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इंडियन बच्चों को पेरेंट्स से छीनकर अनाथालय भेज रहे ये देश, कुछ ही सालों में बढ़ा ट्रेंड, G20 में उठ सकता है मामला?

फसादों से दूर रहने वाले नॉर्वे में कुछ अलग पक रहा है. ये बात हम नहीं, कई देश कहते रहे. असल में इसकी वजह है, वहां की विवादित चाइल्ड केयर पॉलिसी. बच्चों की सुरक्षा के नाम पर उन्हें पेरेंट्स से जबरन अलग करके अनाथालयों में भेजा जा रहा है. खास बात ये है कि ऐसा भारत और बाकी दक्षिण एशियाई देशों के साथ होता है, वेस्ट के साथ नहीं.

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कई देशों में चाइल्ड केयर संस्थाएं संदेह के घेरे में हैं. सांकेतिक फोटो (unsplash)
कई देशों में चाइल्ड केयर संस्थाएं संदेह के घेरे में हैं. सांकेतिक फोटो (unsplash)

G20 में कई मुद्दों पर बात होगी. इसमें एक मसला विदेशों में भारतीय बच्चों की कस्टडी भी हो सकता है. सुप्रीम और हाई कोर्ट के कई रिटायर्ड जजों ने मिलकर जी20 में शामिल देशों से ये अपील की. चिट्ठी में लिखा गया कि हाल के दशक में बहुत से भारतीय परिवार काम के लिए दूसरे देशों में गए. बहुतों के पास छोटे बच्चे हैं. लेकिन लगातार ऐसे केस आ रहे हैं, जिसमें पेरेंट्स पर अपने ही बच्चों के शोषण का आरोप लगाकर देशों की चाइल्ड केयर संस्थाएं बच्चे छीन रही हैं. 

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किन देशों पर लग रहे आरोप

नॉर्वे, जर्मनी, फिनलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे बड़े देशों में ऐसा हो रहा है. सबसे ज्यादा परेशानी की बात ये है कि बच्चे सरकारी कस्टडी में अनाथालय में रख दिए जाते हैं. केस हारने पर पेरेंट्स अपने बच्चों से हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं. या फिर केस लंबा खिंचे तो भी कई देशों का नियम है कि फॉस्टर केयर में 2 साल रह चुका बच्चा वापस घर नहीं लौट सकता. इसपर लगातार बवाल मचता रहा.

भारत का चर्चित मामला

कुछ महीनों पहले बेबी अरिहा का मामला खूब उछला था. भारतीय मूल की इस डेढ़ साल की बच्ची को जर्मनी के बाल सुरक्षा अधिकारियों ने माता-पिता से अलग करके अनाथालय में डाल दिया. अधिकारियों को शक था कि बच्ची के साथ यौन शोषण हुआ है. पेरेंट्स की लाख कोशिशों के बाद भी केस पर जल्दी फैसला नहीं हुआ. अब जर्मनी के नियम के मुताबिक हो सकता है कि बच्ची हमेशा के लिए फॉस्टर केयर में ही रह जाए. 

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controversial child care policy in norway and germany g20 summit issue photo X

क्या होता है नॉर्वे में

नॉर्वे इसपर ज्यादा घिरा रहा. वहां चाइल्ड वेलफेयर एजेंसी को बेर्नवर्नेट कहते हैं, जिसका मतलब है बच्चों की सुरक्षा. एजेंसी को कानूनी हक है कि वो संदेह के आधार पर भी फैसला ले सके. जब भी उसे लगता है कि माता-पिता बच्चे की अनदेखी कर रहे हैं या उसके साथ किसी तरह की हिंसा हो रही है तो वो तुरंत एक्शन में आती है. किसी तरह का सवाल-जवाब या सफाई नहीं मांगी जाती, बल्कि बच्चे को तपाक से उठाकर फॉस्टर केयर या किसी वेलफेयर संस्था में भेज दिया जाता है.

