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4 दिन में इतने कैसे बिगड़ गए हालात? दिल्ली-NCR में प्रदूषण बढ़ने की ये हैं वजहें

राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है. गुरुवार को AQI का स्तर 392 था, जो शुक्रवार को बढ़कर 500 के पार हो गया. ऐसे में जानते हैं कि क्या हैं वो कारण जिससे दिल्ली में हर साल बढ़ने लगता है वायु प्रदूषण?

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दिल्ली में AQI का स्तर 500 के पार हो गया है. (फोटो-PTI)
दिल्ली में AQI का स्तर 500 के पार हो गया है. (फोटो-PTI)

अभी सर्दियां आई भी नहीं कि देश की राजधानी दिल्ली का दम फिर फूलने लगा. हवा जहरीली होने लगी है. दो दिन से दिल्ली गैस चैम्बर बनी हुई है. 

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हालात इस कदर बिगड़ते जा रहे हैं कि हर घंटे हवा खराब हो रही है. दिल्ली में शुक्रवार को एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI का स्तर 504 पर रहा. यानी दिल्ली की हवा 'गंभीर' श्रेणी में है. सबसे खराब हालत आनंद विहार की है. वहां AQI का स्तर 865 पर आ गया है. 

राजधानी दिल्ली में अगले कुछ हफ्तों तक राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. दिल्ली के लिए एयर क्वालिटी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (EWS) ने बुलेटिन में बताया है कि 4 नवंबर तक और उसके बाद के छह दिनों में भी एयर क्वालिटी 'बहुत खराब' की श्रेणी में रहने की संभावना है. 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, AQI का स्तर जब 401 से 500 के बीच रहता है तो उसे 'गंभीर' माना जाता है. इतना ज्यादा प्रदूषण होने पर स्वस्थ लोगों की तबियत भी बिगड़ सकती है और जो किसी बीमारी से जूझ रहे हैं, उनपर गंभीर असर हो सकता है.

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अचानक कैसे खराब हो गई हवा?

इसके दो बड़े कारण अब तक सामने आए हैं. पहला- अक्टूबर में बारिश का न होना. और दूसरा- पराली जलाने की घटनाओं का बढ़ना.

मॉनसून खत्म होने के बाद बारिश नहीं होने की वजह से हवा में प्रदूषणकारी तत्व जमा हो गए हैं. दिल्ली में अक्टूबर 2022 में 129 मिमी और अक्टूबर 2021 में 123 मिमी बारिश हुई थी. जबकि, इस साल अक्टूबर में सिर्फ 5.4 मिमी बारिश ही हुई है.

कमिशन ऑन एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) के मुताबिक, 15 सितंबर से 29 अक्टूबर के बीच पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में लगभग आधी हो गई थीं. 

लेकिन इन राज्यों में इसके बाद पराली जलाने की घटनाएं अचानक बढ़ गईं. 30 अक्टूबर को 1852, 31 अक्टूबर 2,901 और 1 नवंबर को 2,386 घटनाएं हुईं.

आंकड़ों के मुताबिक, गुरुवार को दिल्ली की हवा में PM2.5 बढ़ाने में पराली की हिस्सेदारी 25% थी. ये शुक्रवार को बढ़कर 35% के पार हो गई. इससे साफ पता चलता है कि पराली जलने से दिल्ली की हवा खराब हो रही है.

हर साल की यही कहानी क्यों?

दिल्ली में खराब हवा में सांस लेना अब 'न्यू नॉर्मल' बन गया है. आमतौर पर दिल्ली में अक्टूबर से हवा खराब होनी शुरू हो जाती है. नवंबर, दिसंबर और जनवरी में ये पीक पर होती है.

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सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि एनसीआर और पड़ोसी राज्यों- हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है. वायु प्रदूषण की कोई एक वजह नहीं है. इसकी कई सारी वजहें हैं.

दिल्ली के एक तरफ तराई वाले मैदानी इलाके हैं तो दूसरी तरफ रेगिस्तान है. यहां हवा की गति, दिशा, नमी, तापमान और दबाव... वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करते हैं. 

अगस्त 2018 में संसदीय समिति ने राज्यसभा में 'दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की स्थिति' पर रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले कारणों के बारे में बताया गया था. इसके मुताबिक, गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ, कंस्ट्रक्शन, इंडस्ट्री से निकलने वाला धुंआ, कचरा जलाने पर निकलने वाला धुंआ और सड़कों पर जमी धूल की वजह से प्रदूषण बढ़ता है.

कैसे बढ़ता है दिल्ली में प्रदूषण?

- गाड़ियों से निकलने वाला धुंआः सर्दियों में गाड़ियों से निकलने वाले धुंए की वजह से हवा में PM2.5 की मात्रा 25% और गर्मियों में 9% रहती है. सबसे ज्यादा 46% योगदान ट्रकों से निकलने वाले धुंए का होता है. 33% दोपहिया वाहन, 10% कारों और 5% बसों से निकलने वाले धुंए का योगदान होता है.

