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पादरियों को भी देना होगा तनख्वाह पर टैक्स, क्या है सिविल डेथ, जिसके हवाले से दशकों से मिलती रही छूट?

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उन सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें चर्च में नन और पादरियों की सैलरी पर लगने वाले टैक्स को चुनौती दी गई थी. ये रियायत दशकों से चली आ रही थी, जिसे जारी रखने के लिए अदालत को बहुत सी अर्जियां मिलीं. पूर्व मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इसपर कहा कि तनख्वाह जिसके खाते में आ रही है, उसे टैक्स देना होगा.

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चर्च के पादरियों और ननों को ब्रिटिश काल से छूट मिलती रही. (Photo- Pexels)
चर्च के पादरियों और ननों को ब्रिटिश काल से छूट मिलती रही. (Photo- Pexels)

कैथोलिक चर्चों में पढ़ाने वाले पादरियों और ननों को लेकर साल 2014 में विवाद हुआ था. कई धार्मिक संस्थाओं ने केंद्र सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें सरकार ने चर्च में काम करने वाले लोगों के वेतन पर टैक्स लगाने की कोशिश की थी. धार्मिक संस्थाओं का कहना था कि वे चूंकि सिविल डेथ की शपथ लेते हैं, लिहाजा उन्हें टैक्स के दायरे से अलग रखा जाए. अब बीते हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी 93 अपीलों को रिजेक्ट करते हुए कह दिया कि टैक्स तो सबको देना होगा. 

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देश में ननों और पादरियों को इनकम टैक्स में छूट देने का नियम चालीस के दशक में शुरू हुआ, जब ब्रिटिश राज था. तब कहा गया कि चूंकि ये तबका समाज की भलाई के लिए काम कर रहा है, इसलिए उनपर इतनी रियायत होनी ही चाहिए.

आजादी के बाद, भारत सरकार ने इस छूट को जारी रखा. बाद में इसे औपचारिक जामा भी पहना दिया गया. बाद में साल 2014 में इसे हटाने की बात आई, जिसके खिलाफ कई राज्यों की धार्मिक संस्थाओं ने अर्जी डाली थी. अब पूर्व मुख्य न्यायधीश की बेंच ने याचिकाओं को रद्द करते हुए साफ कर दिया कि धार्मिक तर्क के आधार पर ऐसी छूट नहीं मिल सकती. 

ex cji dy chandrachud on tax exemption of priests nuns catholic church india photo- Pixabay

क्या दलील थी टैक्स में छूट के लिए 

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मिशन में काम करने वाले लोग सिविल डेथ की स्थिति में रहते हैं. यानी वे गरीबी की शपथ ले चुके होते हैं. वे न तो शादी कर सकते हैं, न ही अपनी प्रॉपर्टी बना सकते हैं. भले ही उनके पास तनख्वाह आती हो, लेकिन उसे वे धार्मिक संस्थाओं को भेज देते हैं ताकि चैरिटी हो सके इसलिए उन्हें टैक्स के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए. सिविल डेथ की स्थिति में यह भी है कि अगर नन या प्रीस्ट के परिवार की मौत हो जाए तो भी वो अपनी विरासत पर कोई हक नहीं जता सकती. वे खुद को परिवार से अलग और अकेला मान लेते हैं. 

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लगभग दस साल पहले इसे लेकर हलचल होने लगी. सरकारी पक्ष और चर्च आपस में भिड़ने लगे. मामला केरल हाई कोर्ट पहुंचा, जहां एक बड़ा फैसला लेते हुए अदालत ने कहा कि भले ही धार्मिक संस्थाओं का अपने सदस्यों पर सबसे ज्यादा हक हो, लेकिन ये सिविल लॉ से ऊपर नहीं. साथ ही अगर कोई सिविल डेथ की स्थिति में पहुंच चुका है तो वो रेगुलर एक्टिविटी भी नहीं कर सकता, जैसे नौकरी करना. बाद में अपील आगे पहुंची. 

ex cji dy chandrachud on tax exemption of priests nuns catholic church india photo- PTI

बीते गुरुवार को तीन जजों की बेंच, जिसमें चंद्रचूड़ भी शामिल थे, ने टैक्स में छूट पर हो रही इस तनातनी को खत्म कर दिया. उन्होंने कहा कि ननों और पादरियों को तनख्वाह मिलती है. भले ही वो इसे अपने इस्तेमाल में नहीं लाते क्योंकि उन्होंने गरीबी की शपथ ली हुई है. लेकिन टीडीएस तो काटा जाएगा.

चंद्रचूड़ ने कहा कि मान लीजिए कोई हिंदू पुजारी है, जो कहे कि मैं अपनी तनख्वाह नहीं रखूंगा. मैं उसे एक संस्था को पूजा के लिए दे दे रहा हूं. लेकिन अगर वो व्यक्ति काम कर रहा है, पगार आ रही है तो टैक्स डिडक्ट होगा ही. कानून सबसे लिए समान है. 

अमेरिका में टैक्स में छूट

कई दूसरे देशों में धार्मिक संगठनों को टैक्स में रियायत मिलती है. मसलन, अमेरिका में चर्च और कई दूसरी धार्मिक संस्थाएं 501(सी-3) के तहत टैक्स से बची रहती हैं. वहीं यूरोप के कई देशों में चर्च के रजिस्टर्ड सदस्यों पर टैक्स लगाया जाता है. स्पेन उन चुनिंदा देशों में है, जहां चर्च की चैरिटी को किसी नॉन-प्रॉफिट संस्था की तरह देखा जाता है और एक निश्चित कर लिया जाता है. 

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