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कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को वायनाड सीट से नामांकन दाखिल कर दिया. इस दौरान उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी साथ थीं. राहुल आज सुबह ही हेलिकॉप्टर से वायनाड पहुंचे थे. इसके बाद उन्होंने बहन प्रियंका के साथ रोडशो भी किया.
राहुल गांधी के सामने बीजेपी से के. सुरेंद्रन और सीपीआई की एनी राजा हैं. 2019 में राहुल पहली बार इस सीट से जीते थे. उस चुनाव में उन्होंने 4 लाख वोटों से ज्यादा के अंतर से चुनाव जीता था.
दक्षिणी राज्य केरल में पड़ने वाली वायनाड सीट कांग्रेस के लिए हमेशा से सुरक्षित रही है. परिसीमन के बाद 2009 में वायनाड लोकसभा सीट बनी थी. तभी से लगातार तीन चुनाव से यहां कांग्रेस ही जीत रही है.
सबसे बड़ी जीत
वायनाड में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा. 2019 में राहुल गांधी ने वायनाड लोकसभा में आने वाली सभी सातों विधानसभा सीटों पर बड़ी जीत हासिल की थी. वायनाड में राहुल ने 4.3 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. दूसरे नंबर पर सीपीआई नेता पीपी सुनीर थे. वायनाड में कांग्रेस की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत थी.
पांच साल बीत जाने और 10 हजार किलोमीटर लंबी दो यात्राएं करने के बाद कांग्रेस को भरोसा है कि वायनाड में कोई भी राहुल गांधी का मुकाबला नहीं कर पाएगा.
दक्षिण में मजबूत कांग्रेस
वायनाड से 2009 और 2014 में कांग्रेस के दिवंगत नेता एमआई शनावास ने जीत हासिल की थी. शनावास 2018 तक अपने निधन तक यहां से सांसद थे.
2009 में तो शनावास को जीतने में कोई दिक्कत नहीं हुई. लेकिन 2014 में उन्हें सीपीआई नेता सत्यन मोकेरी से कड़ी टक्कर मिली. उस चुनाव में शनावास 20,870 वोटों के अंतर से ही जीते थे. हालांकि, उस चुनाव में कांग्रेस ने निर्दलीय उम्मीदवार सत्यन थजेमांगड को भी समर्थन दिया था, जिसे 5,746 वोट मिले थे.
राहुल गांधी के आने से वायनाड हाईप्रोफाइल सीट बन गई. 2019 में कांग्रेस आलाकमान राहुल के लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश में था. ये वो वक्त था, जब अल्पसंख्यक निर्णायक भूमिका में थे. और उस वक्त वायनाड से ज्यादा सुरक्षित सीट कोई नहीं थी.
लेकिन, इस वजह से बीजेपी ने राहुल गांधी पर जोरदार हमला भी किया. 2019 में महाराष्ट्र में एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल पर तंज कसते हुए कहा, 'शहजादा चुनाव लड़ने के लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश में माइक्रोस्कोप लेकर निकला. और ऐसी सीट चुनी जहां बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हैं.'
हालांकि, इस बार चीजें काफी बदल गईं हैं. वायनाड में मेन-एनिमल कॉनफ्लिक्ट की घटनाएं बढ़ गईं हैं, जिस कारण स्थानीय लोग अक्सर प्रदर्शन करते रहते हैं. इसके अलावा वायनाड में राहुल की गैरमौजूदगी भी इस बार चर्चा में है.
बीजेपी ने वायनाड से अपने प्रदेशाध्यक्ष के. सुरेंद्रन को उम्मीदवार बनाया है. उम्मीदवार बनने के बाद सुरेंद्र ने पहला बयान देते हुए कहा था कि वायनाड में राहुल गांधी से ज्यादा तो जंगली हाथियों ने दौरा कर लिया है.
