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21 दिन की फरलो पर जेल से बाहर आया राम रहीम... जानें- पेरोल से कितनी अलग होती है

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम फिर 21 दिन के लिए जेल से बाहर आ गया है. उसकी 21 दिन की फरलो मंजूर हो गई थी, जिसके बाद उसे जेल से रिहा कर दिया गया है. ऐसे में जानते हैं कि फरलो और पेरोल में कितना अंतर होता है?

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राम रहीम 2017 से जेल में बंद है. (फाइल फोटो)
राम रहीम 2017 से जेल में बंद है. (फाइल फोटो)

रेप और हत्या के मामले में सजा काट रहा राम रहीम फिर जेल से बाहर आ गया है. उसे 21 दिन की फरलो पर जेल से रिहा किया गया है. ये 21 दिन भी सजा में ही गिने जाएंगे.

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राम रहीम रोहतक की सुनारिया जेल में बंद था. जेल से बाहर आने के बाद राम रहीम यूपी के बागपत जिले के बरनावा आश्रम में रहेगा.

इस साल में ये तीसरी बार है जब राम रहीम जेल से बाहर आया है. इससे पहले वो इस साल जनवरी में 40 और जुलाई में 30 दिन के लिए बाहर आया था. राम रहीम 2017 से जेल में बंद है. तब से अब तक आठवीं बार उसे जेल से रिहा किया गया है.

बहरहाल, फरलो पर रिहा होना और पेरोल पर जेल से बाहर आना, दोनों में अंतर होता है. आमतौर पर इसे एक ही समझ लिया जाता है.

क्या होती है फरलो?

- फरलो एक तरह से छुट्टी की तरह होती है, जिसमें कैदी को कुछ दिन के लिए रिहा किया जाता है. फरलो की अवधि को कैदी की सजा में छूट और उसके अधिकार के तौर पर देखा जाता है. 

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- फरलो सिर्फ सजा पा चुके कैदी को ही मिलती है. फरलो आमतौर पर उस कैदी को मिलती है जिसे लंबे वक्त के लिए सजा मिली हो. 

- इसका मकसद होता है कि कैदी अपने परिवार और समाज के लोगों से मिल सके. इसे बिना कारण के भी दिया जा सकता है. 

- चूंकि जेल राज्य का विषय है, इसलिए हर राज्य में फरलो को लेकर अलग-अलग नियम है. उत्तर प्रदेश में फरलो देने का प्रावधान नहीं है.

फरलो और पेरोल में क्या अंतर होता है?

- फरलो और पेरोल दोनों अलग-अलग बातें हैं. प्रिजन एक्ट 1894 में इन दोनों का जिक्र है. फरलो सिर्फ सजा पा चुके कैदी को ही मिलती है. जबकि, पेरोल पर किसी भी कैदी को थोड़े दिन के रिहा किया जा सकता है. 

- इसके अलावा फरलो देने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती. लेकिन पेरोल के लिए कोई कारण होना जरूरी है. पेरोल तभी मिलती है जब कैदी के परिवार में किसी की मौत हो जाए, ब्लड रिलेशन में किसी की शादी हो या कुछ और जरूरी कारण. 

- किसी कैदी को पेरोल देने से इनकार भी किया जा सकता है. पेरोल देने वाला अधिकारी ये कहकर मना कर सकता है कि कैदी को छोड़ना समाज के हित में नहीं है.

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कब नहीं मिलती पेरोल और फरलो? 

- सितंबर 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पेरोल और फरलो के लिए नई गाइडलाइंस जारी की थी. इसमें गृह मंत्रालय ने बताया था कि किसी को पेरोल और फरलो कब नहीं दी जाएगी? इसके मुताबिक- 

a) ऐसे कैदी जिनकी मौजूदगी समाज में खतरनाक हो या जिनके होने से शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने का खतरा हो, उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए. 

b) ऐसे कैदी जो हमला करने, दंगा भड़काने, विद्रोह या फरार होने की कोशिश करने जैसी जेल हिंसा से जुड़े अपराधों में शामिल रहे हों, उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए. 

c) डकैती, आतंकवाद संबंधी अपराध, फिरौती के लिए अपहरण, मादक द्रव्यों की कारोबारी मात्रा में तस्करी जैसे गंभीर अपराधों के दोषी या आरोपी कैदी को रिहा नहीं किया जाना चाहिए. 

d) ऐसे कैदी जिनके पेरोल या फरलो की अवधि पूरा कर वापस लौटने पर संशय हो, उन्हें भी रिहा नहीं किया जाना चाहिए. 

e) यौन अपराधों, हत्या, बच्चों के अपहरण और हिंसा जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में एक समिति सारे तथ्यों को ध्यान में रखकर पेरोल या फरलो देने का फैसला कर सकती है.

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