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US में हाई-प्रोफाइल बैठकों में भी बच्चों को लाने पर मंजूरी, क्यों भारत में नहीं 'बेबीज एट वर्क' कल्चर?

टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात की तस्वीरें वायरल हो रही हैं. आधिकारिक मीटिंग में मस्क अपने बच्चों को लेकर पहुंचे थे. इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण में भी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस की पत्नी ऊषा वेंस बच्चों समेत दिखीं. अमेरिका में यह कॉमन बात है, जिसका बाकायदा नाम भी है, बेबीज एट वर्क और पेरेंटिंग इन पॉलिटिक्स.

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पीएम नरेंद्र मोदी ने वॉशिंगटन में एलन मस्क से मुलाकात की. (Photo- PTI)
पीएम नरेंद्र मोदी ने वॉशिंगटन में एलन मस्क से मुलाकात की. (Photo- PTI)

भारत या ज्यादातर एशियाई देशों में आधिकारिक मीटिंग का मतलब है, गंभीर चर्चा. इसमें परिवार या खासकर बच्चों को लेकर आने जैसी बात भी सोची नहीं जा सकती. लेकिन सुपर पावर अमेरिका समेत ज्यादातर विकसित देशों में यह कॉमन प्रैक्टिस है. नेताओं समेत अधिकारी भी जरूरत पड़ने पर बच्चों को अपने साथ ले आते हैं और मीटिंग में वे साथ ही बने रहते हैं. ठीक यही चीज हाल में अमेरिका के ब्लेयर हाउस में दिखी, जहां पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के लिए एलन मस्क अपने तीन छोटे बच्चों समेत पहुंचे. 

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कब हुई थी बच्चों को कामकाज की जगह लाने की शुरुआत

अमेरिका में 'बेबीज एट वर्क' का चलन अस्सी के दशक से दिखने लगा था. ये शीत युद्ध का आखिरी पड़ाव था. पहले ही दो-दो लड़ाइयां झेल चुके परिवारों में अब दोनों ही पेरेंट्स कामकाजी होने लगे थे. ऐसे में छोटे बच्चों को कौन संभाले? तो अक्सर महिलाएं कामकाज की जगहों पर ही बच्चे लेकर जाने लगीं, लेकिन छुटपुट मौकों पर. संसद के लिए माना जाता रहा कि ये गंभीर और संवेदनशील जगह है, जहां बच्चों की मौजूदगी नहीं होनी चाहिए. नब्बे में इसपर बहस तो छिड़ी लेकिन कुछ हुआ नहीं. 

साल 1996 में डेमोक्रेटिक सांसद कैरोलिन मेलोनी पहली बार पार्लियामेंट में अपने छोटे बच्चे को लेकर पहुंची. इसके बाद सिलसिला चल पड़ा. अक्सर महिलाएं संसद में या आधिकारिक मौकों पर बच्चों के साथ दिखने लगीं. आगे चलकर पुरुष भी इस लीग में शामिल हुए. लेकिन दिलचस्प है कि अमेरिका नहीं, बल्कि इस मामले में ऑस्ट्रेलिया और जापान ने बाजी मार ली. खासकर जापान जैसे बेहद पारंपरिक माने जाते देश के लिए ये एकदम नई बात थी.

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elon musk with children while meeting with pm narendra modi in america

जापान में एक पिता को मीटिंग से निकाला गया

साल 2017 में जापानी काउंसलर योशितोमी ओनो जब एक मीटिंग में पहुंचे तो उन्हें बैठने से रोकते हुए बाहर निकाल दिया गया. कहा गया कि ये जापानी वर्क कल्चर के खिलाफ है. अधिकारी उन्हें गैर-पेशेवर कहने लगे. दूसरी तरफ जापानी जनता ने सोशल मीडिया ट्रेंड #PapaGoesToWork चला दिया. हाल-हाल में इस देश में पेरेंट्स के लिए थोड़ी नर्म नीतियां बनीं और बच्चे मीटिंग्स में दिखने लगे हैं, लेकिन अमेरिका की तुलना में ये कम है. 

