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SC Verdict on Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड इसलिए लाए गए थे, ताकि राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग जुटाने के तरीके में पारदर्शिता लाई जा सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को 'असंवैधानिक' करार देते हुए रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को गोपनीय रखना संविधान के अनुच्छेद 19(1) और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली इस बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल थे. बेंच ने कहा, लोगों को ये जानने का अधिकार है कि राजनीतिक पार्टियों का पैसा कहां से आता है और कहां जाता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को 2018 में लाया गया था. हालांकि, 2019 में ही इसकी वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल गई थी. तीन याचिकाकर्ताओं ने इस स्कीम के खिलाफ याचिका दायर की थी. वहीं, केंद्र सरकार ने इसका बचाव करते हुए कहा था कि इससे सिर्फ वैध धन ही राजनीतिक पार्टियों को मिल रहा है. साथ ही सरकार ने गोपनीयता पर दलील दी थी कि डोनर की पहचान छिपाने का मकसद उन्हें राजनीतिक पार्टियों के प्रतिशोध से बचाना है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) को तुरंत चुनावी बॉन्ड जारी करने से रोकने का आदेश दिया है. साथ ही 12 अप्रैल 2019 से आजतक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने को भी कहा है.
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को 'असंवैधानिक' बताते हुए इसे रद्द कर दिया है तो जानते हैं कि ये होते क्या हैं? और इससे पार्टियों को कितनी कमाई होती थी.
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी. इसे 29 जनवरी 2018 से कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था. तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम चुनावी चंदे में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए लाई गई है.
इसके तहत, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के बॉन्ड जारी किए जाते हैं. इनकी रकम एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक होती है. इसे कोई भी खरीद सकता है और अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता है.
योजना के तहत, इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में जारी होते हैं. हालांकि, इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को दिया जा सकता था, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिले हों.
इससे कितना कमाती हैं पार्टियां?
इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वालों में एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) भी शामिल थी. एडीआर का दावा है कि मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड के जरिए 16,492 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा मिला है.
चुनाव आयोग में दाखिल 2022-23 के लिए ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को 1,294 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला. जबकि, उसकी कुल कमाई 2,360 करोड़ रुपये रही. यानी, बीजेपी की कुल कमाई में 40 फीसदी हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का रहा.
सबसे ज्यादा चुनावी बॉन्ड बीजेपी को
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सबसे बड़ी चिंताओं में से एक ये भी थी कि इससे सबसे ज्यादा फायदा सत्ताधारी पार्टी को होता है. और वो इसका अनुचित फायदा उठाती हैं.
आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 से 2021-22 के बीच बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए 5,271 करोड़ रुपये का चंदा मिला. सबसे ज्यादा चंदा उसे 2019-20 में मिला था. वो चुनावी साल था और तब बीजेपी को 2,555 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड से आया था.
विधानसभा चुनाव के वक्त भी पार्टियों की फंडिंग बढ़ जाती है. इसे ऐसे समझिए कि पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव हुए थे, उस साल सत्ताधारी पार्टी टीएमसी को 528 करोड़ रुपये से ज्यादा की फंडिंग इलेक्टोरल बॉन्ड से आई थी.
अब क्या हैं विकल्प?
जब चुनावी बॉन्ड नहीं होते थे, तब पार्टियों को चेक से चंदा दिया जाता था. चंदा देने वाले का नाम और रकम की जानकारी पार्टियों को चुनाव आयोग को देनी होती थी.
वहीं, लगभग चार दशक पहले पार्टियों के पास एक रसीद बुक हुआ करती थी. इस बुक को लेकर कार्यकर्ता घर-घर जाते थे और लोगों से चंदा वसूलते थे.
इलेक्टोरल बॉन्ड रद्द हो जाने के बाद पार्टियों के पास और भी रास्ते हैं जहां से वो कमाई कर सकतीं हैं. इनमें डोनेशन, क्राउड फंडिंग और मेंबरशिप से आने वाली रकम शामिल है. इसके अलावा कॉर्पोरेट डोनेशन से भी पार्टियों की कमाई होती है. इसमें बड़े कारोबारी पार्टियों को डोनेशन देते हैं.
महंगे होते जा रहे चुनाव
एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सात राष्ट्रीय पार्टियों को साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड मिला था. इन पार्टियों ने दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया था.
2019 में बीजेपी को 4,057 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली थी. इसमें से उसने 1,142 करोड़ रुपये खर्च किए थे. जबकि, कांग्रेस को 1,167 करोड़ रुपये का फंड मिला था, जिसमें से उसने 626 करोड़ रुपये खर्च किए थे.