ब्रिटिश लीडरों ने चरमपंथ की नई परिभाषा जारी की है. इसके तहत कुछ खास समूहों को सरकारी फंडिंग और अधिकारियों से मीटिंग से रोक दिया जाएगा. इन ग्रुप्स को क्रिमिनलाइज नहीं किया जाएगा, लेकिन कई पाबंदियां लग जाएंगी. एक्सट्रीमिज्म की इस परिभाषा के लागू होते ही वहां विरोध होने लगा है.
साल 2011 में चरमपंथ की सरकारी परिभाषा कुछ अलग थी. इसके अनुसार, ब्रिटिश वैल्यू और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली विचारधारा को इसके तहत रखा गया. इसमें अलग-अलग धर्म और आस्था को इज्जत देने की बात भी कही गई, लेकिन ज्यादा जोर लोकतंत्र पर था.
नई परिभाषा आइडियोलॉजी पर ज्यादा बात करती है. ये कहती है कि अलग कोई विचारधारा हिंसा, नफरत और विरोध पर फोकस करती है. ऐसी सोच, जिससे यूके की उदार सोच को नुकसान पहुंचे, या जिस सोच की वजह से वातावरण खराब होता हो, वो चरमपंथ है.
इससे क्या बदलेगा
ऐसे ग्रुप्स को सरकारी फंडिंग नहीं दी जाएगी, जो नई परिभाषा के तहत आते हैं. न ही सरकारी अधिकारी ऐसे समूह के लोगों से बात कर सकेंगे.
क्यों पड़ी बदलाव की जरूरत
सरकार का कहना है कि 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद से उनके यहां भी चरमपंथी सोच बढ़ी. वे नई परिभाषा के जरिए एक्सट्रीम राइटविंग और इस्लामिक चरमपंथियों, दोनों पर लगाम लगाना चाहते हैं.
इन समूहों पर होगा असर
दक्षिणपंथी समूह, जैसे ब्रिटिश नेशनल सोशलिस्ट मूवमेंट और पेट्रियोटिक अल्टरनेटिव इसके दायरे में आ सकते हैं. मुस्लिम समूहों की बात करें तो मुस्लिम एसोसिएशन ऑफ ब्रिटेन, मुस्लिम एंगेजमेंट जैसे ग्रुप्स पर लगाम कसी जाएगी.
यूरोप में है अलग ही माहौल
यूके का ये फैसला तब आया है, जब यूरोप के ज्यादातर देशों में इस्लामिक चरमपंथ के खिलाफ लहर चल रही है. बता दें कि यूरोप में काफी मुस्लिम शरणार्थी आ चुके हैं. साल 2016 में फ्रांसीसी मुस्लिमों की आबादी 57 लाख पार कर चुकी थी. इसके बाद जर्मनी का नंबर आता है, जहां 49 लाख मुस्लिम बसे हुए हैं. यूनाइटेड किंगडम, इटली, नीदरलैंड, स्पेन, बेल्जियम, स्वीडन जैसे देश इनके बाद हैं. यूरोपियन यूनियन के तहत आने वाले साइप्रस में कुल आबादी का करीब 26 मुस्लिम ही हैं.
कहां हो रही है समस्या
खुली सोच वाले यूरोप में जैसे-जैसे इनकी आबादी बढ़ी, रहन-सहन में कट्टरता भी बढ़ने लगी. वे बाजार, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज हर जगह दिखने लगे. यही बात यूरोप को परेशान करने लगी. अपनी घटती आबादी से वे पहले से डरे हुए थे. इसी समय यूरेबिया टर्म आया. यानी यूरोप का अरबीकरण. इस थ्योरी पर यकीन करने वाले मानते हैं कि मुस्लिम किसी छिपे हुए एजेंडा के तहत उनके यहां पहुंचे हैं. वे आबादी बढ़ाती जाएंगे और फिर उनके देश पर कब्जा कर लेंगे.
नॉर्वे की आबादी को लगता है डर
साल 2008 में एक किताब आई थी- स्टील्थ जेहाद. इसके लेखक रॉबर्ट स्पेंसर ने माना कि इस्लाम हर देश का इस्लामीकरण कर देगा, अगर वक्त रहते रोक न लगाई गई तो. किताबों का असर था या आसपास माइनोरिटी के बढ़ने का, कि यूरोप और स्कैंडिनेवाई देश भी यही मानने लगे. नॉर्वेजियन सेंटर फॉर होलोकास्ट एंड माइनोरिटी स्टडीज ने एक पोल में पाया कि 31% नॉर्वेजियन आबादी मानती है कि आज नहीं तो कल, मुस्लिम उनके देश को हड़प लेंगे.
इस तरह की बातों के बाद से सरकारी तंत्र से लेकर आम लोग कट्टर हो रहे हैं. साल 2021 में फ्रांस की नेशनल असेंबली ने एक विवादित बिल पास किया, जिसका नाम था- इस्लामिस्ट सेपरेटिज्म. इसके तहत कट्टरपंथ को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए. जैसे, इसके तहत उन स्कूल और शिक्षण संस्थानों को बंद करवाया जा सकेगा, जो शिक्षा के बहाने ब्रेनवॉश करते हैं. फ्रांस में फ्रेंच इमाम ही होंगे और विदेश से सीखकर आने वाले या विदेशी लोगों को इमाम नहीं बनाया जाएगा. डेनमार्क में तो मुहिम ही चल पड़ी- Stop Islamiseringen af Danmark, मतलब डेनमार्क का इस्लामीकरण बंद करो.