- सड़कों पर जमी धूल-मिट्टीः संसदीय समिति ने 2015 में हुई IIT कानपुर की स्टडी के हवाले से बताया था कि सड़कों पर जमी धूल-मिट्टी भी PM10 और PM2.5 की मात्रा बढ़ाते हैं. इसके मुताबिक, सर्दियों में हवा में PM10 की मात्रा बढ़ाने में 14.4% और PM2.5 की मात्रा बढ़ाने में 4.3% योगदान सड़कों पर जमी धूल-मिट्टी का होता है.

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- कंस्ट्रक्शन एक्टिविटीः कंस्ट्रक्शन से जुड़े काम से भी वायु प्रदूषण बढ़ता है. सर्दियों में जितना PM10 हवा में पाया जाता है, उसमें से 3.1% कंस्ट्रक्शन से जुड़े काम के कारण होता है. इसी तरह 1.5% PM2.5 कंस्ट्रक्शन के कारण होता है.

- लैंडफिल साइटः दिल्ली में गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में लैंडफिल साइट है. यहां हर दिन साढ़े 5 हजार टन कचरा डाला जाता है. समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ सालों से तीनों लैंडफिल साइट पर आगजनी की घटनाएं होती रहीं हैं. इससे जहरीली गैसें निकलती हैं जो प्रदूषण बढ़ाती हैं.

- पटाखेः दिल्ली और आसपास के इलाकों में पटाखों की वजह से भी सर्दियों में प्रदूषण बढ़ जाता है. दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध होने के बावजूद लोग पटाखे जलाते हैं. समिति ने रिपोर्ट में बताया था कि सस्ते पटाखों से जहरीली गैसें निकलती हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, पिछले साल दिवाली के अगले दिन दिल्ली में AQI का स्तर 302 पर पहुंच गया था.

- परालीः हर साल अक्टूबर-नवंबर में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान पराली जलाते हैं. पराली जलाने से हवा में PM10 और PM2.5 की मात्रा बढ़ जाती है. IIT कानपुर की स्टडी के मुताबिक, हवा में PM10 की मात्रा बढ़ाने में पराली का 17% और PM2.5 बढ़ाने में 26% का योगदान रहता है. 

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स्वास्थ्य के लिए कितनी खतरनाक है खराब हवा?

- वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. साइंस जर्नल लैंसेट की स्टडी बताती है कि 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल खराब हवा की वजह से 70 लाख लोग बेमौत मारे जाते हैं. इतना ही नहीं, दुनिया की 99 फीसदी आबादी खराब हवा में सांस लेने रही है.

- एक रिपोर्ट ये भी बताती है कि खराब हवा की वजह से उम्र भी कम हो जाती है. दुनिया में ये एवरेज 2.2 साल का है. जबकि, दिल्ली में 9.7 साल और उत्तर प्रदेश में 9.5 साल का है. यानी, अगर आप दिल्ली में हैं तो खराब हवा की वजह से आपकी उम्र में 9 साल 7 महीने की कमी आ सकती है.

- इसके अलावा, स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 की रिपोर्ट बताती है कि 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 1.16 लाख नवजातों की मौत हो गई थी. यानी, ये बच्चे एक महीने भी जी नहीं पाए थे. ये आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा था. भारत के बाद नाइजीरिया था, जहां करीब 68 हजार नवजातों की मौत हुई थी.

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कैसे पता चलती है हवा खराब है या अच्छी?

इसे एयर क्वालिटी इंडेक्स से मापा जाता है. जब AQI का स्तर 0 से 50 के बीच रहता है तो उसे 'अच्छा' माना जाता है. वहीं, 51 से 100 के बीच रहने पर 'संतोषजनक', 101 से 200 के बीच 'मध्यम', 201 से 300 के बीच 'खराब', 301 से 400 के बीच 'बहुत खराब' और 401 से 500 के बीच रहने पर 'गंभीर' माना जाता है. 

जैसे-जैसे AQI का स्तर बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे सेहत पर इसका उल्टा असर भी पड़ने लगता है. AQI का स्तर जब 'मध्यम' श्रेणी में आता है, तो अस्थमा या फेफड़े और दिल की बीमारी से जूझ रहे लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. वहीं, जब ये 'गंभीर' की श्रेणी में चला जाता है तो बीमारियों से जूझ रहे लोग ही नहीं, स्वस्थ लोगों को भी सांस लेने में परेशानी आने लगती है. 

केंद्र सरकार ने 12 तत्वों की लिस्ट बनाई है, जो वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं. इनमें PM10, PM2.5, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), सल्फर डाईऑक्साइड (SQ2), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (NO2), अमोनिया (NH3), ग्राउंड लेवल ओजोन (O3), लीड (सीसा), आर्सेनिक, निकेल, बेन्जेन और बेन्जो पायरिन शामिल हैं. हवा में जब इनकी मात्रा बढ़ती है तो वायु प्रदूषण बढ़ता है.

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इनमें सबसे खतरनाक PM2.5 होता है, क्योंकि ये हमारे बालों से भी 100 गुना छोटा होता है. PM2.5 का मतलब है 2.5 माइक्रॉन का कण. माइक्रॉन यानी 1 मीटर का 10 लाखवां हिस्सा. हवा में जब इन कणों की मात्रा बढ़ जाती है तो विजिबिलिटी प्रभावित होती है. ये इतने छोटे होते हैं कि हमारे शरीर में जाकर खून में घुल जाते हैं. इससे अस्थमा और सांस लेने में दिक्कत होती है.

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