों से बचने के तरीके खोज रहे हैं. ब्रिटेन की रवांडा पॉलिसी इसी में से एक है. वे इसे उन रिफ्यूजियों पर लागू कर रहे हैं, जो इंग्लिश चैनल पार करके आ रहे हैं. ये वे लोग हैं, जो अवैध तरीके से ब्रिटेन पहुंचते हैं. अवैध इसलिए कि नावों से आ रहे लगभग 98% लोगों के पास पासपोर्ट नहीं होता. वे बिना किसी पहचान के यूके पहुंच जाते हैं.

दरअसल सुनक सरकार ने आते ही जो वादे किए, उनमें से एक था चैनल क्रॉस करने वालों पर रोक लगाना. अगर लोग तब भी चोरी-छिपे आ जाएं तो एक और तरीका था- रवांडा नीति. 

ब्रिटिश नेशनलिटी एंड बॉर्डर्स एक्ट के मुताबिक उन्हीं लोगों को शरण मिल सकती है, जो वैध ढंग से आए हों और यूरोप के किसी देश के रहने वाले हों. लेकिन ज्यादातर लोग युद्ध में घिरे देशों से भागकर आए हैं. ब्रिटेन उन्हें वापस भगाकर खुद को क्रूर नहीं दिखा सकता. यही वजह है कि उसने रवांडा के साथ ऐसा करार किया जिससे वहां आए अवैध लोग रवांडा डिपोर्ट हो जाएं.

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britain rwanda migration policy controversy rishi sunak photo Getty Images

पांच सालों के लिए हुआ एग्रीमेंट 

यूनाइटेड किंगडम और रवांडा के बीच अप्रैल 2022 में इस असाइलम पॉलिसी पर एग्रीमेंट हुआ. इसे इकोनॉमिक डेवलपमेंट पार्टनरशिप कहा गया. इसके तहत यूके पहुंचे लोगों को अवैध पाया जाने पर उन्हें लगभग साढ़े 6 हजार किलोमीटर दूर भेज दिया जाएगा. वहीं पर उन्हें या तो शरण दी जाएगी या आगे की प्रक्रिया पर सोचा जाएगा. ये करार 5 साल के लिए है. 

बदले में रवांडा को क्या मिलेगा 

सवाल ये है कि रवांडा जो खुद गरीबी और ड्रग्स की समस्या से जूझ रहा है, वो अपने यहां अवैध लोगों को शरण देने को क्यों राजी हुआ. तो इसका जवाब भी उसकी समस्या में है. यूके ने इसके लिए रवांडा को 120 मिलियन पाउंड दिए. इन पैसों से रवांडा शरण चाहने वालों के लिए घर, काम का बंदोबस्त करेगा, जब तक कि उनके ब्रिटेन में शरण लेने का आवेदन स्वीकार न हो जाए. बाकी पैसों को वो अपने वेलफेयर में लगा सकता है. इससे पहली नजर में दिख रहा है कि रवांडा के लिए भी सौदा फायदे का है.

britain rwanda migration policy controversy rishi sunak photo Getty Images

कैसे हैं रवांडा के हालात

रवांडा में मानवाधिकार को लेकर हमेशा से शिकायतें आती रहीं. ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) नाम की एनजीओ के मुताबिक रवांडा में रहने वाले लोग अपने-आप में परेशान हैं. वहां महिलाएं, बच्चे और एलजीबीटीक्यू लगातार निशाने पर रहे. HRW के मुताबिक अपना गला छुड़ाने के लिए ब्रिटेन जान-बूझकर युद्ध से भागे लोगों को रवांडा भेज रहा है. यहां तक कि वहां की सरकार रवांडा को सेफ थर्ड कंट्री की तरह बता रही है, जबकि है इसका उल्टा.

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ब्रिटेन पर आरोप लग रहा है कि उसने पैसों का लालच देकर रवांडा को खरीद लिया और उसे शरणार्थियों से कोई मतलब नहीं. 

ऑस्ट्रेलिया पहले ही कर चुका एग्रीमेंट 

ठीक इसी तरह का एग्रीमेंट ऑस्ट्रेलिया ने भी पापुआ न्यू गिनी देश के साथ किया था. उसने भी अपने यहां आए अवैध शरणार्थियों को कुछ समय के लिए कहकर पापुआ न्यू गिनी डिपोर्ट कर दिया. साल 2013 से 2021 के बीच हजारों लोग असालइम प्रोसेसिंग के तहत प्रशांत महासागर में स्थित इस द्वीपीय देश गए. वहां जाकर वे नई तकलीफों से घिर गए. वहां न रहने के लिए मकान थे, न खाने के लिए पैसे. यहां तक कि दूसरे देशों से पहुंचे शरणार्थी तस्करी का शिकार होने लगे.

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