दिल्ली सर्विसेस बिल सोमवार को राज्यसभा से भी पास हो गया है. इस बिल पर लंबी बहस चली. ये बिल राजधानी दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा है. लोकसभा में ये बिल तीन अगस्त को पास हो चुका है.
इस बिल के कानून बनने के बाद अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े फैसले लेने का कानूनी अधिकार उपराज्यपाल को मिल जाएगा.
ये बिल इसी साल मई में लाए गए अध्यादेश की जगह लेगा. ये अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ लाया गया था, जिसमें अदालत ने कहा था कि दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े फैसले लेने का अधिकार चुनी हुई सरकार को है.
इस बिल को लोकसभा में पेश करते वक्त केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि केंद्र को दिल्ली के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है. शाह ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा था कि संसद को दिल्ली से जुड़े किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने का अधिकार है. इतना ही नहीं, अमित शाह ने ये भी दावा किया था कि जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और डॉ. अंबेडकर ने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का विरोध किया था.
वहीं, इस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि ये बिल राजधानी के लोगों को गुलाम बनाने वाला बिल है.
क्यों लाया गया है ये बिल?
- साल 1991 में संविधान में 69वां संशोधन किया गया. इससे दिल्ली को 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र' यानी 'नेशनल कैपिटल टेरेटरी' का दर्जा मिला. इसके लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी एक्ट 1991 बना.
- 2021 में केंद्र सरकार ने इस कानून में संशोधन किया. केंद्र ने कहा कि 1991 में कुछ खामियां थीं. पुराने कानून में चार संशोधन किए गए. इसमें प्रावधान किया गया कि विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसे सरकार की बजाय 'उपराज्यपाल' माना जाएगा. साथ ही ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती.
- दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इस पर 11 मई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है.
- सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी.
- इसी फैसले के खिलाफ 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई. अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया गया.
- इसी अध्यादेश को कानून की शक्ल देने के लिए संसद में ये बिल लाया गया है. इस बिल में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो अध्यादेश में नहीं थी.
क्या है इस बिल में?
- ये बिल मई में आए अध्यादेश की जगह लेगा. हालांकि, बिल में धारा 3A को हटा दिया गया है. धारा 3A अध्यादेश में थी.
- ये धारा कहती थी कि सर्विसेस पर दिल्ली विधानसभा का कोई नियंत्रण नहीं है. ये धारा उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार देती थी.
- हालांकि, इस बिल में एक प्रावधान 'नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी' के गठन से जुड़ा है. ये अथॉरिटी अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियंत्रण से जुड़े फैसले लेगी.
- इस अथॉरिटी के चेयरमैन मुख्यमंत्री होंगे. उनके अलावा इसमें मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) भी होंगे. ये अथॉरिटी जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी मामलों से जुड़े अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश करेगी.
- ये सिफारिश उपराज्यपाल को की जाएगी. इतना ही नहीं, अगर किसी अफसर के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी है तो उसकी सिफारिश भी ये अथॉरिटी ही करेगी.
- अथॉरिटी के सिफारिश पर आखिरी फैसला उपराज्यपाल का होगा. अगर कोई मतभेद होता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही माना जाएगा.
केंद्र को मिलेगी ज्यादा ताकत!
- इस बिल में अध्यादेश की धारा 45D को संशोधन भी किया गया है. ये धारा राजधानी दिल्ली में अलग-अलग अथॉरिटी, बोर्ड, कमिशन और दूसरी बॉडीज के अध्यक्ष और उनके सदस्यों की नियुक्ति से जुड़ी है.
- ये बिल अथॉरिटी, बोर्ड और कमिशन जैसी बॉडीज के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार केंद्र को देती है.
- अगर किसी अथॉरिटी का गठन संसदीय कानून के जरिए होता है तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों को राष्ट्रपति नियुक्त करेंगे. वहीं, अगर दिल्ली विधानसभा से होता है तो उसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी करेगी, जिसके आधार पर उपराज्यपाल ये नियुक्तियां करेंगे.
दिल्ली सरकार की ताकत कैसे कम हुई?
- इस बिल के कानून बन जाने के बाद दिल्ली सरकार की ताकत काफी कम हो जाएगी. अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े सारे फैसले उपराज्यपाल करेंगे.
- इस बिल में एक अथॉरिटी बनाने का प्रावधान है, जो अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की सिफारिश करेगी. इस अथॉरिटी के अध्यक्ष भले ही मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही माना जाएगा.
- जबकि, 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया था दिल्ली की पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर केंद्र का अधिकार है, लेकिन बाकी सभी मामलों पर चुनी हुई सरकार का ही अधिकार होगा.
- इतना ही नहीं, गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि दिल्ली से जुड़ा कोई भी कानून बनाने का अधिकार संसद को है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में भी इस बात का जिक्र है.