20वीं सदी के इंजीनियरिंग चमत्कारों में से एक माने जाने वाली पनामा नहर ने वैश्विक व्यापार और अमेरिकी भू-राजनीतिक रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस नहर को लेकर अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका को नहर पर नियंत्रण वापस ले लेना चाहिए. उनके इस बयान से एक विवादास्पद बहस को हवा मिल गई है. ट्रंप का पनामा नहर को लेकर ऐसा रुख दिखाता है कि क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव से ट्रंप कितने चिंतित हैं और वो चीनी प्रभाव को अमेरिकी सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए कितना बड़ा खतरा मानते हैं.
पनामा नहर को लेकर ट्रंप की बयानबाजी और उसके मतलब को समझने के लिए नहर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, नहर के सामरिक महत्व, पनामा और अमेरिका के बीच आधुनिक व्यवस्था और क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को समझना जरूरी है.
पनामा नहर का इतिहास
अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली नहर का विचार 16वीं शताब्दी में आया था जब स्पेनिश खोजकर्ताओं ने इस मार्ग के रणनीतिक फायदों को पहचाना था. हालांकि, 20वीं सदी की शुरुआत तक राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट के नेतृत्व में अमेरिका पनामा प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पाया था.
पनामा पहले कोलंबिया का गुलाम था लेकिन अमेरिका की मदद से वो आजाद हुआ और बदले में अमेरिका को 1904 में पनामा नहर बनाने का अधिकार मिल गया. नहर का निर्माण 1914 में पूरा हुआ और दशकों तक नहर का प्रशासन अमेरिका के हाथ में रहा, जिससे वैश्विक समुद्री व्यापार पर उसका प्रभुत्व मजबूत हुआ. नहर के कारण अमेरिका को दोनों विश्व युद्धों और शीत युद्ध के दौरान काफी लाभ हुआ. अमेरिकी नौसेना और उसके व्यापारिक जहाज पनामा नहर के जरिए तेजी से आवागमन कर पा रहे थे.
पनामा ने भले ही नहर का नियंत्रण अमेरिका को दे दिया था, लेकिन दोनों देशों के बीच यह व्यवस्था विवादास्पद रही. पनामा के लोगों ने नहर पर अमेरिकी नियंत्रण को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन माना जिसके कारण वहां दशकों तक विरोध-प्रदर्शन हुए और दोनों देशों ने इसे लेकर वार्ताएं कीं.
1977 में, अमेरिका और पनामा के बीच कार्टर-टोरिजोस संधि पर हस्ताक्षर हुआ, जिसके तहत अमेरिका ने 1999 के अंत तक नहर का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया. 31 दिसंबर, 1999 को नहर पर पनामा का नियंत्रण हो गया और अब पनामा नहर प्राधिकरण (ACP) नहर का प्रबंधन करता है.
नहर का सामरिक और आर्थिक महत्व
पनामा नहर वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग बनी हुई है जो एशिया, अमेरिका और यूरोप के बीच माल की आवाजाही को आसान बनाती है. लगभग 14,000 जहाज सालाना नहर से गुजरते हैं, जो वैश्विक समुद्री व्यापार का 6 प्रतिशत है. पनामा नहर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका करता है. अमेरिका अपने पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच माल भेजने, तेल और कृषि उत्पादों जैसी वस्तुओं के निर्यात के लिए नहर पर निर्भर है.
आर्थिक महत्व के अलावा, इस नहर का सामरिक सैन्य महत्व भी है. नहर पर नियंत्रण से अमेरिका अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के बीच नौसेना बलों की तेजी से तैनाती कर सकता है. यह अमेरिका के वैश्विक सैन्य अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षमता होगी.
कैसे हैं पनामा और अमेरिका के संबंध?
1999 में नहर के हस्तांतरण के बाद, पनामा और अमेरिका के बीच संबंध मजबूत बने रहे. नहर अमेरिका के आर्थिक और सुरक्षा हितों की पूर्ति करती रही है, और अमेरिका पनामा का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार और सहयोगी है.
हालांकि, नहर अब केवल अमेरिकी प्रभाव में नहीं है. नहर के हस्तांतरण के बाद से, पनामा ने नहर का आधुनिकीकरण और विस्तार किया है. 2016 में नहर में तीसरे लॉक का निर्माण किया गया. नहर के विस्तार से एशिया के जहाज भी अब नहर से गुजरते हैं जिससे नहर ग्लोबल सप्लाई चेन को आगे बढ़ाने में मददगार हो गया है.
