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कहीं NOC नहीं, कहीं एक्सपायर लाइसेंस... दिल्ली के 66 अस्पतालों ने लापरवाही की 'आग' से बांटी मौत!

Delhi Baby Care Centre Fire: दिल्ली के विवेक विहार में स्थिति बेबी केयर न्यूबॉर्न हॉस्पिटल में शनिवार रात आग लगने से 7 नवजातों की मौत हो गई. इस मामले में कई बड़ी लापरवाही सामने आ रही है. मामले में पुलिस ने अस्पताल के मालिक और एक डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया है.

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विवेक विहार के बेबी केयर अस्पताल में शनिवार को आग लगी थी.
विवेक विहार के बेबी केयर अस्पताल में शनिवार को आग लगी थी.

Delhi Baby Care Centre Fire: राजधानी दिल्ली के बेबी केयर न्यू बॉर्न हॉस्पिटल में आग लगने से 7 नवजातों की मौत हो गई. विवेक विहार इलाके में बने इस अस्पताल में शनिवार देर रात आग लगी थी. अब तक 5 नवजातों के शव को परिजनों को सौंप दिया गया है.

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इस मामले में पुलिस ने अस्पताल के मालिक डॉ. नवीन खींची और आग लगने के वक्त ऑन ड्यूटी डॉ. आकाश को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों को सोमवार को कोर्ट में पेश किया जाएगा.

हर बार की तरह ही इस मामले में भी लापरवाही सामने आ रही है. बताया जा रहा है कि अस्पताल में न तो क्वालिफाइड डॉक्टर्स थे और न ही फायर डिपार्टमेंट से क्लियरेंस लिया गया था. बहरहाल, दिल्ली में पिछले कई सालों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. आंकड़ों के मुताबिक, बीते दो साल में दिल्ली में 66 अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. 2022 में 30 और 203 में 36 अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं सामने आई थीं.

इसी साल फरवरी में दिल्ली के लोकनायक अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भी आग लग गई थी. इस हादसे में 50 लोगों को सुरक्षित बचाया गया था. गनीमत रही थी कि इस दुर्घटना में जान-माल का नुकसान नहीं हुआ.

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(फाइल फोटो-PTI)

अस्पतालों में इतनी आग क्यों?

पिछले साल जून में अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में एक जर्नल छपा था. इस जर्नल में भारत के अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं और उनके कारण के बारे में बताया गया था. इसमें बताया गया था कि सरकारी और प्राइवेट, दोनों ही अस्पतालों में आग लगने की लगभग बराबर घटनाएं ही हुईं.

इस स्टडी में बताया गया था कि अगर लापरवाही न बरती जाए तो अस्पताल में आग लगने की घटनाओं को रोका जा सकता है. 

इसमें दावा किया गया था कि अस्पतालों को फायर डिपार्टमेंट से लेकर तमाम रेगुलेटर्स की मंजूरी लेनी होती है, लेकिन इसमें कोताही बरती जाती है. इसमें बीकानेर के प्रिंस बिजय सिंह मेमोरियल मेंस अस्पताल में लगी आग का उदाहरण दिया गया है. 2013 में इस अस्पताल में शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक, वायर काफी पुराने हो गए थे और उनपर लोड बढ़ता जा रहा था. 

इसमें 2011 में कोलकाता के AMRI अस्पताल में लगी आग का भी जिक्र किया गया है. इस दुर्घटना में 93 लोगों की मौत हो गई थी. जांच में सामने आया था कि अस्पताल के अपर बेसमेंट में अवैध तरीके से ज्वलनशील सामग्री रखी गई थी. ये जगह पार्किंग के लिए बनाई गई थी. इस अस्पताल में प्रॉपर वेंटिलेशन की सुविधा भी नहीं थी और ज्यादातर मौतें आग लगने के बाद धुंआ जमने के कारण हो गई थी.

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स्टडी में ये भी सामने आया था कि भारत के कई अस्पतालों में आग से बचने के बुनियादी उपाय भी नहीं है. 2016 में जब पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के एक अस्पताल में आग लगी, तब इमरजेंसी गेट भी बंद था. फायर अलार्म और एलिवेटर भी काम नहीं कर रहे थे. इतना ही नहीं, फायर एक्सटिंगिशर भी नहीं थे.

2021 में महाराष्ट्र के भंडारा के जिला अस्पताल में आग लगने से 10 नवजातों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद राज्य के सभी अस्पतालों की एक रिपोर्ट तैयार की गई. इसमें सामने आया कि महाराष्ट्र के 484 सरकारी अस्पतालों में से 80% ने कभी फायर सेफ्टी ऑडिट नहीं किया था. और 50% से भी कम अस्पतालों ने अतीत में मॉक ड्रिल की थी. ज्यादातर अस्पतालों ने फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट भी नहीं लिए थे.

ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं, जब लाइसेंस खत्म होने के बावजूद अस्पताल धड़ल्ले से चलते रहे, जिससे आग लगने की बड़ी घटनाएं सामने आईं.

चाइल्ड केयर अस्पताल में भी लापरवाही

- लाइसेंस नहीं थाः अस्पतालों को डायरेक्टरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेस (DGHS) से लाइसेंस जारी किया जाता है. विवेक विहार में बने इस चाइल्ड केयर अस्पताल का लाइसेंस 31 मार्च को एक्सपायर हो गया था. डीसीपी (शहादरा) सुरेंद्र चौधरी ने बताया कि लाइसेंस एक्सपायर होने के बाद पांच बेड का अस्पताल ही चला सकते हैं, लेकिन यहां घटना के वक्त 12 बच्चे भर्ती थे.

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- अनक्वालिफाइड डॉक्टरः डीसीपी ने बताया कि जांच के दौरान ये भी सामने आया है कि इस अस्पताल में अनक्वालिफाइड डॉक्टर काम कर रहे थे और वो नवजातों का इलाज नहीं कर सकते थे, क्योंकि उनके पास BAMS की डिग्री थी.

- NOC भी नहीं था: अस्पताल को दिल्ली फायर सर्विस डिपार्टमेंट से फायर NOC भी नहीं मिली थी. अस्पताल में इमरजेंसी एग्जिट भी नहीं था और फायर एक्सटिंगिशर भी नहीं था.

दिल्ली में कितनी बड़ी है आग लगने की समस्या?

राजधानी दिल्ली में आग लगने की घटनाएं और इसमें होने वाली मौतों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 और 2023 में दिल्ली के 66 अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इतना ही नहीं, इस साल 1 से 20 मई के बीच दिल्ली फायर सर्विस के पास आग लगने की घटनाओं से जुड़े 2,200 से ज्यादा कॉल आए हैं.

दिल्ली फायर सर्विस डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक, राजधानी में आग लगने की घटनाओं से जुड़े कॉल बढ़ गए हैं. 2022-23 में लगभग 32 हजार कॉल आए थे. इन घटनाओं में 1,029 लोगों की मौत हो गई थी. इससे पहले 2021-22 में 27,343 घटनाओं में 591 लोगों की मौत हो गई थी.

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चाहे अस्पताल हो या कोई भी बिल्डिंग, आग लगने का सबसे बड़ा कारण शॉर्ट सर्किट रहता है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में देशभर में शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगने की 1,567 घटनाएं हुई थीं. इन घटनाओं में 1,486 लोग मारे गए थे.

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