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EU ले रहा सदस्य देशों की इमरजेंसी मीटिंग, Trump के गुस्से के बीच क्या यूक्रेन से कट जाएगा यूरोप?

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की वाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप से तीखी बहस के बाद से यूरोप में बहुत कुछ बदलने लगा. अमेरिका अगर रूस के साथ चला जाए तो यूरोपियन यूनियन का क्या होगा? इसी पर विकल्प तलाशने के लिए ईयू के 27 सदस्य देश ब्रुसेल्स में इकट्ठा हैं.

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यूरोपियन देश फिलहाल इमरजेंसी मीटिंग ले रहे हैं. (Photo- Pexels)
यूरोपियन देश फिलहाल इमरजेंसी मीटिंग ले रहे हैं. (Photo- Pexels)

रूस और यूक्रेन की लड़ाई इन दो देशों का मामला कम, बाकियों का ज्यादा दिख रही है. हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति की खरी-खरी के बाद यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों ने एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई, जिसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति भी न्यौते गए हैं. मीटिंग का एजेंडा कीव को सपोर्ट करने के अलावा अपनी सुरक्षा का जिम्मा खुद लेना भी है. 

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कहां, क्या बदल रहा है

युद्ध शुरू होने के लेकर अब तक अमेरिका कीव के साथ बना दिखता था. अब वाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप हैं, जो कह रहे हैं कि यूक्रेनी लड़ाई में वे अपने पैसे नहीं लगाएंगे. यूएस अगर जंग से हाथ खींच ले तो कीव का ज्यादा दिन टिकना बेहद मुश्किल है. इधर यूरोपियन यूनियन इसे दिल पर ले चुका. उसे यकीन है कि मॉस्को अगर यूक्रेन में मनमानी करने लगा तो बहुत जल्द वो यूरोप के बाकी देशों तक भी पहुंच जाएगा. यूरोप को डिफेंस के लिए यूएस की जरूरत तो थी लेकिन अब पैर पीछे करने की स्थिति में वो खुद अपनी लड़ाई लड़ने की तैयारी में है. 

अब क्या नया हो रहा

इसे ही लेकर गुरुवार को ब्रुसेल्स में 27 यूरोपियन देशों की इमरजेंसी मीटिंग हो रही है. पॉलिटिको की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईयू की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन इस दौरान नया डिफेंस प्रपोजल भी दे सकती हैं, जहां बाकी देश तय करेंगे कि वे इससे कितना राजी हैं. लेकिन इतना तय है कि ट्रंप के मॉस्को के लिए झुकाव ने यूरोप को नए विकल्प खंगालने की तरफ खड़ा कर दिया है. 

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european union emergency meeting in brussels amid russia ukraine war and donald trump shift photo AP

कौन से ऑप्शन हो सकते हैं

यूरोप को अपनी डिफेंस नीति तैयार करनी होगी. अभी तक वो NATO पर निर्भर रहा, जिसका अमेरिका सबसे बड़ा फंडिंग सोर्स है. अमेरिका दूरी बनाए तो यूरोप को अपनी खुद की सेना और रक्षा व्यवस्था तैयार करनी होगी. हाल में ईयू रैपिड डिप्लॉयमेंट कैपेसिटी की बात चली जो एक स्वतंत्र सैन्य फोर्स हो सकती है. ये लगभग पांच हजार सैनिकों को फोर्स होगी जो किसी भी इंटरनेशनल संकट के समय तुरत-फुरत काम कर सके. इसमें लैंड, एयर और समुद्री मिशन तीनों ही शामिल होंगे. उम्मीद की जा रही है कि साल के आखिर तक ये डिफेंस लेयर तैयार हो चुकी होगी. 

फ्रांस और जर्मनी का रोल बढ़ सकता है 

दोनों ही देश मजबूत हैं. फ्रांस के पास न्यूक्लियर वेपन भी हैं. इस बीच जर्मनी भी अपना डिफेंस बजट बढ़ाने की बात कर चुका. ये दोनों देश मिलकर नाटो की तर्ज पर संगठन बना सकते हैं. हालांकि ये जरा मुश्किल ही है क्योंकि नाटो में पूरा यूरोप था, जिसके साथ यूएस भी था. वहीं यहां यूरोपियन यूनियन के चुनिंदा देश होंगे, जिनके पास बजट भी होगा और सेना भी. ये ईयू के भीत ही यूरोप और अमेरिका जैसा तनाव ला सकता है. 

