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कांग्रेस ने रिजिजू पर लगाया सदन को गुमराह करने का आरोप, प्रिविलेज कमेटी बैठ जाए तो क्या होगा?

हाल में कांग्रेस ने भाजपा नेता किरेन रिजिजू के खिलाफ विशेषाधिकार हनन यानी ब्रीच ऑफ प्रिविलेज नोटिस जारी किया. पार्टी का आरोप है कि रिजिजू ने कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को लेकर झूठे दावे कर सदन को गुमराह करना चाहा. तमिलनाडु से सांसद मणिकम टैगोर ने लोकसभा अध्यक्ष से इस पर कार्रवाई की मांग की है. आरोप साबित हो जाएं तो कई बार कड़ी कार्रवाई भी होती है.

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केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ प्रिविलेज नोटिस जारी हो चुका. (Photo- PIB)
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ प्रिविलेज नोटिस जारी हो चुका. (Photo- PIB)

सांसद बिना किसी दबाव के अपनी बात रख सकें, इसके लिए उन्हें कई विशेषाधिकार दिए गए हैं. इनका मकसद यह पक्का करना है कि वे निश्चिंत होकर अपनी जिम्मेदारियां निभाएं. लेकिन अगर कोई इसका फायदा उठाता दिखे तो उसके खिलाफ ब्रीच ऑफ प्रिविलेज का नोटिस भी निकल सकता है. हाल में कांग्रेस ने भाजपा नेता किरेन रिजिजू के खिलाफ ऐसा ही नोटिस पेश किया. लेकिन क्या हैं ये प्रिविलेज और आगे क्या हो सकता है? 

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किरेन रिजिजू ने दावा किया कि कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए संविधान में बदलाव का सुझाव दिया है. आरोपों में कहा गया कि शिवकुमार ने राज्य में मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने को लेकर संविधान में संशोधन करने की कसम खाई है. इधर शिवकुमार ने इन बयानों को झूठा और अपमानजनक बताते हुए खारिज कर दिया. इसके बाद से कांग्रेस रिजिजू पर नाराज है. यहां तक कि पार्टी ने संसद में गलत बयानबाजी को लेकर सोमवार को उनके खिलाफ प्रिविलेज नोटिस जारी कर दिया. 

क्या हैं प्रिविलेज और कैसे काम करते हैं

लोगों के चुने हुए नेता उनकी दिक्कतों या जरूरतों पर खुलकर बात कर सकें, इसके लिए उन्हें कुछ विशेष अधिकार मिलते हैं. इन्हें ही पार्लियामेंट्री प्रिविलेज कहते हैं. इसकी वजह से वे संसद में बोलते समय वे किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई के डर से बचे रहते हैं. 

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congress demand of breach of privilege notice to kiren rijiju lok sabha photo India Today

किस तरह के हैं ये प्रिविलेज

इसका कोई खास या सीधा जिक्र नहीं. वैसे ये मोटे तौर पर दो तरह के हैं

कलेक्टिव प्रिविलेज, जिसमें संसद के अंदर की कार्यवाही पर अदालत या कोई संस्था सवाल नहीं उठा सकती. इसके तहत संसद को अपने सदस्यों के आचरण पर खुद फैसला लेने का अधिकार होता है. साथ ही संसद चाहे तो सीक्रेट सेशन भी बुला सकती है, जहां मीडिया या बाहरी लोग शामिल न हो सकें. 

व्यक्तिगत विशेषाधिकार भी हैं, जो हर सांसद को मिलते हैं. मसलन, सत्र के दौरान उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, जब तक कि मामला गंभीर अपराध जैसे हत्या से जुड़ा न हो. साथ ही संसद में कही गई बातों के लिए उन पर कोई कानूनी एक्शन नहीं लिया जा सकता. 

प्रिविलेज नोटिस तब लाया जाता है जब

- किसी नेता ने संसद में झूठा या भ्रामक बयान दे दिया हो, जिससे सदन गुमराह होता दिखे. 

- किसी दूसरे सांसद को धमकाने या डराने की कोशिश की जाए ताकि वो अपनी बात न रख सके. 

- किसी सांसद की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए गलत बयान दिए जाएं. 

- सदन की कार्यवाही में रुकावट डालने की कोशिश करे या गलत व्यवहार करे.
 
- सरकार या किसी संस्था से जुड़ी जानकारी को तोड़-मरोड़ कर पेश करे. 

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कोई भी सांसद विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे सकता है अगर उसे लगे कि किसी सांसद ने सदन की मर्यादा तोड़ी है. वह इसके लिए सीधे कोई एक्शन नहीं ले सकता, बल्कि स्पीकर या राज्यसभा सभापति को नोटिस देता है. वे तय करते हैं कि मामला गंभीर है या नहीं. अगर आरोप में दम लगे तो उसे प्रिविलेज कमेटी को भेजा जाता है. समिति आगे जांच करेगी और रिपोर्ट सदन को देगी.

congress demand of breach of privilege notice to kiren rijiju photo Getty Images

क्या हो सकता है एक्शन

अपराध कितना गंभीर है, इस आधार पर सजा तय होती है. जैसे माफी मांगने का आदेश, चेतावनी या सस्पेंशन भी. लेकिन निलंबन जैसी सजा बेहद गंभीर मामलों में ही दी जा सकती है. अक्सर इसपर अनौपचारिक चेतावनी दी जाती है ताकि आगे सांसद ऐसी कोई बात या हरकत न करे. 

पहले भी प्रिविलेज नोटिस के तहत कार्रवाई हो चुकी. इसमें सबसे चर्चित मामला पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रहा. साल 1978 में शीतकालीन सेशन के दौरान लोकसभा ने उन्हें संसद की अवमानना और विशेषाधिकार हनन के लिए जेल भेजने का फैसला किया था. ये पहला मामला था जब किसी सांसद और पूर्व पीएम को प्रिविलेज नोटिस पर जेल जाना पड़ा. 

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