scorecardresearch
 

आंसू गैस कैसे काम करती है, दुनियाभर में भीड़ को रोकने के लिए क्या-क्या किया जाता है?

आंसू गैस से लेकर वॉटर कैनन जैसे कई तरीके हैं, जो भीड़ के कंट्रोल में इस्तेमाल होते आए. इन्हें क्राउड-कंट्रोल वेपन (CCW) कहते हैं. ये इस तरह से डिजाइन होते हैं कि शरीर के किसी खास अंग को ट्रिगर करें और थोड़ी देर के लिए लोगों को परेशान कर दें. इस दौरान पुलिस को लोगों पर काबू करने का समय मिल जाता है.

Advertisement
X
दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन जारी है. (Photo- Getty Images)
दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन जारी है. (Photo- Getty Images)

कृषि कानून पर किसान आंदोलन जारी है. इसी पर शंभू बॉर्डर पर किसान और सुरक्षाबल आमने-सामने हो गए. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे गए. तब से ही इसकी चर्चा हो रही है. आंसू गैस भारत ही नहीं, ज्यादातर देशों में एंटी-प्रोटेस्ट वेपन बना रहा. इसके अलावा भी कई चीजें हैं, जो प्रदर्शनकारियों या दंगाइयों को डराने के काम आती हैं. 

Advertisement

केमिकल इरिटेंट्स हैं टॉप पर

आंसू गैस इसी में शामिल है. इसमें वे केमिकल होते हैं, जिससे म्यूकस मेंब्रेन में दिक्कत होती है, आंख-नाक से पानी आता है. छींक और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. ये शॉर्ट-टर्म रहता है. थोड़ी देर बाद अपने-आप ठीक हो जाता है. कई और केमिकल इरिटेंट होते हैं, जो स्किन पर असर डालते हैं. इससे खुजली और जलन होने लगती है. इस दौरान प्रोटेस्ट करने वाले तितर-बितर जाते हैं. 

वॉटर कैनन भी आजमाया हुआ हथियार

इसमें पानी की तेज धार एक खास दिशा में छोड़ी जाती है, जो प्रदर्शन को बिखरा दे. वैसे वॉटर कैनन ज्यादातर आग को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल होते रहे, लेकिन दंगा या प्रोटेस्ट कंट्रोल में भी इसका जमकर उपयोग होता है. 

crowd control weapons in world amid tear gas use punjab farmers protest photo Unsplash

तेज रोशनी और शोर का अटैक

एक और तरीका है, जिसे डिसओरिएंटेशन डिवाइस कहते हैं. ये पायरोटेक्निक ग्रेनेड हैं, जिसमें आवाज और रोशनी से ऐसा असर पैदा किया जाता है कि लोगों का फोकस चला जाए. इसमें कानों को फाड़ने वाली और आंखों को चौंधियाने वाला बम फेंका जाता है. ये भीड़ को परेशान कर देता है, लेकिन इसमें भी कोई परमानेंट नुकसान नहीं होता. 

Advertisement

क्या है काइनेटिक इंपैक्ट प्रोजेक्टाइल

रबर और प्लास्टिक बुलेट की बात अक्सर होती है. ये काइनेटिक इंपैक्ट प्रोजेक्टाइल की श्रेणी के हथियार हैं. इसमें प्लास्टिक की गोलियों को तेजी से प्रदर्शनकारियों की तरफ भेजा जाता है. वैसे ये मैथड अक्सर दंगा-फसाद रोकने में उपयोग होता आया. इसमें कई बार गंभीर नुकसान भी देखा गया है. 

