चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने ट्विटर (अब एक्स) पर एक पोस्ट शेयर की, जिसके बाद से बवाल मचा हुआ है. पोस्ट में चीन के जिस नए ऑफिशियल मैप का जिक्र है, उसमें भारत का अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन भी चीन का हिस्सा दिख रहे हैं. नए नक्शे में भारत के हिस्सों के अलावा चीन ने ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर को भी चीनी क्षेत्र में शामिल किया. ये नया मैप वहां की नेचुरल रिसोर्स मिनिस्ट्री ने निकाला है. इसके बाद से चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर भारत समेत कई देश भड़के हुए हैं.
पहला नक्शा किसने बनाया, इसपर विवाद
वैसे शुरुआत हजारों साल पहले ही हो चुकी थी. तब गुफाओं में रहते हमारे पूर्वज अपने आसपास जंगल-नदियों या किसी तरह के खतरे को गुफा की दीवारों पर उकेरा करते. 6100 ईसापूर्व एनातोलिया (अब तुर्की) में गुफाओं पर कुछ पेंटिंग्स हैं, जिनके बारे में दावा किया जाता है कि असल में नक्शा है.
15वीं सदी में आधिकारिक नक्शा तैयार हुआ
ऑफिशियल तौर पर पहला मैप 15वीं सदी के मध्य में इटली में बनाया गया. चमड़े पर बने नक्शे को प्लेनस्फरो कहा गया. ये लैटिन शब्द है, जिसमें प्लेनस का अर्थ है चपटा और स्फेरस यानी गोल. मैप आज भी इटली के वेनिस शहर के एक म्यूजियम में रखा हुआ है. नक्शा इतना लंबा-चौड़ा है कि खोलकर बिछाया जाए तो कई किलोमीटर में फैल सकता है. चमड़े पर बना होने के कारण ज्यादातर हिस्से खराब हो चुके और नक्शा बस नाम का ही बाकी है.
खोजना यानी शासक बनना
दुनिया खोजने और नक्शे बनाने में पुर्तगाल और इटली का काफी काम रहा. साल 1492 में इटैलियन सैलानी क्रिस्टोफर कोलंबस जब अपनी पहली समुद्री यात्रा पर निकले तो उन्होंने भारत का जिक्र सुना रखा था. इसे ही खोजते हुए वे सैन सेल्वाडोर (अब बहामास) पहुंच गए. हैती और डॉमिनिकन रिपब्लिक की खोज का श्रेय भी कोलंबस को जाता है. मजे की बात ये है कि खोजते हुए सैलानी जहां पहुंचते, वापसी के बाद अपने देश की सेना लेकर वहां आ धमकते और नई जमीन पर कब्जा कर लेते.
बाद में एटलस बना. नक्शों की प्रिटिंग होने लगी. तमाम देश खोजे जा चुके थे. कब्जे और आजादी की लड़ाइयां हो चुकी थीं. अब लगभग तय हो चुका है कि किस देश का नक्शा कैसा दिखता है, उसमें कहां तक का हिस्सा शामिल है.
The 2023 edition of China's standard map was officially released on Monday and launched on the website of the standard map service hosted by the Ministry of Natural Resources. This map is compiled based on the drawing method of national boundaries of China and various countries… pic.twitter.com/bmtriz2Yqe
— Global Times (@globaltimesnews) August 28, 2023
तब क्यों बदलता रहता है मैप
अक्सर ये बात सीमावर्ती इलाकों में दिखती है. दो देशों की सीमाएं बंटी हुई तो हैं, लेकिन बहुत से देशों के बॉर्डर विवादित हैं. इनपर दोनों ही देश अपना दावा करते हैं. ऐसे हालातों में कई बार डिस्प्यूटेड जमीन पर रहने वाले अपना एक अलग देश बना लेना चाहते हैं और इसमें सफल भी होते हैं. तब नक्शे बदलते हैं. गूगल अर्थ पर विवादित इलाकों को डैश वाली ग्रे लाइन के साथ दिखाया जाता है ताकि कोई भी देश इसपर बवाल न खड़ा करे.
कौन करता है जगहों के नाम तय
लगभग 130 सालों से यूएस बोर्ड ऑन जियोग्राफिक नेम्स अपने यहां राज्यों और उनके भी हिस्सों के नाम तय कर रहा है. ये संस्था यह तय करती है कि सरकारी नक्शे पर जगहों के ठीक नाम जाएं ताकि कोई कन्फ्यूजन न रहे. इसमें CIA, गवर्नमेंट पब्लिशिंग ऑफिस, लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस और यूएस पोस्टल सर्विस के अधिकारी काम करते हैं. ये कमेटी खुद से कोई नाम तय नहीं कर लेती, बल्कि उस जगह के लोगों से नाम लेती और फिर तय करती है. साथ ही साथ ही ये स्टैंडर्ड नक्शा तैयार करती है.
ये एजेंसी देखती है थीमेटिक नक्शों का काम
भारत में नक्शे को चाक-चौबंद रखने का काम कई सरकारी संस्थाएं मिलकर करती हैं. नेशनल एटलस ऑर्गेनाइजेशन इनमें से एक है. ये स्थानीय भाषाओं में भारत का नक्शा बनाता है. साथ ही इसका काम थीमेटिक मैप तैयार करना भी है, जैसे अगर पर्यावरण पर कोई रिसर्च हुई, जिसमें अलग तरीके से भारत के राज्यों को हाईलाइट करना है तो ये काम यही संस्था करेगी.
सर्वे ऑफ इंडिया भी इसपर नजर रखती है
ये संस्था साल 1767 से भारत की मैपिंग कर रही है. वैसे तो इसका काम सैन्य मैपिंग रहा, लेकिन आजादी के बाद काम और बढ़ा. साठ के दशक में SOI ने देश का एरियल फोटोग्राफ निकाला. लगभग 15 साल पहले इसने पूरे देश के सभी तरह के नक्शों का रिवीजन किया ताकि कहीं किसी को भी कोई कन्फ्यूजन न रहे. अगर दो देशों के बीच कोई विवादित बाउंड्री हो तो SOI इसपर वही करती है जिसका उसे सेंटर से निर्देश मिले. हमारे पास नेशनल मैप पॉलिसी भी है, जो सबकुछ स्पष्ट रखने का काम करती है.
यहां पर होती है गड़बड़ी
कुछ-कुछ सालों बाद लगभग हर देश अपने नक्शों को रिवाइज करता है. इसे मैपिंग साइकल कहते हैं. कई बार इसी साइकल के दौरान देश कुछ गड़बड़ियां जानबूझकर करते हैं, जैसे चीन ने अभी की. वो विवादित इलाके को चुपके से अपने नक्शे का हिस्सा बता रहा है. मैपिंग साइकल में गलतियों को रोकने के लिए कोई इंटरनेशनल संस्था फिलहाल नहीं है. यूनाइटेड नेशन्स में ये मुद्दा उठाने पर बातचीत तो हो सकती है लेकिन आखिरकार मसला दो देशों को ही सुलझाना होता है.