दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कथित शराब घोटाला मामले में तिहाड़ जेल में बंद हैं. इस बीच लोकसभा चुनाव के दूसरा चरण में वोट भी डाले जा रहे हैं. फिलहाल केजरीवाल किस सीट से चुनाव लड़ेंगे या फिर लड़ेंगे भी या नहीं, ये स्पष्ट नहीं, लेकिन इतना तय है कि जेल में रहते हुए उन्हें वोट देने की इजाजत नहीं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के क्राइम इन इंडिया 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे 5 लाख से ज्यादा व्यक्ति हैं जो इस लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं कर सकेंगे क्योंकि वे जेल की सजा काट रहे हैं.
यहां सोचने की बात है कि जेल में रहते हुए जब इलेक्शन में खड़ा होने का हक मिल सकता है, तब वोटिंग का क्यों नहीं!
लगभग डेढ़ दशक पहले पटना हाई कोर्ट में ऐसा मामला आया, जिसमें जेल की सजा काट रहे एक कैदी ने चुनाव लड़ने की मंशा जताई. अदालत ने इसपर मना करते हुए कहा कि जब कैदियों को वोट देने का हक नहीं है, तो चुनाव लड़ने जैसी जिम्मेदारी की छूट कैसे मिल सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को मंजूरी दी थी लेकिन बाद में तत्कालीन यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव करते हुए जेल में बंद लोगों को चुनाव में खड़ा होने की इजाजत दे दी. ये साल 2013 की बात है. लेकिन जेल में बंद शख्स के पास वोटिंग राइट अब भी नहीं.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RP Act) 1951 की धारा 62(5) के तहत जेल में बंद कोई भी व्यक्ति वोट नहीं डाल सकता, फिर चाहे वो हिरासत में हो या सजा काट रहा हो. वोट डालना एक कानूनी अधिकार है. अगर कोई कानून का उल्लंघन करे तो उसका ये हक अपने-आप निरस्त हो जाता है. दोषी के अलावा जिनपर ट्रायल चल रहा हो, वे भी इलेक्शन में मतदान नहीं कर सकते.
कैदियों को मताधिकार से वंचित करने का इतिहास अंग्रेजी जब्ती अधिनियम 1870 से दिखता है. इस दौरान राजद्रोह या गुंडागर्दी के दोषी लोगों को अयोग्य ठहराते हुए उनसे वोट का अधिकार ले लिया जाता था. वजह ये दी गई कि जो इतने गंभीर क्राइम कर रहा है, उसे किसी भी तरह का अधिकार, वोटिंग राइट भी नहीं मिलना चाहिए.
यही नियम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 में भी लागू हो गया. इसके तहत कुछ खास तरह के अपराधों पर सजा काट रहे लोगों को मतदान से रोक दिया गया. हालांकि 1951 के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम ने इसे नए सिरे से देखा. इसमें हर शख्स जो आरोपी या दोषी हो और जेल में हो, उसका वोटिंग राइट ले लिया जाता है.
लेकिन इस प्रावधान में उन्हें छूट मिलती है, जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में हों. मतलब किसी भी वजह से सरकार को शक हो, इसके बाहर रहने से उपद्रव हो सकता है और इसे ही टालने के लिए उसे नजरबंद कर दिया गया हो. ऐसे लोग वोट डाल सकते हैं. इसके लिए उन्हें पुलिस के घेरे में पोलिंग स्टेशन ले जाया जाएगा. या फिर उसे औपचारिक तौर पर स्थानीय प्रशासन को इत्तिला करनी होगी कि वो फलां समय पर फलां बूथ में जा रहा है ताकि उनपर नजर रखी जा सके.
फिर कैदियों को चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे?
अगर दोषियों, यहां तक कि आरोपियों के पास भी वोटिंग का अधिकार नहीं तो इलेक्शन में दावेदारी का अधिकार भी नहीं होना चाहिए. इस लॉजिक को लेकर कोर्ट्स में काफी बातचीत होती रही. फिर माना गया कि कई बार राजनैतिक लड़ाई में भी लोग विपक्ष को अंदर करवा देते हैं. ऐसे में जेल में होने की वजह से ही एक काबिल शख्स चुनाव लड़ने से डिसक्वालिफाई हो जाएगा. ये सही नहीं है.
यही तर्क देते हुए साल 2013 में RP Act के सेक्शन 62(5) में संशोधन हुआ. इसमें जेल में रहते हुए इलेक्शन में दावेदारी की छूट मिल गई. वे चुनाव में कैंडिडेट हो सकते हैं, अपने लोगों के जरिए चुनावी प्रचार भी करवा सकते हैं, बस वोट नहीं दे सकते. यहां तक कि जेल से बेल पर बाहर आना भी उन्हें ये सुविधा नहीं देता. आरोपमुक्त होने या सजा पूरी होने के बाद ही कोई वोटिंग राइट का इस्तेमाल कर सकता है.