पनामा में चीन का बढ़ता प्रभाव
चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), एक विशाल बुनियादी ढांचा विकास रणनीति है, जो पनामा सहित लैटिन अमेरिका तक फैल गई है. चीनी कंपनियों ने नहर के पास बंदरगाहों, रसद और बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है, जिससे अमेरिका में चिंता बढ़ गई है. गौर करने वाली बात ये हैं कि हांगकांग स्थित Hutchison Whampoa नहर के दोनों छोर पर प्रमुख बंदरगाहों का संचालन करती है. चीन की सरकारी कंपनियों ने नहर से संबंधित प्रोजेक्ट्स में रुचि दिखाई है.
ट्रंप और अन्य आलोचकों का तर्क है कि नहर से संबंधित प्रोजेक्ट्स में चीनी निवेश अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उन्हें डर है कि किसी तरह के संघर्ष की स्थिति में चीन नहर का संचालन रोक सकता है और अमेरिकी सैन्य या आर्थिक क्षमताओं को नुकसान पहुंचा सकता है.
पनामा नहर पर ट्रंप का रुख
पनामा नहर को वापस लेने के ट्रंप के बयान से पता चलता है कि रणनीतिक क्षेत्रों में अमेरिका की साख में गिरावट आ रही है और वैश्विक प्रतिस्पर्धी के रूप में चीन का उदय हो रहा है. राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ट्रंप ने बार-बार चीनी प्रभाव का मुकाबला करने की जरूरत पर जोर दिया है और पनामा नहर अब उस संघर्ष का प्रतीक बन गई है. ट्रंप का तर्क है कि कार्टर प्रशासन का नहर से नियंत्रण छोड़ने का निर्णय एक "ऐतिहासिक भूल" थी जिसने लैटिन अमेरिका में अमेरिकी प्रभाव को कमजोर कर दिया.
ट्रंप के ऐसे बयान आर्थिक राष्ट्रवाद और व्यापार नीतियों को लेकर उनकी विदेश नीति को दिखाती है. नहर को राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले के रूप में पेश कर, ट्रंप उन वोटर्स के बीच अपना समर्थन जुटाना चाहते हैं जो वैश्विक मामलों में चीन की बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं.
ट्रंप के प्रस्ताव की चुनौतियां
पनामा नहर पर अमेरिकी नियंत्रण को फिर से स्थापित करना कूटनीतिक और तार्किक दोनों ही दृष्टि से एक बड़ी चुनौती होगी. पनामा, एक संप्रभु देश है जो नहर पर अपने नियंत्रण को कम करने के किसी भी कोशिश का कड़ा विरोध करेगा.
इस तरह के कदम से अमेरिका और लैटिन अमेरिकी देश के संबंधों में भी तनाव आ सकता है. इसके अलावा, अमेरिका अगर पनामा नहर पर नियंत्रण की कोशिश करता है तो चीन की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया मिल सकती है और दोनों महाशक्तियों के बीच तनाव और बढ़ सकता है.
क्या होगा अगर ट्रंप ने नहर पर किया नियंत्रण?
पनामा नहर 21वीं सदी में एक महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक संपत्ति बनी हुई है. हालांकि चीन के प्रभाव के बारे में ट्रंप की चिंताएं निराधार नहीं हैं, लेकिन नहर पर फिर से नियंत्रण हासिल करना बहुत संभव नहीं लगता. अगर ट्रंप ऐसा करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें भू-राजनीतिक और आर्थिक परिणाम भुगतने होंगे, इसलिए उन्हें इस पर विचार करने की जरूरत होगी.
फिलहाल, यह नहर वैश्विक राजनीति में शक्ति के बदलते संतुलन की याद दिलाती है. अभी यह एक सवाल है कि क्या अमेरिका कड़े कदम उठाए बिना पनामा में चीन के प्रभाव का मुकाबला कर सकता है. लेकिन एक बात साफ है कि नहर बनने के एक सदी से अधिक समय बाद भी नहर वैश्विक प्रभुत्व के संघर्ष का एक केंद्र बनी हुई है.