कैसे पता लगता है एजेंसी को

अक्सर ऐसे मामलों में पड़ोसी शामिल होते हैं. घर से कोई भी ऊंची आवाज या बच्चों का रोना सुनकर वे फटाक से कॉल कर देते हैं कि फलां घर में बच्चों के साथ हिंसा हो रही है. चाइल्ड केयर एजेंसी के पास इतना अधिकार है कि वो बिना जांच के बच्चे को घर से ले जा सकती है. कई बार बच्चे स्कूल से भी सीधे उठाकर अनाथालयों में छोड़ दिए गए. कई बार खुद बच्चे भी ऐसा करते हैं. 

controversial child care policy in norway and germany g20 summit issue photo Pixabay

डराने वाले हैं डेटा

सिर्फ साल 2014 में 1,665 बच्चों को उनके पेरेंट्स से अलग कर दिया गया. ये वही बच्चे थे, जिनके माता-पिता बाहर और गरीब देशों से आए थे. संडे गार्जियन की मानें तो सिर्फ नॉर्वे में ही हर साल डेढ़ हजार से ज्यादा बच्चे पेरेंट्स से छीन लिए जाते हैं. 

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हिंसा के कुछ मामले सही भी होते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में फर्क कल्चर का होता है. एक श्रीलंकाई कपल के 3 बच्चे इसलिए छीन लिए गए क्योंकि पड़ोसी ने एक बच्चे को डांटता सुन लिया था. जो और जैकलिन जोसेफ नाम के इस कपल ने इसके बाद कोर्ट में केस कर दिया कि नॉर्वे विदेशी मूल के पेरेंट्स के साथ भेदभाव करता है. 

ऐसी गलतियों पर हो सकता है एक्शन

- इन देशों में बच्चों को मारना-पीटना बिल्कुल मना है. 

- उनसे ऊंची आवाज में बात नहीं की जा सकती. 

- बुरे शब्द, जिन्हें हम गाली भी कहते हैं, किसी हाल में नहीं देनी है.

- कई बार उन्हें जोर से गले लगाने या चूमने को भी शोषण मान लिया जाता है. 

- पेरेंट्स ज्यादा उम्र के हों और बच्चा छोटा हो, तो एजेंसी मान लेती है कि बच्चे को पूरी केयर नहीं मिल पा रही. 

- अगर मेल किड को मां या पिता शौक से फ्रॉक पहना दें तो भी बेर्नवर्नेट की नजर में ये क्रूरता है. 

- हाथ से खाना खिलाना यानी हाइजीन को लेकर लापरवाही बरतना.

controversial child care policy in norway and germany g20 summit issue photo Pixabay

पेरेंट्स ने कर दिया उल्टा केस

यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स (ECHR) में कई मामले चल रहे हैं, जिसमें अभिभावकों ने आरोप लगाया कि नॉर्वे की सरकार ने उनके बच्चों को किडनैप कर लिया. यहां तक कि नॉर्वे के ही 170 अधिकारियों ने वेलफेयर एजेंसी को सुधारने या बंद करने की मांग उठा डाली. उनका कहना था कि बच्चों की हर समस्या का हल उन्हें फॉस्टर केयर में डाल देना नहीं है. इससे वे अपने माता-पिता से दूर हो जाते हैं, जिसका आगे चलकर बहुत खराब असर होता है.

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ये धारा देती है प्राइवेसी की छूट

यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स (ECHR) का आर्टिकल 8 सबको अपनी पारिवारिक और निजी जिंदगी में प्राइवेसी का हक देता है. इसी के हवाले से मामले दर्ज हो रहे हैं.  हाल के सालों में कोर्ट में करीब 40 मामले आए, जिनमें अमीर देशों ने काम करने आए विदेशी पेरेंट्स से उनके बच्चे छीनकर अनाथालय में डाल दिए. 

किस देश में कितने सेफ हैं बच्चे? 

यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि पूरे दुनिया में बच्चों के लिए आइसलैंड सबसे सेफ देश है. यहां पेरेंट्स या कोई भी बच्चों से मारपीट या ऊंची आवाज में बात नहीं करता है. इसके अलावा नॉर्वे, स्वीडन, एस्टोनिया और पुर्तगाल को चाइल्ड-फ्रेंडली देश माना गया. ये डेटा 41 हाई और मिडिल इन्कम देशों से लिया गया.

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