अकॉस्टिक वेपन भी हैं

ये पश्चिम में खूब इस्तेमाल होते रहे. इसमें ऐसी आवाज पैदा की जाती है, जो काफी दूर तक जाए और जमीन से लेकर इमारतों में भी झनझनाहट जैसा असर दिखाए. इससे लोग घबराकर भागने लगते हैं और प्रदर्शन रुक जाता है. कई बार इससे सुनाई देने में समस्या जैसी परमानेंट दिक्कत भी आ जाती है, खासकर अगर इसे चलाने वाले लोग प्रशिक्षित न हों. ं

crowd control weapons in world amid tear gas use punjab farmers protest photo Getty Images

एक और श्रेणी हैं- ब्लंट फोर्स वेपन

प्रदर्शनकारी जब हिंसक हो जाते हैं, तो उन्हें रोकने वाले सुरक्षा बल डंडों का इस्तेमाल करते हैं. यही डंडा ब्लंट फोर्स वेपन के तहत आता है. ये पुलिस की सख्ती और कायदों का प्रतीक भी बन चुका है. लेकिन इससे गंभीर नुकसान या मौत भी हो सकती है, जो इसपर तय करता है कि इसका उपयोग कितनी जोर से और किस अंग पर किया गया. 

झटका देने वाली डिवाइस

हॉलीवुड फिल्मों में एक पिस्टल की तरह चीज अक्सर दिखती है, जिसे छुआते ही टारगेट को बिजली का झटका लगने जैसा अहसास होता है. ये इलेक्ट्रोशॉक वेपन है. शुरुआत में इनसे बिगड़ैल पशुओं को साधा जाता था, लेकिन फिर पश्चिम में सुरक्षाबल भी इसे काम में लेने लगे. 

Advertisement

उतने भी सेफ नहीं ये हथियार

दंगे-फसाद या सड़कें रोकने वाले प्रोटेस्ट को रोकने के लिए ये हथियार चलन में आए. इनका मकसद है कि बिना लॉन्ग-टर्म नुकसान के भी लोग बिखर जाएं. चाहे तेज धार वाला पानी हो, या आंसू गैस, इसका शॉर्ट-टर्म असर ही रहता है. लेकिन कुछ समय में दिखा कि नॉन-लीथल श्रेणी के ये हथियार भी परमानेंट नुकसान कर सकते हैं. ब्रिटिश शोध संस्थान ओमेगा रिसर्च फाउंडेशन ने साल 2023 में एक सर्वे किया, जिसका डेटा डराने वाला है. इसके अनुसार, पिछले एक दशक में लगभग सवा लाख लोग आंसू गैस और दूसरे केमिकल इरिटेंट्स से घायल हुए. 

crowd control weapons in world amid tear gas use punjab farmers protest photo Getty Images

गंभीर नुकसान से लेकर मौत भी

क्राउड कंट्रोल वेपन के इस्तेमाल के बाद की मेडिकल रिपोर्ट्स को देखने पर ये पता लगा. रिपोर्ट में इनसे हुई मौतों के डेटा का जिक्र नहीं है, लेकिन दावा है कि अगर लंबा ट्रैक रखा जाए तो ये डेटा जरूर दिखेगा. 

कम खतरनाक CCW लिए जाएं

माना जा रहा है कि केमिकल इरिटेंट्स या रबर बुलेट को जितना हल्का या नॉन-फेटल माना जाता है, असल में ऐसा है नहीं. कई बार इससे गंभीर नुकसान होता है, यहां तक कि टारगेट की मौत भी हो सकती है. प्रेग्नेंट महिलाएं, बुजुर्ग या बच्चे भी अगर प्रदर्शन का हिस्सा हों तो बात और बिगड़ सकती है. इसके खतरों को देखते हुए कई देश और राज्य अपने यहां कम घातक क्राउड-कंट्रोल वेपन के विकल्प देख रहे हैं.

Advertisement

यूरोप में इसपर कई बड़े शोध हुए, जिसमें सरकारों को क्राउड कंट्रोल वेपन में भी कम लीथल विकल्पों को देखने की सिफारिश थी. इसमें बताया गया कि जिन केमिकल्स या बुलेट को हम शॉर्ट-टर्म असर वाला मान रहे हैं, उनसे स्थाई नुकसान भी हो सकता है, यहां तक कि जानलेवा भी हो सकते हैं. खासकर अगर हथियार बनाने वाली कंपनियों के पास लाइसेंस न हो, या सरकार उनपर ज्यादा सख्ती न बरते. 

Live TV

Advertisement
Advertisement