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जंग, महामारी या फिर कुछ और... जिनपिंग के चीन में कंपनियां क्यों बना रहीं अपनी आर्मी?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग क्या किसी जंग की तैयारी कर रहे हैं या फिर कोविड जैसी महामारी आने वाली है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि वहां की कई कंपनियां अपनी आर्मी तैयार कर रही हैं. बीते एक साल में 16 कंपनियों ने अपनी आर्मी खड़ी कर दी है.

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग.

क्या चीन जंग की तैयारी कर रहा है? या फिर चीन में कोई नई महामारी आने वाली है? ये सवाल इसलिए क्योंकि चीन में इस वक्त बड़ी हलचल हो रही है. वहां की कई कंपनियां अपनी सेना तैयार कर रहीं हैं.

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सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 के दशक के बाद ये पहली बार है, जब चीन में प्राइवेट कंपनियां अपनी खुद की आर्मी खड़ी कर रही हैं. बीते एक साल में कम से कम 16 बड़ी कंपनियां अपनी आर्मी तैयार कर चुकी हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनियों ने अपने यहां पीपुल्स आर्म फोर्सेस डिपार्टमेंट बनाए हैं, जिनमें कर्मचारियों को भर्ती किया जा रहा है. इन कर्मचारियों को जंग लड़ने से लेकर किसी आपदा से निपटने तक की ट्रेनिंग दी जा रही है. इन्हें इस तरह ट्रेन्ड किया जा रहा है कि जरूरत पड़ने पर ये सेना के साथ मिलकर भी काम कर सकती हैं.

जानकारों का मानना है कि ये कॉर्पोरेट ब्रिगेड इस ओर इशारा करती है कि चीन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. अर्थव्यवस्था भी कमजोर हो रही है. ऐसे में आर्थिक हालात बिगड़ने पर अशांति फैलने का खतरा भी है. ऐसे हालातों से निपटने के लिए ही प्राइवेट आर्मी तैयार कर रही हैं.

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चीन के मिलिट्री सर्विस लॉ के मुताबिक, 18 से 25 साल की उम्र के पुरुष आर्म्ड फोर्स में शामिल हो सकते हैं. महिलाएं भी मिलिट्री में सेवा दे सकती हैं.

बिगड़ रहे हैं आर्थिक हालात

साल 2023 में चीन की जीडीपी ग्रोथ रेट 5.2 फीसदी रही थी, जो उम्मीद से बेहतर थी. लेकिन वहां हालात लगातार बिगड़ रहे हैं. बेरोजगारी और महंगाई लगातार बढ़ रही है, दिवालिया होने वाली कंपनियों की संख्या भी बढ़ रही है और स्थानीय सरकारों पर कर्ज बढ़ रहा है.

इन्हीं सब वजहों से बीते साल मजदूरों की हड़ताल और प्रदर्शन की संख्या भी तेजी से बढ़ी थी. आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में पूरे चीन में मजदूरों की हड़ताल और प्रदर्शन के 1,794 मामले सामने आए थे. जबकि, 2022 में ऐसी घटनाओं की संख्या 830 थी.

ज्यादातर सरकारी कंपनियां

रिपोर्ट बताती है कि चीन में जो कंपनियां प्राइवेट आर्मी तैयार कर रही हैं, उनमें ज्यादातर सरकारी हैं. 

पिछले साल दिसंबर में डेरी कंपनी यिली ग्रुप ने भी आर्म्ड फोर्सेस की एक यूनिट बनाई थी. यिली ग्रुप दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा डेरी प्रोड्यूसर है. ये चीन की पहले बड़ी प्राइवेट कंपनी है, जिसने आर्मी तैयार की है.

यिली ग्रुप की ये आर्म यूनिट इनर मंगोलिया में है. इस पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा है.

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इसी तरह पिछले साल सितंबर में सरकारी कंपनी शंघाई म्यूनिसिपल इन्वेस्टमेंट ग्रुप ने भी ऐसी ही यूनिट शुरू की थी. इस यूनिट को पीएलए की शंघाई यूनिट संभालती है.

इसकी जरूरत क्यों?

इसकी कई सारी वजहें हैं. जानकार मानते हैं कि ऐसा करके चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कॉर्पोरेट घरानों और देश में कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा मजबूत करना चाहते हैं. 

