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कहीं टिकट बेचकर, कहीं कॉर्पोरेट से... दुनियाभर में ऐसे चंदा जुटाती हैं राजनीतिक पार्टियां, जानें- भारत से कितना अलग है सिस्टम

भारत में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर बवाल जारी है. सुप्रीम कोर्ट ने महीनेभर पहले इस स्कीम को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था. भारत में राजनीतिक पार्टियों की सबसे ज्यादा कमाई इन्हीं चुनावी बॉन्ड से होती थी. ऐसे में जानते हैं कि दुनियाभर में राजनीतिक पार्टियां कहां-कहां से कमाती हैं.

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दुनियाभर में राजनीतिक चंदे को लेकर अलग-अलग नियम हैं.
दुनियाभर में राजनीतिक चंदे को लेकर अलग-अलग नियम हैं.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर एसबीआई को सुप्रीम कोर्ट से फिर झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने अब एसबीआई को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी तीन दिन में जमा करने को कहा है. 

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मामले पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है. बेंच ने कहा कि एसबीआई चेयरमैन को 21 मार्च की शाम 5 बजे तक इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी देने के बाद एक हलफनामा दाखिल करना होगा, जिसमें बताना होगा कि उन्होंने कोई डिटेल नहीं छिपाई है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसबीआई को बॉन्ड के अल्फान्यूमरिक नंबर और सीरियल नंबर समेत सभी तरह की डिटेल का खुलासा करना होगा. एसबीआई से जानकारी मिलने के बाद चुनाव आयोग इसे अपनी वेबसाइट पर जारी करेगा.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एसबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी कई सारी जानकारियां बताई थीं. कंपनी ने ये तो बताया कि किस कंपनी ने कितनी रकम का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा, लेकिन ये नहीं बताया कि किस कंपनी ने कितनी रकम का चंदा किस पार्टी को दिया? 

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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को 'असंवैधानिक' बताते हुए रद्द कर दिया है. भारत में वैसे तो राजनीतिक पार्टियां कई तरीकों से फंडिंग जुटा सकती हैं, लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड सबसे बड़ा जरिया था. अब जब इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर भारत में इतना बवाल चल रहा है तो जानते हैं दुनिया के बाकी मुल्कों में चुनावी फंडिंग को लेकर नियम-कायदे क्या हैं?

भारत के पड़ोसी मुल्कों में चुनावी फंडिंग का सिस्टम

पाकिस्तान में ऐसे कमाती हैं पार्टियां

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में राजनीतिक पार्टियों को कोई भी व्यक्ति या संस्था चंदा दे सकती है. हालांकि, हर साल वित्त वर्ष खत्म होने के 60 दिन के भीतर पार्टियों को एक ऑडिट रिपोर्ट जमा करानी होती है.

पाकिस्तान में राजनीतिक पार्टियों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया चुनावी टिकट है. पार्टियां टिकट बेचकर कमाई करती हैं.

पाकिस्तान में हाल ही में आम चुनाव और प्रांतीय चुनाव हुए हैं. पूर्व पीएम नवाज शरीफ की पार्टी PML-N ने आम चुनाव की टिकट की कीमत 2 लाख और प्रांतीय चुनाव की टिकट की कीमत 1 लाख पाकिस्तानी रुपया तय की थी. ये नॉन-रिफंडेबल होती है. यानी, अगर उम्मीदवार चुनाव हार जाता है तो उसे उसका पैसा वापस नहीं किया जाता है.

पाकिस्तानी न्यूज वेबसाइट 'डॉन' के मुताबिक, 2018 के चुनाव में इमरान खान की पार्टी PTI ने टिकट बेचकर लगभग 48 करोड़ रुपये कमाए थे. उस साल PTI ने अपनी कुल कमाई में से 45% सिर्फ टिकट बेचकर कमाया था. 

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बांग्लादेश में ऐसे कमाती हैं पार्टियां

बांग्लादेश में भी राजनीतिक पार्टियों को हर साल 31 जुलाई तक पिछले साल की ऑडिट रिपोर्ट जमा करनी होती है. इस रिपोर्ट में पार्टियां अपनी कमाई और खर्च का ब्योरा देती हैं.

यहां राजनीतिक पार्टियां नॉमिनेशन फॉर्म और मेंबरशिप फॉर्म बेचकर सबसे ज्यादा कमाई करती हैं. इसके अलावा कमाई के और दूसरे जरिए भी हैं.

बांग्लादेश में लंबे वक्त से प्रधानमंत्री शेख हसीना की अगुवाई वाली आवामी लीग पार्टी सत्ता में है. कमाई में सबसे आगे यही पार्टी भी है.

इसी साल जनवरी में बांग्लादेश में आम चुनाव हुए हैं. इस चुनाव के लिए पिछले साल अक्टूबर से ही आवामी लीग ने नॉमिनेशन फॉर्म की बिक्री शुरू कर दी थी. एक फॉर्म की कीमत 50 हजार टका रखी गई थी. पहले ही दिन आवामी लीग ने फॉर्म की बिक्री से 5.32 करोड़ टका कमाई की थी.

बांग्लादेशी चुनाव आयोग में दाखिल रिपोर्ट में आवामी लीग ने बताया था कि 2022 में उसे 10.71 करोड़ टका की कमाई हुई थी, जबकि 2021 में पार्टी ने 21.23 करोड़ टका कमाया था.

