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क्या विपक्षी दल एकजुट होकर मोदी फैक्टर की काट खोज सकते हैं? जानें क्या कहते हैं आंकड़े

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल एक होने की कोशिश कर रहे हैं. पटना में शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर दर्जनभर विपक्षी पार्टियों के नेता जुटे. सहमति बनी साथ मिलकर चलने की. अब अगली बैठक शिमला में होगी, लेकिन क्या विपक्ष एकजुट होकर मोदी को हरा सकता है? जानें...

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बीजेपी के खिलाफ मोर्चा बनाने के लिए विपक्ष की अगली बैठक शिमला में होगी.
बीजेपी के खिलाफ मोर्चा बनाने के लिए विपक्ष की अगली बैठक शिमला में होगी.

आज से एक साल आगे जाएं तो देश में 18वीं लोकसभा का गठन हो चुका होगा, लेकिन 18वीं लोकसभा का नेता यानी प्रधानमंत्री कौन होगा? सबके अपने-अपने दावे हैं. बीजेपी दावा करती है कि नरेंद्र मोदी को हरा पाना नामुमकिन है, तो विपक्ष दावा करता है कि सब साथ आएं तो ऐसा हो सकता है.

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यही वजह है कि जब लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है तो विपक्ष ने एक बार फिर खुद को एकजुट दिखाया है. फर्क इतना है कि इस बार विपक्षी एकजुटता की तस्वीर दिल्ली से लगभग हजार किलोमीटर की दूरी पर पटना में दिखी.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बुलावे पर शुक्रवार को एक दर्जन से ज्यादा विपक्षी पार्टियों के नेता पहुंचे. इस बैठक का एकमात्र एजेंडा यही रहा कि 2024 में बीजेपी को सत्ता से कैसे बेदखल किया जाए?

इस बैठक में शामिल होने पहुंचे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं, 'सभी विपक्षी दल यहां आए हैं और हम सब मिलकर बीजेपी को हराएंगे.' उन्होंने कहा, 'आप जानते हैं, नफरत का मुकाबला नफरत से नहीं किया जा सकता. इसे सिर्फ प्यार से ही हराया जा सकता है. कांग्रेस पूरे देश को एकजुट करने और प्यार फैलाने के लिए काम कर रही है.'

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वहीं, बीजेपी ने पटना में हुई इस बैठक पर कहा कि कांग्रेस अकेले प्रधानमंत्री मोदी को नहीं हरा सकती, इसलिए वो दूसरों का सपोर्ट मांग रही है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ये 'विडंबना' है कि आपातकाल के दौरान 'लोकतंत्र की हत्या' देखने वाले कुछ नेता कांग्रेस की छत्रछाया में पटना में इकट्ठा हुए हैं.

कौन-कौन पहुंचा था?

बिहार की राजधानी पटना में ये बैठक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास 1, अणे मार्ग पर हुई. बैठक में आरजेडी नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी मौजूद रहे.

विपक्ष की इस 'महाबैठक' में 15 पार्टियों के 32 नेता शामिल हुए. इनमें राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, एमके स्टालिन, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, लालू यादव, भगवंत मान, राघव चड्ढा और अखिलेश यादव जैसे नेता शामिल रहे.

मौजूदा समय में इन पार्टियों के पास लोकसभा की 543 में 200 से भी कम सीटें हैं. लेकिन उनका दावा है कि वो मिलकर बीजेपी को सत्ता से बाहर कर देंगे.

हालांकि, 2014 में 44 और 2019 में 50 के आसपास सीटें जीतने वाली कांग्रेस को वापसी की उम्मीद है. हिमाचल प्रदेश और फिर कर्नाटक में बड़ी जीत हासिल करने वाली कांग्रेस को 2024 में 'भारत जोड़ो यात्रा' के चलते 'कमबैक' करने की उम्मीद है.

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क्या साथ आएगा विपक्ष?

नीतीश कुमार की अगुवाई में हुई इस मीटिंग के बाद विपक्ष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की. विपक्ष दावा तो कर रहा है कि साथ मिलकर चलने पर सहमति बन गई है. 

जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया कि मीटिंग अच्छी रही और साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमति बन गई. कांग्रेस के राहुल गांधी ने भी कहा कि कुछ मतभेद जरूर हैं, लेकिन हमने साथ मिलकर आगे बढ़ने का फैसला लिया है.

तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी दावा किया कि हम सब एक हैं और मिलकर साथ लड़ेंगे. 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि साथ मिलकर चुनाव लड़ने में सहमति बन गई है, अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मुद्दे हैं, लेकिन एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि अब विपक्षी दलों की अगली बैठक 12 जुलाई को होगी. 

हालांकि, विपक्षी एकजुटता को अभी से झटका लग गया है. आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया है कि जब तक कांग्रेस दिल्ली से जुड़े अध्यादेश पर उसका साथ नहीं देगी, तब तक पार्टी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी. आम आदमी पार्टी ने बयान जारी कर कहा कि अगर कांग्रेस समर्थन को तैयार नहीं होती है तो वो शिमला में होने वाली बैठक में शामिल नहीं होगी.

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फिर क्या है तरीका?

विपक्ष अपनी एकजुटता का दावा कई बार करता है. विपक्षी नेता मंच पर साथ भी नजर आते हैं. लेकिन जब बात चुनाव में साथ लड़ने की आती है तो कहीं न कहीं इसमें दरार पड़ जाती है.

हालांकि, विपक्ष की ओर से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने अपना-अपना फॉर्मूला दिया है. इनका दावा है कि इनके फॉर्मूले को अपनाकर बीजेपी को हराया जा सकता है.

नीतीश कुमार का फॉर्मूला है- एक पर एक. यानी, एक सीट पर एक ही कैंडिडेट. उनका कहना है कि बीजेपी के खिलाफ एक ही कैंडिडेट खड़ा हो. वहां से कोई और दूसरी पार्टी अपना उम्मीदवार न उतारे. बाकी सभी पार्टियां उसका समर्थन करें.

वहीं, ममता बनर्जी का फॉर्मूला है- जो जहां मजबूत, वहां अकेले लड़े. यानी, जिस इलाके या जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत है, वो ही वहां से लड़े और दूसरी पार्टियां उसका समर्थन करे. मसलन, बंगाल में टीएमसी मजबूत है, तो वही बीजेपी के खिलाफ लड़े, उसके अलावा और दूसरी पार्टी मैदान में न उतरे.

 

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