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सौ सालों से चीन पर राज कर रही जिनपिंग की पार्टी होने लगी कमजोर, क्या होगा असर?

पिछले कुछ समय में दुनियाभर में लाखों लोगों ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CCP) को छोड़ दिया या उससे दूर होने का मन बना रहे हैं. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग खुद पार्टी के कमजोर पड़ने की बात कह चुके हैं. क्या होगा अगर चीन की सबसे मजबूत पार्टी खत्म हो जाए? क्या CCP का खत्म होना चीन को भी ले डूबेगा?

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चीन में कम्युनिस्ट पार्टी अब तक सबसे ताकतवर रही. सांकेतिक फोटो (Getty Images)
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी अब तक सबसे ताकतवर रही. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

दो साल भी नहीं बीते, जब CCP ने अपनी स्थापना के सौ सालों का जश्न मनाया था. लेकिन अब हालात अलग हैं. खुद CCP के लीडर जिनपिंग ने माना कि एकदम से करोड़ों लोग पार्टी से दूरी बना रहे हैं. इसमें आम लोग भी हैं और राजनेता भी हैं. ऐसे संस्थान भी हैं, जो कम्युनिस्ट पार्टी के लिए हमेशा वफादार रहे. जिनपिंग का ये डर उस समय सामने आया, जब दुनिया में ताकत के लिए रस्साकशी हो रही है. ये आशंका भी जताई जा रही है कि CCP के कमजोर होने पर चीन भी उतना ताकतवर नहीं रह जाएगा. 

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क्या है चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास?

ये पार्टी साल 1921 में बनी, हालांकि इसकी मजबूती तीस के दशक से दिखने लगी, जब पूर्व राष्ट्रपति माओत्से तुंग इसके लीडर बने. इससे पहले देश पर हजारों सालों का वंशवादी शासन चला आ रहा है, जहां जनता की कोई आवाज नहीं थी. ऐसे में पार्टी अपने और जनता के बीच पानी और मछली का रिश्ता बताने लगी. यहां तक कि उसने सीधे कहा कि पार्टी के सदस्य सिर्फ नेता नहीं होंगे, बल्कि आम लोग भी इसके मेंबर बन सकेंगे और एक्टिव पॉलिटिक्स का हिस्सा होंगे. 

कितने सदस्य हैं इसमें? 

पिछले साल दिसंबर में सीसीपी के पास 98 मिलियन से ज्यादा एक्टिव सदस्य थे. वहीं देशभर में 5 मिलियन पार्टी यूनिट हैं. सीसीपी का दबदबा और असर इतना है कि ये राजनीति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि आर्मी, सोसायटी और बिजनेस तक में दिखता है. 

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 concerns over collapse of xi jinping chinese communist party
चीनियों में पार्टी और देश दोनों ही छोड़ने का ट्रेंड दिखने लगा है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

सीसीपी के मेंबर्स कौन हैं?

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से आबादी का करीब 7 फीसदी हिस्सा जुड़ा हुआ है. ये आम से लेकर खास हर तबके के लोग हैं. अगर इसके स्ट्रक्चर को देखें तो सबसे ऊपर एक जनरल सेक्रेटी होता है, जिसके पास सबसे ज्यादा ताकत है. फिलहाल शी जिनपिंग इस पद पर हैं. इसके बाद स्टैंडिंग कमेटी है, जिसमें 7 मेंबर होते हैं. ये शीर्ष नेतृत्व है, जिसमें सारे के सारे पुरुष हैं.

तीसरी लेयर पोलित ब्यूरो की है, जिसमें 25 सदस्य अलग-अलग हिस्सों में काम करते हैं. फैसले लेने में इनकी भी बड़ी भूमिका होती है. सेंट्रल कमेटी चौथी लेयर है. इसके बाद नेशनल पार्टी कांग्रेस का नंबर आता है, जिसमें 2200 सदस्य होते हैं. ये सभी लेयर्स सीसीपी में काफी रुआब वाली मानी जाती हैं. आखिर में सदस्यों का नंबर आता है. ये आम लोग होते हैं, जिनकी संस्था करोड़ों में है. 

कैसे शामिल होते हैं आम लोग पार्टी में?