अमेरिका और ब्रिटेन में ऐसे कमाती हैं पार्टियां

- अमेरिका

अमेरिका में राष्ट्रपति समेत बाकी दूसरे पदों के उम्मीदवार और पार्टियां चुनावी प्रचार के लिए फंड जुटा सकते हैं. यहां उम्मीदवार के खर्च पर कोई सीमा नहीं है. 

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अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन, दो ही पार्टियां हैं. ये पार्टियां आम जनता से सीधे पैसे जुटा सकती हैं. इनके अलावा पार्टियों की अपनी कमेटियां भी होती हैं, जो फंड जुटाती हैं.

अमेरिका के चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2020 के बीच डेमोक्रेट और रिपब्लिकन के राष्ट्रपति उम्मीदवारों ने 4.1 अरब डॉलर का फंड जुटाया था. वहीं, राजनीतिक पार्टियों की कमेटियों ने 3.2 अरब डॉलर की कमाई थी.

इनके अलावा हर राजनीतिक पार्टी की कुछ पॉलिटिकल एक्शन कमेटियां भी होती हैं, जो फंड जुटाती हैं. इन पॉलिटिकल एक्शन कमेटियों ने 24 महीने में 13.2 अरब डॉलर जुटाए थे.

- ब्रिटेन

ब्रिटेन में भी राजनीतिक पार्टियों की कमाई के कई सारे सोर्सेस हैं. पार्टियां आम जनता से तो सीधे-सीधे चंदा ले ही सकती है, साथ ही साथ ट्रेड यूनियन और मेंबरशिप के जरिए भी फंड जुटा सकती हैं. इसके अलावा कॉर्पोरेट चंदे से भी पार्टियों की कमाई होती है.

ब्रिटेन में दो प्रमुख कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी हैं. ब्रिटिश अखबार 'द गार्डियन' की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में सभी राजनीतिक पार्टियों को 9.3 करोड़ पाउंड का चंदा मिला था. जबकि, 2022 में पार्टियों को 5.2 करोड़ पाउंड का चंदा आया था.

इसी साल ब्रिटेन में आम चुनाव हैं. चुनावी साल पहले राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में बढ़ोतरी होने से माना जा रहा है कि ये अब तक का सबसे महंगा चुनाव होगा.

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ब्रिटिश चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा 4.45 करोड़ पाउंड का चंदा सत्ताधारी पार्टी कंजर्वेटिव को मिला है. जबकि, विपक्षी लेबर पार्टी को 2.16 करोड़ पाउंड का चंदा मिला.

चुनावी चंदे पर दुनियाभर में क्या नियम? 

- अमेरिकाः कॉर्पोरेट और विदेशी चंदा नहीं ले सकते. गुमनामी चंदे पर भी सीमा है. पार्टियों के खर्च पर सीमा, लेकिन उम्मीदवारों के खर्च पर कोई रोक नहीं. पार्टियों और उम्मीदवारों को ऑडिट रिपोर्ट देना जरूरी है.

- कनाडाः कॉर्पोरेट से चंदा ले सकते हैं, लेकिन विदेशी चंदे पर रोक है. गुमनाम चंदे पर भी सीमा है. सरकारी फंडिंग भी ले सकते हैं. हर साल कमाई और खर्च का ब्योरा देना जरूरी है.

- ब्रिटेनः कॉर्पोरेट चंदे की इजाजत, विदेशी चंदे की नहीं. चंदे की रकम पर कोई सीमा नहीं है. सरकारी फंडिंग भी ले सकते हैं. ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करना जरूरी है.

- इजरायलः कॉर्पोरेट और विदेशी चंदे पर पूरी तरह से रोक है. लेकिन गुमनाम चंदे पर कोई सीमा नहीं है. चुनावों में पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च की भी एक सीमा तय है. ऑडिट रिपोर्ट देना भी जरूरी.

- जापानः पार्टियां कॉर्पोरेट चंदा ले सकती हैं, उम्मीदवार नहीं. विदेशी चंदे पर पूरी तरह रोक है. पार्टियों के लिए हर साल ऑडिट रिपोर्ट देना जरूरी है. गुमनाम चंदे पर भी सीमा है.

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- फ्रांसः कॉर्पोरेट और विदेश से चंदा नहीं ले सकते. गुमनाम चंदे पर भी पाबंदी. सरकार से फंड ले सकते हैं. हर साल ऑडिट रिपोर्ट देना भी जरूरी है.

- भारतः कॉर्पोरेट चंदे की मंजूरी. विदेशी कंपनी की भारतीय सहयोगी कंपनी भी चंदा दे सकती है. नकद चंदे पर सीमा है. पार्टियों और उम्मीदवारों को ऑडिट रिपोर्ट जमा करवाना जरूरी है. सरकारी फंडिंग का कोई प्रावधान नहीं है.

महंगे होते जा रहे चुनाव

चुनाव लड़ना काफी महंगा होता जा रहा है. भारत में चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के खर्च करने की तो सीमा है, लेकिन राजनीतिक पार्टियों पर कोई पाबंदी नहीं है. यानी, राजनीतिक पार्टियां जितना चाहें, उतना खर्च कर सकती हैं.

भारत में हर लोकसभा चुनाव में खर्च बढ़ता जा रहा है. अनुमान है कि 2014 के चुनाव में 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. जबकि, 2019 के आम चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है.

सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज का अनुमान है कि 2024 में 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो सकते हैं. माना जाता है कि ये सारा पैसा पीछे के दरवाजे से आता है. यही वजह है कि चुनाव के दौरान करोड़ों रुपये कैश पकड़ा जाता है.

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