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प्लानिंग में गड़बड़ी, 48 साल पुराना ड्रेनेज सिस्टम... घंटेभर की ही बारिश में क्यों डूब जाती है दिल्ली?

दिल्ली-एनसीआर में बुधवार को हुई बारिश राहत की बजाय आफत लेकर आई. दो लोगों की मौत भी हो गई. सड़कें समंदर बन गईं और कई इलाकों में घुटनों तक पानी भर गया. ऐसे में जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्यों कुछ घंटों की बारिश ने दिल्ली को पूरा डुबा दिया?

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delhi flooding every monsoon
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उमस भरी गर्मी से जूझ रहे दिल्ली-एनसीआर में बुधवार को बारिश हुई तो राहत से ज्यादा आफत लेकर आई. बुधवार को दिल्ली-एनसीआर में इस सीजन की अब तक की सबसे खतरनाक बारिश दर्ज की गई है. कम समय में इतनी बारिश ने सड़कों को समंदर बना दिया. गाजीपुर में एक महिला और उसके तीन साल के बच्चे की मौत हो गई.

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मौसम विभाग के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर के कई इलाके ऐसे थे, जहां घंटेभर में 100 मिमी से ज्यादा बारिश दर्ज की गई. जब एक घंटे के भीत 100 मिमी से ज्यादा पानी बरसता है तो इसे 'बादल फटने' जैसी बारिश माना जाता है.

इतनी ज्यादा बारिश होने से दिल्ली के ज्यादातर इलाके लबालब हो गए. दिल्ली-एनसीआर में सड़कों पर जाम लगा रहा. इसके बाद मौसम विभाग ने 'रेड अलर्ट' भी जारी कर दिया. इसे देखते हुए गुरुवार को दिल्ली में स्कूल-कॉलेजों की छुट्टी कर दी गई.

कितनी आफत लेकर आई बारिश?

मौसम विभाग के मुताबिक, बुधवार को पूर्वी दिल्ली में 147.5 मिमी और दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में 113 मिमी बारिश दर्ज की गई. इतनी ज्यादा बारिश के कारण दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरने वाली कम से कम 10 फ्लाइट को डायवर्ट किया गया. आठ जयपुर तो दो लखनऊ एयरपोर्ट पर उतरीं.

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ओल्ड राजेंद्र नगर में घुटनों तक पानी भर गया. यहीं के एक कोचिंग सेंटर में कुछ दिन पहले बेसमेंट में पानी भरने से तीन छात्रों की मौत हो गई थी. वहीं, कनाट प्लेस में भी कई शोरूम और रेस्टोरेंट में पानी घुस गया.

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने बताया कि भारी बारिश के चलते पानी भरने की 4 और पेड़ गिरने की 3 कॉल मिलीं. साथ ही पूरी दिल्ली के कई इलाकों में बिजली कटौती भी हुई.

पुरानी दिल्ली के दरियागंज में एक स्कूल की बाउंड्रीवॉल बाहर खड़ी गाड़ियों पर गिर गईं. यहीं पर सड़क धंसने की घटना भी सामने आई. दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर में सड़कों पर गाड़ियां तैरती नजर आईं. प्रगति मैदान टनल में भी पानी भरने से अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई.

मौसम विभाग ने गुरुवार के लिए भी रेड अलर्ट जारी किया है. मौसम विभाग ने बताया कि 5 अगस्त तक दिल्ली में बारिश का अनुमान जताया है.

(Photo-PTI)

पर दिल्ली डूब क्यों जाती है?

दिल्ली-एनसीआर में बुधवार को जिस तरह की बारिश हुई और उसके बाद जैसे हालात बने, वो यहां रहने वालों के लिए नई बात नहीं है. दिल्ली-एनसीआर में हर साल ही इस तरह के हालात बन जाते हैं.

इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये है कि दिल्ली सबसे तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रही है. दिल्ली सरकार के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, 1991 से 2011 के बीच 20 साल में राजधानी में शहरीकरण का दायरा दोगुना हो गया है. 1991 में दिल्ली में शहरी इलाका 685 वर्ग किलोमीटर था, जो 2011 में बढ़कर 1,113 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा हो गया.

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संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर होगा. तब दिल्ली की आबादी लगभग 4 करोड़ होगी. अभी सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर टोक्यो है.

