उत्तर-पश्चिम और पूर्वी भारत में भीषण गर्मी का दौर थोड़ी राहत के बाद फिर से शुरू हो चुका. मौसम विभाग लोगों को हीटवेव से संभलकर रहने की चेतावनी दे रहा है. ज्यादातर राज्यों में स्कूल बंद पड़े हैं. इस बीच चर्चा हो रही है कि हीटवेव इतनी खतरनाक आपदा होने के बाद भी क्यों इसे डिजास्टर नहीं माना जा रहा. जानिए क्या होगा अगर गर्मी को डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट में शामिल कर लिया जाए.
साल 1999 में उड़ीसा में सुपर साइक्लोन आया था. लगभग 250 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तट से टकराए तूफान की वजह से 10 हजार लोगों की मौत हुई, और लाखों लोग बेघर हो गए थे. तभी पहली बार डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट पर बात शुरू हुई. इस बीच 2004 में सुनामी आ गया. इसके सालभर बाद ही डीएम एक्ट लागू हुआ. इसमें कुदरती और इंसानी वजहों से आई आपदा, जिसमें जानमाल, पर्यावरण का नुकसान होता हो, शामिल है.
किन घटनाओं को इस कैटेगरी में रखा जाता है
प्राकृतिक या इंसानों की वजह से आई कोई भी आपदा, जिससे जान जा सकती हो, प्रॉपर्टी का भारी नुकसान होता हो, या फिर पर्यावरण को गंभीर हानि हो, ये सभी डीएम एक्ट में आते हैं. साथ ही साथ डिजास्टर ऐसा हो, जो लोगों की सहने की क्षमता से बाहर हो.
किस तरह बंटता है फंड
ऐसे इवेंट्स दिखने पर उनपर डीएम एक्ट लागू हो जाता है. इसके बाद प्रभावित राज्य दो फंडों से पैसे निकाल सकता है- नेशनल लेवल पर एनडीआरएफ और स्टेट के स्तर पर एसडीआरएफ. स्टेट्स को कहा जाता है कि वे पहले स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड का उपयोग करें. अगर इसके बाद भी मामला संभल न रहा हो, ज्यादा पैसों की जरूरत पड़े तो राज्य एनडीआरएफ से मदद ले सकते हैं.
अगर हम साल 2023-24 की बात करें तो मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स के डेटा के अनुसार केवल दो राज्यों ने ही नेशनल फंड लिया था, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम. वहीं ज्यादातर राज्यों ने अलॉट हुए फंड में से थोड़ा सा ही हिस्सा उपयोग किया. एनडीआरएफ में सारे पैसे केंद्र देता है, वहीं स्टेट में भी 75 फीसदी धन सेंटर से ही आता है, जबकि बाकी 25 प्रतिशत राज्य का अपना कोष होता है. इन पैसों को डीएम एक्ट के तहत रखी गई आपदाओं के अलावा कहीं और इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
अभी कौन से डिजास्टर इस श्रेणी में
फिलहाल ऐसी 12 श्रेणियां हैं, जो डीएम एक्ट में हैं- चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, पेस्ट अटैक, पाला गिरना और ठंडी हवाएं.
लू को क्यों नहीं किया जा रहा शामिल
देश में हीटवेव के चलते हर साल ही कई मौतें होती हैं. इसकी वजह से काफी बीमारियां भी होती रहीं. लेकिन साल 2005 में जब डीएम एक्ट बना, तब लू को इस तरह से नहीं देखा गया था. चूंकि गर्मियों में गर्म हवाएं चलती ही हैं तो इसे डिजास्टर नहीं माना गया. पिछले 15 सालों में हीटवेव ज्यादा खतरनाक हुई, साथ ही लोग इसकी चपेट में भी ज्यादा आ रहे हैं.
क्यों है फंड की जरूरत
फिलहाल 23 ऐसे राज्य हैं जो हीटवेव के लिए संवेदनशील हैं. गर्मी से अपने लोगों को बचाने के लिए उनके पास हीट एक्शन प्लान भी है. मसलन, शेड लगाना, पब्लिक प्लेस पर ठंडे पानी की उपलब्धता, ओरल सॉल्यूशन मिलना और स्कूल-कॉलेज के अलावा दफ्तरों के काम के घंटे फ्लेग्जिबल करना. इस काम में पैसों की जरूरत है, स्टेट के पास फंड भी हैं. लेकिन चूंकि हीटवेव एसडीआरएफ में नहीं आता इसलिए उन पैसों का इस्तेमाल भी नहीं हो पा रहा.
लोकल डिजास्टर मानकर निकाल सकते हैं फंड का कुछ हिस्सा
स्टेट फाइनेंशियल कमीशन से लगातार ये मांग कर रहे हैं कि हीटवेव को भी आपदा माना जाए ताकि वे फंड का इस्तेमाल कर सकें, लेकिन कमीशन का कहना है कि मौजूदा लिस्ट काफी हद तक राज्यों की जरूरत पूरा कर रही है, ऐसे में हीटवेव को इसमें जोड़ने की जरूरत नहीं.
हालांकि कमीशन ये भी मानता है कि राज्य 'लोकल डिजास्टर' के लिए 10% तक फंड इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे बिजली गिरना या हीटवेव. इस नए प्रोविजन के बाद से केरल, उड़ीसा, हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने लू को लोकल आपदा की श्रेणी में डाल दिया.
केंद्र क्यों नहीं लागू कर रहा डीएम एक्ट
सेंटर इसे आपदा क्यों नहीं मान रहा, इसकी कई वजहें हो सकती हैं. जैसे एक कारण तो ये है कि इसकी वजह से हुई हर मौत पर सरकार को 4 लाख रुपए का मुआवजा परिवार को देना होगा. नोटिफाइड लिस्ट में जितनी भी आपदाएं हैं, सबमें ये होता है. हर साल के साथ लू लगने पर मौतें बढ़ती जा रही हैं, जो कि बजट पर भारी बोझ हो सकता है. एक कारण ये भी हो सकता है कि अकेले हीटवेव से मौत कम होती है. वहीं बाकी आपदाओं में सीधे पता लगता है कि तूफान, या ठंड से मौत हुई.