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4 महीनों में 60 लाख से ज्यादा केस, क्यों लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में डरा रहा डेंगू? लगानी पड़ी इमरजेंसी

बीते 4 महीनों में ही लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में डेंगू के लगभग 60 लाख मरीज आ गए. पिछले पूरे सालभर में ये आंकड़ा इससे कम था. एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इसमें बड़ा हाथ क्लाइमेट चेंज का है. मौसम इस तेजी से बदला कि कई देश, जहां पूरी सदी में भी डेंगू के नहीं के बराबर मामले आए थे, वहां भी इसके मरीज बढ़ चुके.

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लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में डेंगू फीवर तेजी से बढ़ा. (Photo- AP)
लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में डेंगू फीवर तेजी से बढ़ा. (Photo- AP)

गर्मी बढ़ने के साथ दुनिया के कई हिस्सों से डेंगू की खबर आने लगती है, लेकिन इस बार हालात ज्यादा ही खराब हैं. लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों में स्थिति इतनी बिगड़ चुकी कि सेना इन्वॉल्व हो गई. वो कैंप लगाने और मरीजों को वहां तक पहुंचाने में लगी हुई है. चार ही महीनों के भीतर 60 लाख से ज्यादा केस आ चुके. ग्लोबल वॉर्मिंग को भी इससे जोड़ा जा रहा है.

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किन देशों में है कैसी स्थिति

ब्राजील सबसे ज्यादा प्रभावित देश है. यहां जनवरी से अप्रैल 2024 के बीच ही लगभग सवा 4 लाख डेंगू केस रिपोर्ट हो चुके. ये कुल आबादी का 1.8%है. अब तक 2 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकीं.  डेंगू फीवर से इतने कम समय में इतनी मौतें पहले नहीं दिखी थीं. 

सेना बना रही फील्ड अस्पताल

ब्राजील के 26 राज्यों में से कई ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी. सेना के जवान फील्ड हॉस्पिटल बना रहे हैं, जहां लोगों का इलाज किया जा रहा है. राजधानी ब्राजिलिया में जगह-जगह ऐसे कैंप हैं, जहां ऐसे मरीज रखे जा रहे हैं, जिन्हें अस्पतालों में जगह नहीं मिल पा रही. यह स्थिति तब है, जब अभी पीक सीजन आना बाकी है. अंदेशा जताया जा रहा है कि मई-जून में स्थिति और बिगड़ सकती है. 

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पेरू भी डेंगू फीवर की चपेट में हैं. यहां पूरे देश में ही इमरजेंसी घोषित हो चुकी. पेरू में बीते 4 महीनों में लगभग डेढ़ लाख मरीज आ चुके, जबकि 117 मौतें हो चुकीं. इसके अलावा अर्जेंटिना, मैक्सिको, उरुग्वे और चिली जैसे देशों में भी डेंगू इस साल परेशान कर रहा है. यहां बता दें कि सेंट्रल अमेरिकी देशों और मैक्सिको में डेंगू केस साल के आखिर में सुनाई देते हैं, जबकि चिली और उरुग्वे में काफी कम ही मामले आते रहे. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ काम करने वाली संस्था पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने माना कि उरुग्वे जैसे देशों में पिछली सदी में ही डेंगू के बहुत कम केस आए.

dengue fever cases in latin america and caribbean photo Getty Images

आखिर क्यों हो रहा है ऐसा 

इसके पीछे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है. पिछले 30 सालों में लैटिन अमेरिकी क्षेत्र का तापमान हर दशक में 0.2 डिग्री सेल्सियस की रफ्तार से बढ़ता चला गया. स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन लैटिन अमेरिका एंड कैरेबियन की 2022 की रिपोर्ट बढ़ते तापमान पर ये डेटा देती है. क्लाइमेट चेंज से सिर्फ गर्मी ही नहीं बढ़ रही, बल्कि मच्छर भी बढ़ रहे हैं. यहां बता दें कि मच्छरों की ज्यादातर स्पीशीज गर्म तापमान पर बढ़ती हैं. यही वजह है कि लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में हालत खराब हो रही है. 

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यहां बहुत कम ही हिस्से बाकी रहे, जहां ठंड में भी तापमान 15 डिग्री सेल्सियस के नीचे जाए. ये वो तापमान है, जिसमें मच्छर खत्म हो जाते हैं. चूंकि ये देश इस टेंपरेचर तक ही नहीं पहुंच पा रहे, लिहाजा यहां मच्छर पनपते ही जा रहे हैं. 