हालांकि, दिल्ली में इस तरह के हालातों का कारण सिर्फ यही नहीं है. माना जाता है कि दिल्ली को फ्लड फ्री बनाने के लिए 1960 से चर्चा चल रही है, लेकिन जमीन पर इसका असर नहीं दिखाई पड़ता.

क्या प्लानिंग में ही है गड़बड़ी?

1912 में अंग्रेजों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने का फैसला लिया. दिल्ली को राजधानी के तौर पर तैयार करने की जिम्मेदारी ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियंस को दी गई. बताया जाता है कि लुटियंस को पता था कि यमुना नदी हर साल दिल्ली में बाढ़ का कारण बनेगी, लेकिन उनकी इस चिंता को नजरअंदाज कर दिया गया क्योंकि किंग जॉर्ज V ने इसकी नींव रख दी थी.

दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए) के पूर्व कमिश्नर एके जैन ने NDTV को बताया था कि आजादी के बाद दिल्ली का पहला मास्टर प्लान 1962 में तैयार किया गया था. उस प्लान में यमुना नदी को 'खाली जमीन' बताया गया था. उन्होंने बताया था कि दिल्ली को अपने विकास में भौगोलिक चुनौती का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इसके एक तरफ नदी है और दूसरी तरफ पहाड़ हैं.

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इतना ही नहीं, यमुना नदी के आसपास के 100 वर्ग किमी इलाके को जोन O घोषित किया गया है. इसका मतलब ये है कि 100 वर्ग किमी इलाके में कोई कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी नहीं होगी. लेकिन इसके बावजूद यहां सैकड़ों अनअथरॉइज्ड कॉलोनियां बसीं. सरकार इन्हें रेगुलर करने की तैयारी कर रही है.

(Photo-PTI)

इसके अलावा 2041 के मास्टर प्लान में यमुना के फ्लडप्लेन को कम करने का प्रस्ताव है. फ्लडप्लेन नदी के आसपास की जमीन होती है. अभी 10 हजार हेक्टेयर जमीन फ्लडप्लेन है, लेकिन 2041 के मास्टर प्लान में 6,400 हेक्टेयर जमीन को ही फ्लडप्लेन घोषित करने की सिफारिश की गई है. इसका मतलब हुआ कि बाकी की 3,600 हेक्टेयर जमीन को विकसित किया जाएगा और इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जाएगा.

अब इससे दिक्कत ये होगी कि आने वाले समय में दिल्ली को और खतरनाक बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि बाढ़ के पानी को सोखने के लिए नदी के आसपास जितनी खाली जमीन होगी, उतना अच्छा होगा. लेकिन यमुना का फ्लडप्लेन 40% कम कर देने से आने वाले समय में और बाढ़ का सामना करना पड़ेगा. 

दशकों पुराना ड्रेनेज सिस्टम

दिल्ली आज भी दशकों पुराने ड्रेनेज सिस्टम पर टिकी हुई है. आखिरी बार 1976 में दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम प्लान तैयार हुआ था. तब दिल्ली की आबादी 40 लाख के आसपास थी, लेकिन अब 3 करोड़ से ज्यादा लोग राजधानी में रहते हैं.

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1976 में जो ड्रेनेज सिस्टम तैयार किया गया था, वो 24 घंटे में 50 मिमी की बारिश को ही झेल सकता है, लेकिन आज के समय में 100 मिमी से ज्यादा बारिश तो घंटेभर में हो जा रही है. पुराने ड्रेनेज सिस्टम की मदद के लिए सीवरेज और ड्रेनेज नेटवर्क तैयार किया गया है, लेकिन इससे बैकफ्लो होने की समस्या भी पैदा होती है.

जानकारों का मानना है कि जब ड्रेनेज मास्टर प्लान तैयार किया गया था, तब दिल्ली की मौजूदा आबादी को ध्यान में रखकर बनाया था. लेकिन अब बहुत कुछ बदल गया है. तब से अब तक आबादी कई गुना बढ़ गई है और लगातार बढ़ती जा रही है.

अब दिल्ली को ड्रेनेज सिस्टम का दायरा बढ़ाने की जरूरत है. साथ ही साथ ऐसी व्यवस्था करने की भी जरूरत है ताकि बारिश का पानी जमीन में जा सके.

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