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टॉप सीक्रेट को खुफिया रखने के लिए कौन से तरीके अपनाता रहा अमेरिका, बात लीक हो जाए तो क्या होता है?

अमेरिका यूं ही सुपर पावर नहीं, बल्कि इसमें काफी हाथ उसके खुफिया तौर-तरीकों का भी है, फिर चाहे वो 9/11 के बाद सैन्य अटैक हों, या एरिया 51 की गोपनीयता, जहां कथित तौर पर एलियन्स पर खोज काफी आगे जा चुकी. कोई भी योजना बनाते हुए ये देश बेहद सतर्कता बरतता रहा. इसी सीक्रेसी में हाल में सेंध लगती दिखी, जब अमेरिकी सैन्य अधिकारी खुफिया मुहिम की चर्चा सिग्नल पर करने लगे, जो वॉट्सएप की तरह ही एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सर्विस है.

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वाइट हाउस अपनी योजनाएं गोपनीय रखने के लिए जाना जाता है. (Photo- Getty Images)
वाइट हाउस अपनी योजनाएं गोपनीय रखने के लिए जाना जाता है. (Photo- Getty Images)

सोमवार को 'द अटलांटिक' में एक रिपोर्ट छपी, जिसमें एडिटर ने दावा किया कि अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी अधिकारियों ने गलती से उन्हें एक ग्रुप चैट में शामिल कर लिया, जहां यमन में हूती विद्रोहियों पर सैन्य हमले की चर्चा हो रही थी. अटलांटिक की खबर के बाद तहलका मच गया. जो अमेरिका छींक लेने जैसी मामूली बात को पचा जाता है, उससे इतनी बड़ी खुफिया चूक कैसे हो गई. साथ ही ये चर्चा भी होने लगी कि यूएस में सीक्रेट मिशन की तैयारी कैसे होती है.

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क्या इसमें शामिल लोग मेल, फोन या चैट जैसी सर्विस का इस्तेमाल कर पाते हैं, या कोई और तरीका है?

अभी क्या हुआ, जो चर्चा शुरू हुई

अमेरिका के प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने 15 मार्च को हमलों की घोषणा की थी, लेकिन एक चौंकाने वाली सुरक्षा चूक में, द अटलांटिक पत्रिका के प्रधान संपादक जेफरी गोल्डबर्ग ने लिखा कि सिग्नल पर समूह चैट के माध्यम से उन्हें घंटों पहले ही इसकी सूचना मिल गई थी. इसी सोमवार को वाइट हाउस ने भी माना कि उससे एक पत्रकार को संवेदनशील चर्चा कर रहे ग्रुप में जोड़ने की चूक हो गई थी.

पहले से ही अपने आक्रामक कार्यशैली के लिए विपक्षियों के निशाने पर रहते ट्रंप इसे लेकर एक बार फिर घिरे हुए हैं. ट्रंप ने हालांकि इसे दो महीनों में हुई पहली चूक बताते हुए पल्ला झाड़ लिया लेकिन तब भी ये बात उठ रही है कि सीक्रेट प्लान बनाते हुए अमेरिका और बाकी देश किस तरह से बातचीत करते हैं. क्या इसमें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की मदद ली जाती है, या नहीं. 

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पहले कौन से तरीके थे चलन में

इंटरनेट के आने से पहले खुफिया जानकारियों के लेनदेन और सैन्य योजनाओं के लिए अमेरिका में कई अलग तरीके थे. इनमें फिजि्कल डिलीवरी या डिप्लोमेटिक कुरियर सबसे ज्यादा प्रचलित था. खास एजेंट या राजनयिक गुप्त दस्तावेजों को सील किए हुए लिफाफों में लेकर जाते. इन्हें कुछ ही लोग रिसीव कर सकते थे और उन्हें ही ऐसे लिफाफे खोलने की इजाजत थी. अतिरिक्त सावधानी के लिए ये कोडेड होते हैं, यानी उस भाषा में लिखे होते, या ऐसे संकेत होते, जो खुफिया अधिकारी ही समझ सकें. 

donald trump administration leak of yemen war plan and history of secret communication ways photo Unsplash

सेना या इंटेलिजेंस एजेंसियों के पास खास लोग होते, जिनका काम सीक्रेट जानकारियों को एक से दूसरी जगह पहुंचाना था. कुछ जानकारियां गोपनीय जगहों पर छोड़ दी जातीं और रिसीवर अपनी तरह से वहां आकर सूचना ले लेता. ये डेड ड्रॉप्स कहलाता. इसी तरह से लाइव ड्रॉप्स भी था, जिसमें एक से दूसरे शख्स तक सूचना पहुंचाई जाती. दोनों ही तरीके अपनी तरह से सेफ या जोखिम भरे थे. 