इसके अलावा कोविड महामारी को भी इसके पीछे की एक वजह बताया जा रहा है. कोविड जैसी महामारी या दूसरी आपदाओं से निपटने के लिए आम लोगों को आर्मी की तरह तैयार किया जा रहा है. 

इतना ही नहीं, कई कंपनियां या तो दिवालिया हो गई हैं या दिवालिया होने की कगार पर हैं. 2022 के बाद से रियल एस्टेट मार्केट भी मंदा पड़ा है. रिपोर्ट के मुताबिक, बिल्डर्स घर खरीदारों को न तो घर दे पा रहे हैं और न ही उनका पैसा वापस कर रहे हैं. इससे आम लोग प्रदर्शन कर रहे हैं.

अमेरिकी थिंक टैंक RAND से जुड़े डिफेंस रिसर्चर टीमोथी हीथ ने सीएनएन को बताया कि इसे चीनी सेना में बड़े बदलाव की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है. जिनपिंग लंबे समय से पीएलए को दुनिया की सबसे 'आधुनिक' और सबसे 'बड़ी' सेना बनाने के मकसद पर काम कर रहे हैं.

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हीथ इसे युद्ध की नई रणनीति से जोड़कर भी देखते हैं. वो मानते हैं कि लंबी जंग के वक्त में ऐसे लड़ाकों को उतारा जा सकता है, जिससे पीएलए के संसाधन को भी बचाया जा सकता है. इसके साथ ही ये जिनपिंग के चीन को युद्ध स्तर पर खड़ा करने की इच्छा भी बताता है, जैसा कि माओ के दौर में 1950 और 1960 के दशक में हुआ था.

ताइवान से शुरू होने वाली है जंग!

चीन और ताइवान के बीच 1950 से ही तनाव बना हुआ है. चीन, ताइवान को अपना हिस्सा बताता है. जबकि, ताइवान खुद को आजाद मुल्क कहता है. 

चीन और ताइवान के बीच अक्सर जंग जैसे हालात भी बन जाते हैं. जानकार मानते हैं कि जिनपिंग ताइवान से जंग छेड़ने की तैयारी भी कर रहे हैं.

सीएनएन के मुताबिक, हो सकता है कि भविष्य में जिनपिंग ताइवान के खिलाफ जंग छेड़ दें. ऐसे में चीन का ज्यादातर हिस्सा मिलिटराइज्ड हो जाएगा और बड़े शहरों को मिलिटराइज्ड जोन में बदल दिया जाएगा.

जानकारों का मानना है कि कॉर्पोरेट के जरिए आम लोगों को एक सैनिक की तरह तैयार करने का बड़ा फायदा होगा, क्योंकि इससे जंग की स्थिति में लोगों के अंदर राष्ट्रवाद की भावना भी बढ़ेगी.

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प्राइवेट आर्मी का लंबा रहा है इतिहास

चीन में प्राइवेट आर्मी जैसी यूनिट का एक लंबा इतिहास रहा है. 1920 के दशक से ही इस तरह की यूनिट बननी शुरू हो गई थी. इन्हें कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन हासिल था.

साल 1949 में देश की सत्ता संभालने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने इन यूनिट्स को सरकार, स्कूलों और कंपनियों में शामिल कर लिया था.

1949 से 1976 तक माओ के युग में ऐसी आर्म्ड यूनिट आम थीं. 1950 के दशक के आखिर में ऐसी आर्म्ड यूनिट में 22 करोड़ से ज्यादा लड़ाके थे. ये वो वक्त था जब चीन और ताइवान के बीच भयंकर तनाव था.

जब इस तरह की प्राइवेट आर्मी को लेकर आलोचनाएं हुईं, तब माओ ने कहा था कि वो अमेरिका जैसी 'शाही ताकतों' के खतरे से निपटने के लिए देश की रक्षा बढ़ा रहे हैं. लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि माओ ने इनका इस्तेमाल खुद के एजेंडे को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए किया.

1976 में माओ के निधन के बाद चीन ने अर्थव्यवस्था बढ़ाने पर जोर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ी, वैसे-वैसे ऐसी आर्म्ड यूनिट में लड़ाकों की संख्या भी कम हो गई. 2011 तक आर्म्ड यूनिट में 80 लाख लड़ाके थे. इतना ही नहीं, ज्यादातर कंपनियों ने भी आर्म्ड यूनिट को खत्म कर दिया.

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