पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश फ्रांस में लाइसिती (laïcité) का नियम है. इसके तहत सार्वजनिक जगहों पर कोई भी अपने धार्मिक प्रतीकों का प्रदर्शन नहीं कर सकता. सबको सिर्फ और सिर्फ फ्रेंच नागरिक दिखना चाहिए. ये एक तरह से फ्रेंच सेकुलरिज्म का अपना अंदाज है. हालांकि कुछ समय से इसमें बड़ा बदलाव दिखने लगा. वामपंथ यानी लेफ्ट विंग और दक्षिण यानी राइट विंग दोनों ही एक-दूसरे पर हावी होना चाह रहे हैं. इसी कोशिश में राइट विंगर्स के लिए डेटिंग प्लेटफॉर्म तक बन गया है.
क्या है दक्षिण और वामपंथ?
आजकल दुनियाभर में ये शब्द खूब कहे जा रहे हैं. इसकी शुरुआत फ्रांस से ही हुई. 18वीं सदी के आखिर में वहां के 16वें किंग लुई को लेकर नेशनल असेंबली के सदस्य भिड़ गए. एक हिस्सा राजशाही के पक्ष में था, दूसरा उसके खिलाफ. जो लोग राजसत्ता के विरोध में थे, वे लेफ्ट में बैठ गए, जबकि समर्थन में रह रहे लोग राइट में बैठ गए.
इस तरह से विचारधारा को लेकर बैठने की जगह जो बंटी कि फिर तो चलन ही आ गया. यहीं से लेफ्ट विंग और राइट विंग का कंसेप्ट दुनिया में चलने लगा. ये संसद ही नहीं, हर जगह दिखने लगा.
दोनों में हैं ये अंतर
जो भी लोग कथित तौर पर उदार सोच वाले होते हैं, माइनोरिटी से लेकर नए विचारों और LGBTQ जैसी बातों का सपोर्ट करते हैं, साथ ही अक्सर सरकार का विरोध करते हैं, वे खुद को वामपंथी यानी लेफ्ट विंग का बोल देते हैं. इसके उलट, दक्षिणपंथी अक्सर रुढ़ीवादी माने जाते हैं, हालांकि वे देशप्रेम और परंपराओं की बात करते हैं. इन दिनों फ्रांस तो क्या, अमेरिका और भारत तक में राइट और लेफ्ट सोच की बात खुलेआम हो रही है.
फ्रेंच हो रहे ज्यादा कट्टर
फ्रांस को ज्यादातर यूरोपियन देशों की तुलना में ज्यादा उदार माना जाता रहा. यहां वामपंथी सोच वाले लोग ज्यादा रहे. हालांकि बीते कुछ समय से सोच में बदलाव दिख रहा है. फ्रेंच नागरिक अब दक्षिणपंथ पर ज्यादा भरोसा जता रहे हैं. साल 2022 में पेरिस की साइंस पो यूनिवर्सिटी ने एक सर्वे किया. इसमें 32% लोगों ने माना कि वे राजनैतिक और सामाजिक तौर पर खुद को राइट विंग के ज्यादा करीब पाने लगे हैं. पांच साल पहले 26% लोगों ने खुद को ऐसा माना था.
इस्लामिक चरमपंथ को माना जा रहा जिम्मेदार
सर्वे में माना गया कि बीते एक दशक में फ्रांस में जिस तेजी से आतंकी हमले बढ़े, उनके पीछे फ्रेंच लोग माइनोरिटी को जिम्मेदार मान रहे हैं. व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो पर हुए हमले से इसकी शुरुआत हुई, फिर तो चरमपंथी हमले बढ़ते ही गए. नवंबर 2015 में पेरिस पर हुए हमले ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था, जिसमें सैकड़ों जानें गई थीं. इसे ISIS ने अंजाम दिया था. इसके बाद से फ्रांस की सोच में बदलाव दिखने लगा. लोग लेफ्ट की बजाए राइट पर भरोसा दिखाने लगे. यहां तक कि डेटिंग वेबसाइट तक खास राइट विंगर्स के लिए लॉन्च हो गई.
डेटिंग साइट क्या कहती है?
इस डेटिंग प्लेटफॉर्म पर वही लोग जुड़ेंगे जो दक्षिणपंथी सोच रखते हों. वेबसाइट ने क्लियर लिखा है कि वो राष्ट्रवादी सिंगल्स को मिलाना चाहती है ताकि देश की पहचान बची रहे. एप में ये भी साफ है कि इसपर वही लोग आएं, जो शादी करने और संतान पैदा करने पर यकीन रखते हों. प्लेटफॉर्म अपने यूजर्स को 'फ्रेंच सभ्यता का रक्षक' भी कहता है, जो वाम सोच से देश को बचा रहे हैं.
पूछा जाता है धर्म से जुड़ा सवाल
अब सवाल ये आता है कि डेटिंग प्लेटफॉर्म कैसे तय करेगा कि उससे राइट विंग वाले सिंगल ही जुड़ रहे हैं. तो इसका आसान तरीका निकाला गया. प्रोफाइल बनाते हुए यूजर से कई सवाल पूछे जाएंगे, जिससे उसका पॉलिटिकल रुझान, धर्म और बच्चों को लेकर सोच साफ हो जाए. अगर कोई लेफ्ट सोच के साथ जवाब देगा तो एप उसे एंट्री नहीं देगा, या लंबे समय तक अटकाए रख सकता है. प्लेटफॉर्म ये भी साफ करता है कि कपल्स में विचारधारा को लेकर तनाव होता है, जो रिश्ते को खत्म कर देता है. उसका मकसद रिश्तों को टिकाऊ बनाना है, ताकि देश मजबूत हो सके.
दक्षिणपंथी सोच वाला ये डेटिंग एप नया आइडिया नहीं, बल्कि अमेरिका में इसकी शुरुआत पहले ही हो चुकी है. वहां राइटर और द राइट स्टफ नाम से डेटिंग साइट्स हैं, जो साफ तौर पर राइट विंग वालों के लिए हैं. पक्का तो नहीं है, लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में जिक्र है कि ये डेटिंग एप पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सोच का नतीजा है. खासकर, द राइट स्टफ के फाउंडिंग मेंबर कथित तौर पर ट्रंप के करीबी माने जाते रहे.
क्या वामपंथी सोच के लिए डेटिंग प्लेटफॉर्म हैं?
लेफ्ट विंगर्स के लिए भी रोमांस की कई जगहें हैं. जैसे लेफ्टी नाम से डेटिंग एप दावा करता है कि वो प्रोग्रेसिव सोच वालों के लिए है. इसमें हर धर्म, उम्र, जेंडर, नस्ल और भाषा वाले लोग जुड़ सकते हैं. नाम की तर्ज पर ही ये प्रोग्रेसिव मैच दिलाने का वादा करता है.