एनक्रिप्टेड टेलीग्राफ और रेडियो कम्युनिकेशन का भी वर्ल्ड वॉर के दौरान उपयोग होने लगा. जर्मनी इसमें काफी आगे था. उसने कोडेड भाषा वाली एनिग्मा मशीन निकाली, जिसकी नकल बाद में अमेरिका ने भी की. 

पुराने वक्त में मरे हुए पशुओं का भी उपयोग

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वैसे संवेदनशील जानकारी को एक से दूसरे हाथ तक पहुंचाने के लिए पुराने समय में कई अलग तरीके काम में आते रहे. एस्पियोनेज- ए कंसाइज हिस्ट्री नाम की किताब में डिटेल में बताया गया कि एजेंट्स किन-किन तरीकों से खुफिया चीजों को खुफिया बनाए रखते. 20वीं सदी की शुरुआत में CIA ने मरे हुए पशुओं के शरीर को हाइडिंग प्लेस की तरह उपयोग करना शुरू कर दिया. कबूतर और चूहे सबसे ज्यादा काम में आए. उन्हें मारकर उनके भीतर मैसेज छिपाए जाने लगे. दिखाई न देने वाली स्याही भी लंबे समय तक चलन में रही. 

अब किन तरीकों से होती है बातचीत

- सीक्रेट इंटरनेट प्रोटोकॉल राउटर नेटवर्क का उपयोग अमेरिकी रक्षा विभाग और बाकी सरकारी एजेंसियां टॉप सीक्रेट स्तर की जानकारी के लिए करती हैं. इसमें ईमेल से लेकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी सुविधाएं होती हैं.

- अमेरिकी खुफिया एजेंसियां जॉइंट वर्ल्डवाइट इंटेलिजेंस कम्युनिकेशन्स सिस्टम का भी उपयोग करती रहीं. इसमें गुप्ट अभियान, जासूसी या नेशनल महत्व की बातों को टॉप स्तर के अधिकारी ही साझा कर सकते हैं. 

- इसके अलावा इन्क्रिप्टेड फोन भी होते हैं, जो खुफिया अधिकारियों से लेकर वाइट हाउस में खास लेयर के लिए होते हैं. 

donald trump administration leak of yemen war plan and history of secret communication ways photo AP

यहां होती है सबसे गोपनीय बातों पर चर्चा

बेहद गोपनीय जानकारी पर बात के लिए अधिकारी सेंसिटिव कंपार्टमेंटेड इंफॉर्मेशन फैसिलिटी में मिलते हैं, ये एक खास कमरा है, जो बाहरी दुनिया या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या सिग्नल से पूरी तरह से कटा होता है. यहां तक कि हीटिंग या वेंटिलेशन के लिए बने डक्ट में भी ऐसे उपकरण लगे होते हैं जो भीतर की बात बाहर जाने से रोकें. यहां कोई खिड़की नहीं होती. अधिकारी अगर यहां बात करते हुए कागज-पत्तर का इस्तेमाल करें तो उसे बर्न बैग्स में डाल दिया जाता है ताकि वो वहीं खत्म हो जाएं. इस इमारत का रखरखाव काफी खर्चीला होता है, यही वजह है कि इसका उपयोग सिर्फ सेना के टॉप अधिकारी और सरकारी एजेंसियां ही करती रहीं. 

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क्या हो सकता एक्शन अगर बात लीक हो जाए

अगर खुफिया जानकारी गलती से लीक हो जाए तो संबंधित अधिकारी पर कार्रवाई हो सकती है. यह इस बात पर तय करता है कि बात लीक कैसे हुई. जानकारी कितनी संवेदनशील थी और उसके खुलने में अधिकारी का क्या रोल था. बात सीक्रेट या टॉप सीक्रेट नहीं, तो इसपर खास कार्रवाई नहीं होती.

कई बार इंटरनल जांच होती है ताकि समझा जा सके कि भेद गलती से खुला या जानबूझकर. अगर इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हुआ, तो अधिकारी पर कानूनी मुकदमा भी चल सकता है. लेकिन ऐसे तमाम लोगों को गोपनीयता बनाए रखने के लिए बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है, जिसकी वक्त-वक्त पर रिव्यू भी होती है.

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