खुद ही खत्म करें दूरी

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एक विकल्प ये भी है कि यूरोप खुद ही रूस से बातचीत कर किसी समझौते तक पहुंच जाए. वैसे इसकी संभावना कम है क्योंकि अमेरिका की देखादेखी वो अपने रिश्ते मॉस्को से बेहद खराब कर चुका. हालांकि ट्रंप अगर पीछे हटे तो कुछ यूरोपियन देश ईयू पर दबाव डाल सकते हैं कि वो मॉस्को से चर्चा करे. रूस भी लंबे समय से पश्चिमी बाजार से दूर है. तो अगर यूरोप एक कदम आगे ले तो मॉस्को को इससे शायद ही एतराज हो. 

european union emergency meeting in brussels amid russia ukraine war and donald trump shift photo AP

कौन से देश कर सकते हैं पहल

फ्रांस के राष्ट्ररपति इमैनुएल मैक्रों पहले भी पुतिन से बातचीत के पक्ष में रहे. 

हंगरी के पीएम विक्टर ओर्बान खुले तौर पर रूस के सपोर्टर माने जाते रहे. 

इटली भी शांति वार्ता को सपोर्ट करते हुए रूस से बात पर जोर डाल सकता है.

ऑस्ट्रिया ने रूस के साथ हमेशा संतुलित रिश्ता रखा, जो अब भी जारी है. 

कौन रहेगा विरोध में

बाल्टिक देश, जिनमें लिथुआनिया, लातविया और एस्टॉनिया शामिल हैं, वे सोवियत संघ का हिस्सा रहे चुके और रूस को खतरे की तरह देखते हैं. इनकी सीमाएं भी रूस से सटती हैं. इसलिए वे शायद ही कभी पुतिन से चर्चा के पक्ष में आएं. फिनलैंड रूस से सीधा बॉर्डर साझा करता है और हमेशा उसे लेकर चौकन्ना रहा. ये यूरोपियन यूनियन को रूस के खिलाफ रहने का दबाव बना सकता है. पोलैंड भी इसी खेमे में है और रूस का कट्टर विरोधी कहलाता रहा. उसे डर रहता है कि यूक्रेन के बाद रूस उस तक न पहुंच जाए. 

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european union emergency meeting in brussels amid russia ukraine war and donald trump shift photo Getty Images

यूरोप के पास एक और कूटनीतिक तरीका हो सकता है

वो नाटो में शामिल दूसरे देशों जैसे यूके, कनाडा और तुर्की के साथ संबंध बढ़ा सकता है ताकि अमेरिका पर ही सीधा प्रेशर बनाया जा सके. आर्थिक और व्यापारिक संबंधों का इस्तेमाल करके अमेरिका को राजी भी किया जा सकता है. बता दें कि यूरोपीय देशों में अमेरिकी कंपनियों के बड़े इनवेस्टमेंट हैं, जिसका फायदा यूरोप को मिल सकता है. 

यूक्रेन को सैन्य मजबूती देकर अपने हाल पर छोड़ दे

थिंक टैंक यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स यूरोप की विदेश नीति पर काम करता है. उसका कहना है कि ये भी हो सकता है कि यूक्रेन को मजबूत बनाकर यूरोपियन देश उसका साथ छोड़ दें ताकि वो अपने युद्ध खुद लड़ सके. ECFR की वेबसाइट के अनुसार, इसके लिए वे रूस पर और ज्यादा पाबंदियां लगाते हुए उसकी फ्रोजन एसेट्स का भरपूर फायदा ले सकते हैं ताकि पैसे कमाएं जा सकें. लेकिन एक वक्त के बाद वो कीव से दूर हो सकते हैं.

यूरोप में फूट पड़ती अभी से दिख रही है. हंगरी और इटली दोनों के लीडरों ने बंटवारे के हल्के-फुल्के संकेत दे ही दिए. इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी ने यूक्रेन की लड़ाई में इटली की सेना को शामिल न करने की बात कही. इससे साफ है कि यूरोप में यूक्रेन-रूस जंग को लेकर अलग-अलग नजरिए दिखने लगे हैं जो कल को बड़ा बंटवारा ला सकते हैं.

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