अल-नीनो पैटर्न भी मच्छरों की ब्रीडिंग बढ़ा रहा

डेंगू फीवर की एक वजह अल नीनो भी है. अल नीनो मौसम का वो पैटर्न है, जिसकी वजह से भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में सतह के पानी में असामान्य बढ़त हुई. इससे पूरे क्षेत्र में ही तापमान और ज्यादा हो गया. इसका असर मच्छरों की ब्रीडिंग पर भी हुआ. कैरेबियन और लैटिन अमेरिका में मौसम के इस पैटर्न की शुरुआत पिछले साल ही हुई थी. 

dengue fever cases in latin america and caribbean photo AFP

साफ-सफाई का ध्यान न रखना भी बना कारण

मौसम में उठापटक के बीच कई और बातें हुईं. जैसे कभी भी बारिश हो जाना, या समुद्र के स्तर का बढ़ना. इसकी वजह से पानी जमा होने लगा, जिसने मच्छरों को ब्रीडिंग के मौके दे दिए. वैसे इन देशों में छतें फ्लैट होती हैं, जहां पानी जमा हो जाता है. गरीबी से जूझते इन देशों में बेसिक साफ-सफाई पर ध्यान कम ही जाता है. इसके अलावा पाइपलाइनों की कमी के चलते लोग टंकियों में पानी जमा करते हैं. ये भी मच्छरों के पनपने का कारण बनता है. 

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क्यों नहीं आ रही वैक्सीन

लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों में डेंगू के कहर को देखते हुए  वैक्सीन की जरूरत और गंभीर हो चुकी. हालांकि इसमें कई प्रैक्टिकल दिक्कतें हैं. वो क्या हैं, ये समझने से पहले एक बार डेंगू को जानते चलें. ये विषाणुजन्म बीमारी है, जो एडीज मच्छरों के काटने से फैलती है. चूंकि आमतौर पर इसके लक्षण 10 दिनों तक सामने नहीं आते, ऐसे में संक्रमित शख्स से बीमारी मच्छरों के जरिए दूसरों तक फैलती चली जाती है. 

एक वैरिएशन पर दूसरी वैक्सीन नाकाम

डेंगू के 4 वैरिएशन हैं, यानी चार अलग तरह का फीवर हो सकता है. जब किसी को एक तरह का फीवर होकर ठीक हो जाए, तो उसमें उस खास वैरिएशन के लिए एंटीबॉडी होगी, लेकिन तीन और टाइप होंगे, जिनसे वो अब भी बीमार हो सकता है. ऐसे में अगर वैक्सीन बन भी जाए तो एक टाइप पर ही काम करेगी. यहां बता दें कि कई वायरल बीमारियों से अलग डेंगू के वैरिएशन एक-दूसरे से इतने अलग हैं, उनमें एक वैक्सीन दूसरे से प्रोटेक्ट नहीं कर सकती. जैसे कोरोना को ही तो उसके अलग-अलग वैरिएंट पर भी एक ही वैक्सीन कारगर रही, लेकिन डेंगू के मामले में ऐसा नहीं है. 

dengue fever cases in latin america and caribbean photo Pixabay

क्या वैक्सीन लगाने पर ज्यादा खतरे!

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कई देशों ने डेंगू फीवर की वैक्सीन बनाई भी, लेकिन ये न तो उतनी कारगर है, न ही यूनिवर्सली-स्वीकार्य है. साल 2015 में मैक्सिको ने डेंगू की पहली वैक्सीन बनाई. दो ही सालों के भीतर कई देशों ने इसे अप्रूव भी कर दिया, लेकिन फिर इसपर शक जताया जाने लगा. डेंगू बाकी वायरल बीमारियों से अलग तरीके से काम करता है. दूसरी बीमारियों में एंटीबॉडी के लिए वैक्सीन लगने से उस बीमारी के गंभीर होने का खतरा बहुत कम हो जाता है, वहीं डेंगू एंटीबॉडी के जरिए ही स्वस्थ कोशिकाओं तक पहुंच जाता है और उन्हें भी संक्रमित कर सकता है. 

क्या कहती है रिसर्च

ग्लोबल फार्मा कंपनी सनोफी और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का रिसर्च डेटा कहता है कि जिन लोगों को कभी डेंगू न हुआ हो, वे अगर इसकी वैक्सीन ले लें तो उन्हें पहली बार होने वाला डेंगू संक्रमण काफी गंभीर हो सकता है. ऐसे में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन सलाह देता है कि मच्छरों से बचें और संक्रमण हो ही जाए तो ज्यादा से ज्यादा लिक्विड लेते हुए बुखार और दर्द की दवाएं लें. 

कई और देश भी डेंगू फीवर के लिए वैक्सीन पर काम कर रहे हैं, लेकिन उनका वैरिएशन ही इसमें रुकावट बन रहा है.

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