संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को ये सवाल किया कि पिछड़ी जातियों की संपन्न उपजातियों को रिजर्वेशन के दायरे से बाहर क्यों नहीं किया जा रहा. इससे वो सामान्य वर्ग के साथ कंपीटिशन करेगा. फिलहाल चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ये देख रही है कि क्या राज्य अनुसूचित जातियों और जनजातियों में सब-कैटेगरी कर सकते हैं.
इसी बीच पीठ में शामिल जज विक्रम नाथ ने ये मुद्दा उठाया. ताकतवर और तरक्की कर चुकी जातियों को आरक्षण की सूची से हटाने पर जंग अक्सर चलती रहती है.
बेंच में शामिल जस्टिस बीआर गवई जो खुद एससी वर्ग से हैं, उन्होंने कहा कि इस समुदाय का एक व्यक्ति IAS और IPS जैसी सेवाओं में जाने के बाद सबसे बढ़िया सुविधाओं तक पहुंच जाता है. क्या इसके बाद भी उनके बच्चों को आरक्षण का फायदा मिलता रहना चाहिए. ये सारी बातें पंजाब सरकार के आरक्षण से जुड़े मसले पर सुनवाई के दौरान हुईं.
बता दें कि पंजाब सरकार पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) कानून 2006 के वैध होने का बचाव कर रही है. जबकि सुप्रीम कोर्ट आर्थिक तौर पर मजबूत जातियों को इससे बाहर लाने की बात कर रहा है. इस बीच ये मुद्दा भी आता है कि कोटा सिस्टम कुछ समय के लिए दिया गया था, फिर आजादी के 7 दशक से ज्यादा बीतने के बाद भी क्यों चला आ रहा है.
आजादी के करीब 2 दशक पहले से भी रिजर्वेशन की हल्की-फुल्की शुरुआत हो चुकी थी. ब्रिटिश सरकार ने अनुसूचित जातियों को कोटा देने की पहल की. आजादी से पहले संविधान सभा बनी, जिसमें आरक्षण पर चर्चा होने लगी. कई समितियां बनती रहीं. इसी दौरान सवाल उठा कि रिजर्वेशन जाति के आधार पर मिले, न कि आर्थिक आधार पर. बहस के लिए कई बातें थीं, जैसे पिछड़ा किसे माना जाए, और उन्हें कितने समय तक कोटा में रखा जाए.
काफी चर्चा के बाद तय हुआ कि आरक्षण का असल मकसद छूआछूत को मिटाना और सबको बराबरी पर लाना है. इसके साथ ही संविधान में जातिगत रिजर्वेशन की शुरुआत हुई. इस श्रेणी में वे लोग आते हैं, जिन्हें पुराने में छूआछूत का सामना करना पड़ा था. चूंकि सामाजिक स्तर पर ये पिछले हुए थे तो जाहिर बात है कि आर्थिक तौर पर भी ये पीछे ही रह गए. इन्हें ही मुख्यधारा में लाने की कवायद शुरू हुई, जो अब तक जारी है.
आरक्षण का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सिर्फ 10 साल के लिए दिया गया था. दावा करने वाले कहते हैं कि खुद डॉ भीमराव आंबेडकर ने ऐसा माना था. हालांकि इसपर अक्सर दो बातें होती हैं. हमारे सहयोगी लल्लनटॉप में छपी खबर के मुताबिक, डॉ आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर ने कुछ समय पहले कहा था कि बाबासाहेब ने 10 सालों के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी/एसटी के लिए आरक्षण की बात की थी.
कई एक्सपर्ट मानते हैं कि बाबासाहेब टाइम लिमिट की बात जरूर करते थे लेकिन सिर्फ पॉलिटिकल रिजर्वेशन के लिए. उनका मानना था कि हर 10 सालों पर इसे रिव्यू करना चाहिए कि इसकी जरूरत बाकी है, या नहीं. शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मिल रहे कोटा को किसी टाइम लिमिट में नहीं रखा गया था.
अब जाति के आधार पर रिजर्वेशन के विरोध में काफी आवाजें उठ रही हैं. कहा जा रहा है कि अल्पसंख्यकों का वर्गीकरण आर्थिक आधार पर हो. यानी ऐसे लोगों को फायदा मिले, जिनके पास कमाई का साधन नहीं. जबकि पैसों और शिक्षा में आगे निकल चुके लोगों को आरक्षण की श्रेणी से हटा दिया जाए.
हाल में सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि रिजर्वेशन का मकसद अगर पूरा हो जाए तो ऐसे लोगों को उससे बाहर किया जाना चाहिए ताकि जरूरतमंद को लाभ मिल सके.
इस बीच इकनॉमिकली वीकर सेक्शन्स यानी EWS रिजर्वेशन का जिक्र आया. ये जनरल कैटेगरी के उन लोगों के लिए होगा जो आर्थिक तौर पर कमजोर हैं. इससे सामान्य वर्ग को 10 प्रतिशत तक कोटा मिलेगा. हालांकि इसमें भी कई कंडीशन्स हैं. जैसे EWS कोटा के तहत आने के लिए सालाना कमाई और घर-जमीन कितनी होनी चाहिए. इस कोटा से सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन मिलता है. कई राज्य अपने यहां कोटा लागू भी कर चुके.