इसकी शुरुआत स्कूल से ही हो जाती है. बढ़िया मार्क्स लाने वाले बच्चों को स्कूल चुनता है. उन्हें पार्टी के झंडे से मिलता-जुलता लाल रंग का एक कपड़ा पहनाया जाता है. स्कूल में ही बच्चों को लीडरशिप सिखाई जाती है. आगे चलकर वे यूथ लीग का हिस्सा बन जाते हैं. लेकिन ये सब ट्रेनिंग का हिस्सा है. पार्टी में औपचारिक तौर पर शामिल होने की प्रोसेस कॉलेज में होती है. इसके लिए अप्लाई करना होता है. इसके बाद छंटनी भी होती है. कई चरणों में सलेक्ट होने के बाद किसी को पार्टी की सदस्यता मिल पाती है. 

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शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी हैं. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

कैसे होते हैं बड़े फैसले?

सीसीपी कहती है कि वो इसके लिए डेमोक्रेटिक सेंट्रलिज्म अपनाती है. इसमें खुली चर्चा होती है, जिसके बाद वोटिंग और फिर छंटनी होती है. ज्यादातर मेंबर जिस बात पर मुहर लगाते हैं, पार्टी कमेटी उसे देखकर सहमति दे देती है. हालांकि असल में ऐसा है नहीं. चीन से कई बार शिकायत आती रही कि वहां पार्टी सदस्यों के फैसलों का सम्मान नहीं करती. 

क्यों लोग पार्टी से बिदक रहे हैं?

इसकी शुरुआत कोविड में हुई. चीन में जीरो-कोविड पॉलिसी लगभग दो साल तक चलती रही. लोग घरों से आ-जा नहीं पाते थे. नौकरियां खत्म हो चुकी थीं. अस्पताल हाथ खड़े कर चुके थे. चीन के लोग घरों से बाहर निकलना चाहते थे लेकिन पार्टी ने तय किया कि जब तक कोरोना खत्म नहीं होगा, लोगों को इसी तरह रहना होगा. बड़े शहर इसकी चपेट में ज्यादा थे. तभी से लोगों का कम्युनिस्ट पार्टी के लिए मोह टूटने लगा. हालांकि इसपर कोई डेटा नहीं मिलता कि उस दौरान कितने लोगों ने पार्टी छोड़ी. 

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चीन में स्कूल-कॉलेज से ही पार्टी के लिए ट्रेनिंग शुरू हो जाती है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

क्या पार्टी कमजोर पड़ी तो देश भी कमजोर हो जाएगा?

फिलहाल इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि कम्युनिस्ट पार्टी का कमजोर होना देश पर कितना असर डालेगा. हां, ये तय है कि चीन इतने दशकों से राजनैतिक तौर पर स्थिर देश रहा. इससे वहां इकनॉमी लगातार मजबूत ही हुई. लगभग सौ सालों बाद अगर कोई दूसरी पार्टी आए तो लोगों को उसपर आसानी से भरोसा नहीं होगा. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे सालों से एक ब्रांड की चीज का इस्तेमाल करते लोग दूसरे ब्रांड पर भरोसा नहीं कर पाते, चाहे वो कितना ही बढ़िया हो. 

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चीन में ये 8 पार्टियां भी राजनैतिक ताकत रखती हैं.
- चाइना डेमोक्रेटिक लीग 
- चाइना नेशनल डेमोक्रेटिक कंस्ट्रक्शन एसोसिएशन 
- ज्यूसन सोसायटी
- रिवॉल्यूशनरी कमेटी 
- चाइना पीजेंट्स एंड वर्कर्स डेमोक्रेटिक पार्टी 
- चाइना एसोसिएशन फॉर प्रमोटिंग डेमोक्रेसी
- चाइना शी गॉन्ग पार्टी 
- ताइवान डेमोक्रेटिक सेल्फ-गवर्नमेंट लीग

रूलिंग पार्टी से कैसे हैं रिश्ते?

इन सभी पार्टियों के साथ सत्ताधारी पार्टी का रिश्ता थोड़ा कॉम्प्लिकेटेड है. शुरुआत में कम्युनिस्ट पार्टी काफी उदार रही. उसने नियम-कानून बनाते हुए सबसे ड्राफ्ट मांगा और उनकी बातें शामिल भी कीं. धीरे-धीरे पार्टी ताकतवर होती गई और बाकी सब उसके सामने बौने पड़ गए. अब हाल ये है कि इन आठों पार्टियों के नेता भी कम्युनिस्ट पार्टी ही चुनती है. यानी कुल मिलाकर, ये पार्टियां नाम की बाकी हैं. ऐसे में अगर रूलिंग पार्टी पर से लोगों का भरोसा कम हुआ, तो चीन में बड़ा बवाल मच सकता है. 

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