सूत्रों का कहना है कि वायनाड से ही दोबारा चुनाव लड़ना राहुल गांधी की ही पसंद थी. बताया जा रहा है कि राहुल नहीं चाहते थे कि ऐसा संदेश जाए कि उन्होंने उन वोटर्स को छोड़ दिया, जिन्होंने उनकी राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई में उनका साथ दिया. हालांकि, अभी भी राहुल की ही जीत की उम्मीद है, लेकिन पिछली बार की तुलना में इस बार उनकी जीत का अंतर थोड़ा कम हो सकता है.
वायनाड लोकसभा के अंदर सात विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें कालपेट्टा, मनंतवडी, सुल्तानबथेरी, थिरुवमबडी, एरनाड, नीलांबुर और वंदूर हैं. कालपेट्टा और मनंतवडी अनुसूचित जनजाति (एसटी) तो वंदूर अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है.
2021 में जब केरल में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब मनंतवडी, थिरुवमबडी और नीलांबुर सीट सीपीएम ने जीत ली थी. जबकि, बाकी की चार सीटें कांग्रेस की अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के पास गई थीं. ये सब तब हुआ था, जब राज्य में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की लहर थी.
वायनाड में एससी 3%, एसटी 9.5%, मुस्लिम 32% और ईसाई 13% वोटर्स हैं. हिंदू वोट बैंक काफी कम है, जो वायनाड को राहुल गांधी के लिए सबसे सुरक्षित सीट बनाता है.
माना जा रहा है कि राहुल गांधी को इस बार काफी पसीना बहाना पड़ सकता है और पहाड़ी इलाकों में जमकर प्रचार करना पड़ सकता है.
दक्षिण का रुख
पिछले साल जब विपक्षी पार्टियों का गठबंधन I.N.D.I.A. बना था, तब ही लेफ्ट ने राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर आपत्ति जताई थी. उनका कहना था कि गठबंधन के प्रमुख चेहरे को बीजेपी के मजबूत गढ़ से चुनाव लड़ना चाहिए, न कि केरल में अपने ही सहयोगी के खिलाफ.
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा, 'राहुल गांधी यहां किससे लड़ने आ रहे हैं? क्या हम सकते हैं कि वो केरल में सुरेंद्रन के खिलाफ लड़ रहे हैं? क्या हम कह सकते हैं कि वो बीजेपी के खिलाफ लड़ेंगे? यहां तो मुख्य विपक्ष एलडीएफ है. वो यहां एलडीएफ का मुकाबला करने के लिए आ रहे हैं.' हालांकि, कांग्रेस का कहना है कि राहुल गांधी यहां से मौजूदा सांसद हैं, इसलिए वो यहां से चुनाव लड़ रहे हैं.
राहुल गांधी पिछली बार अपनी पारपंरिक सीट अमेठी से हार गए थे. उत्तर भारत में कांग्रेस कमजोर होती जा रही है, इसलिए पार्टी ने अब दक्षिण की ओर रुख किया है.
कन्याकुमारी से कश्मीर तक जब 'भारत जोड़ो यात्रा' खत्म हुई, तो राहुल गांधी वायनाड आए थे और उन्होंने इसे 'अपना घर' बताया था. बीते पांच साल में राहुल ने यहां की जनता से अपने रिश्ते बनाकर रखे हैं. राहुल जब भी यहां आते हैं तो वो शिक्षा और स्वास्थ्य पर बात करते हैं.
कांग्रेस दक्षिण पर कितना फोकस कर रही है, इसे ऐसे समझिए कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल 19 दिन तक केरल में रहे थे और वायनाड समेत कई जिलों से गुजरे थे. इस यात्रा ने कांग्रेस काडर में नई ऊर्जा भर दी थी. अपनी यात्रा के दौरान राहुल पैदल आगे बढ़े, लोगों से गले मिले, बातचीत की, उनके साथ नारियल पानी पिया और इन सबसे यही संदेश दिया कि मैं यहां रहने के लिए आया हूं.