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क्यों साक्षी का कत्ल देखते रहे लोग, क्या है 'बाईस्टैंडर इफेक्ट' जो भीड़ को डरपोक बना देता है?

दिल्ली में एक सिरफिरे आशिक ने नाबालिग लड़की की हत्या कर दी. वारदात के समय कई लोग वहां मौजूद थे लेकिन किसी ने भी कातिल को रोकने की कोशिश नहीं की. घटना के सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा है कि चाकू-पत्थर से ताबड़तोड़ वार के बाद भी कोई बीच-बचाव करने नहीं आया. इसे बाईस्टैंडर इफेक्ट कहते हैं. जानिए क्या होता है इसमें.

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भीड़ आमतौर पर हमला देखकर भी मदद करने से बचती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
भीड़ आमतौर पर हमला देखकर भी मदद करने से बचती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

दिल्ली के शाहबाद डेयरी इलाके में साक्षी नाम की नाबालिग लड़की की नृशंस हत्या कर दी गई. वारदात को अंजाम देने वाले लड़के का नाम साहिल है. जिसे दिल्ली पुलिस ने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से गिरफ्तार कर लिया है. बताया जा रहा है कि साहिल से लड़की की कहासुनी हो गई थी. इसी पर वो इतना भड़का कि लड़की पर चाकू और पत्थर से ताबड़तोड़ वार किए. हैरानी वाली बात ये है कि वो लड़की को चाकू से गोद रहा था, मगर किसी ने भी उसे रोकने को कोशिश नहीं की. मनोविज्ञान में इसे बाईस्टैंडर इफेक्ट कहते हैं. 

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अकेला इंसान होता है ज्यादा मददगार

साइकोलॉजी की ये थ्योरी कहती है कि जब भी भीड़ कोई हादसा या कत्ल या हमला होते हुए देखती है तो मदद की संभावना कम हो जाती है. वहीं अगर अकेला इंसान किसी को मुसीबत में देखे तो चांसेज हैं कि वो पीड़ित की मदद करेगा. ऐसा हम नहीं, लैब में हुए प्रयोग कह रहे हैं. 

40 लोग युवती का रेप और मर्डर देखते रहे

इसे समझने की पहल 1964 में एक बर्बर घटना के बाद हुई. उस साल मार्च में अमेरिकी लड़की किटी गेनोवीज अपने काम से लौट रही थी. अपार्टमेंट पहुंचने तक सब ठीक रहा, लेकिन ऐन घर के सामने उस पर किसी ने हमला कर दिया. रेप के बाद उसे चाकू से गोदकर बुरी तरह से मारा गया. ये हमला लगभग 20 मिनट तक चलता रहा. इस दौरान लगभग 40 लोगों ने अपने घरों से सबकुछ देखा. रेप के दौरान 28 साल की युवती चीखती रही, लेकिन किसी ने भी मदद नहीं की. यहां तक कि पूरे 20 मिनट बाद पुलिस के पास पहला कॉल आया. तब तक किटी की हत्या हो चुकी थी. 

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delhi teenage girl sakshi was stabbed multiple times while people observe and did not interfere psychology of mob
अमेरिकी युवती केटी की बेरहमी से हत्या कर दी गई. (Wikipedia)

किया गया पहला प्रयोग

मीडिया ने पूरे मामले को जमकर रिपोर्ट किया. लोगों को लताड़ लगाते हुए डरे हुए लोगों की बीमारी को गेनोवीज सिंड्रोम नाम दे दिया. पूरे 4 साल बाद मनोवैज्ञानिकों ने इसपर पहला प्रयोग किया. इसमें कुछ लोगों को एक कमरे में बिठाकर इंतजार करने को कहा गया. थोड़ी देर बाद वहां धुआं भरने लगा. लोग खांसने लगे, लेकिन 38% के अलावा किसी ने भी शिकायत नहीं की कि कमरे में कोई दिक्कत है. दूसरे प्रयोग के दौरान लोगों को कमरे में अकेला रखते हुए धुआं छोड़ा गया. इस दौरान 75% लोगों ने स्मोक की शिकायत की. 

भीड़ होती है कमजोर और डरपोक

इसके बाद एक एक्सपेरिमेंट में एक महिला को खतरे में दिखाया गया. इस दौरान दिखा कि जब भी कोई घटना होती है, और भीड़ जमा हो जाए, तब हेल्प मिलने की संभावना 60 प्रतिशत तक कम हो जाती है. केवल 40 प्रतिशत लोग ही होते हैं, जो मदद ऑफर करें. वहीं अगर अकेला इंसान किसी को मुसीबत में देखे तो वो बहादुरी से हेल्प के लिए चला आता है. 

क्यों होता है ऐसा?

इसकी सबसे पहली वजह ये है कि भीड़ में कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता. भीड़ हमेशा किसी दूसरे से उम्मीद करती है कि वो हादसे या हमले पर पहला रिएक्शन दे. ऐसे में सब एक-दूसरे का मुंह ही ताकते रह जाते हैं. दूसरी वजह ये है कि लोग खुद को ज्यादा सोशल और सभ्य दिखाना चाहते हैं. मान लो, सड़क पर कोई किसी पर हमला कर रहा हो और आप भी वहां पहुंच जाएं, तो बहुत मुमकिन है कि आप बाकी भीड़ के मुताबिक खुद भी चुपचाप तमाशा देखते रहें.

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ऑब्जर्वर को लगता है कि जब मुझसे पहले से लोग यही कर रहे थे तो यही सही होगा. कई बार सड़क पर हो रहे हमले को लोग निजी मामला मानकर देखते रहते हैं.  

delhi teenage girl sakshi was stabbed multiple times while people observe and did not interfere psychology of mob
भीड़ की बजाए अकेला इंसान अक्सर मदद करता है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

न्यूयॉर्क की केटी नाम की युवती के रेप और हत्या को देख चुके 38 लोगों ने यही बयान दिया. उनका कहना था कि उन्होंने इसे प्रेमियों के बीच का मसला माना, और देखते रहे. यहां तक कि 20 मिनटों तक किसी को समझ ही नहीं आया और युवती की बर्बर हत्या हो गई. 

कैसे रोका जा सकता है बाईस्टैंडर इफेक्ट?

इस बारे में भुवनेश्वर, उड़ीसा की साइकोलॉजिस्ट स्वागतिका सामंतराय कहती हैं कि इस असर को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन कम जरूर कर सकते हैं. लोग अक्सर सड़क या गलियों में हो रहे हमलों को पर्सनल मानकर बीच में आने से बचते हैं. ऐसे में ये याद रखना होगा कि कितना भी पर्सनल मामला किसी के रेप या जान लेने या चोट पहुंचाने तक नहीं जा सकता. अगर ऐसा है तो दखल देना जरूरी है. 

ऐसे रख सकते हैं खुद को सेफ

हमलावर के हाथ में चाकू या पिस्टल है तो उससे सीधा भिड़ने की बजाए जोरों से चिल्लाने लगें. कई बार हमला करने वाला 'क्षणिक आवेश' में जान लेने की सोचने लगता है. ऐसे समय में अगर जोर की आवाज होगी, या लोग मदद के लिए चिल्लाएंगे तो हो सकता है कि ध्यान बंटे और वो इम्पल्स से बाहर आ जाए. लेकिन हर हाल में पुलिस को सबसे पहले कॉल करना जरूरी है ताकि समय रहते मदद मिल सके. 

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