संसद में मिली बच्चों को लाने की मंजूरी

यूएस में पेरेंट्स लगातार अपने बच्चों को लेकर अहम बैठकों में शामिल होने लगे. उनका तर्क था कि राजनीति या काम जितना जरूरी है, बच्चे उनसे कहीं ज्यादा जरूरी है. दोनों साथ-साथ चल सकें, इसके लिए साल 2018 में वहां एक बड़ा फैसला हुआ. सीनेट रूल चेंज ऑन इनफेन्ट्स नाम से एक नियम लागू हुआ. इसके तहत सीनेटर अपने छोटे बच्चों को पार्लियामेंट में ला सकते हैं.

यूरोपियन यूनियन के पार्लियामेंट में भी इनफेन्ट्स इन द चैंबर पॉलिसी बन चुकी. इसके बाद से बहुत से यूरोपियन देश भी संसद में छोटे या बड़े बच्चों को भी लाने की इजाजत देने लगे. कई देशों में सदन चलते वक्त ही नवजात को ब्रेस्टफीड कराने को भी मंजूरी मिल चुकी. इसे पेरेंटिंग इन पॉलिटिक्स कहा जाने लगा. 

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elon musk with children while meeting with pm narendra modi in america photo Getty Images

एशिया में क्यों है अघोषित मनाही

राजनीति के अलावा कॉर्पोरेट और एनजीओ भी इसे मंजूरी देते हैं. लेकिन केवल पश्चिम में. भारत समेत लगभग सारे एशियाई देश मानते हैं कि काम की जगह पर बच्चों को लाने वाले काम को लेकर गंभीर नहीं. जापान का जिक्र हम पहले ही कर चुके. ऐसी ही एक घटना मॉडर्न कहलाते साउथ कोरिया में भी हो चुकी. साल 2019 में कोरिया यूनिवर्सिटी की एक महिला कर्मचारी को ऑफिस में बच्चा लेकर आने पर जॉब से सस्पेंड कर दिया गया था. इसके बाद वहां भारी हंगामा मचा लेकिन बदलाव नहीं हो सका. 

अब भी भारत, जापान, कोरिया, चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में जरूरी बैठकों में बच्चों को लाने पर अघोषित पाबंदी है. मानकर चला जाता है कि कोई ऐसा करेगा ही नहीं. हालांकि ताइवान की संसद में बच्चे लेकर आने को मंजूरी मिल चुकी. वहां कॉर्पोरेट भी इसे लेकर हील-हुज्जत नहीं करते. 

क्या दफ्तरों में बच्चों की मौजूदगी से काम पर असर

इसे लेकर दो मत रहे. कुछ का कहना है कि इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ती है, तो कुछ इससे उलट मानते रहे. इसपर कई स्टडीज भी हो चुकीं. अमेरिकी संसद की मंजूरी के साथ ही नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च ने भी एक रिसर्च की.

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elon musk with children while meeting with pm narendra modi in america photo Unsplash

क्या कहते हैं शोध 

इसके लिए पांच सौ से ज्यादा यूएस बेस्ट कंपनियों के 10000 कर्मचारी लिए गए. कंपनियों को ढाई-ढाई सौ में बांटा गया. एक हिस्से को बच्चों को लाने की इजाजत मिली, दूसरे में सख्त नियम थे. तीन साल तक इसपर नजर रखी गई. इसके नतीजे हैरान करने वाले रहे. जिन कंपनियों ने माता-पिता को बच्चों के साथ काम करने की अनुमति दी थी, वहां वर्क सैटिस्फैक्शन 22 फीसदी ज्यादा था. महिला कर्मचारियों की उत्पादकता में 18, जबकि पुरुषों में 12 फीसदी बढ़त दिखी. 

स्टडी का दूसरा हिस्सा भी था. बच्चों को लाने वाली कंपनियों में वे लोग नाराज दिखने लगे, जो खुद पेरेंट्स नहीं थे. ऐसे 40 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि बच्चों की मौजूदगी से उनका ध्यान भटकता है. जिन दफ्तरों में बच्चों को लाने की सुविधाएं नहीं थीं, वहां अच्छे कर्मचारी, खासकर महिलाएं काम छोड़ने या उससे बचने लगीं.

'पेरेंट्स, प्रोडक्टिविटी एंड वर्कप्लेस चाइल्ड इनक्लूजन' नाम की स्टडी में माना गया कि दफ्तरों में, अगर वे सीधे फाइनेंस पर काम न करते हों, बच्चों का आना पॉजिटिव असर डालता है. वहीं फाइनेंस और लॉ फर्म्स में ये गड़बड़ी ला सकता है. 

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