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7 साल में दुनिया भर में 400 प्रोटेस्ट... आखिर में इन विरोध प्रदर्शनों का क्या होता है अंजाम?

पिछले डेढ़ दशक में दुनियाभर में पहले से तीन गुना ज्यादा प्रदर्शन हुए. इनमें से 23 प्रतिशत प्रोटेस्ट ऐसे थे, जो तीन महीने या उससे ज्यादा समय तक चले. लेकिन ये सारे ही प्रदर्शन सफल नहीं होते हैं, बल्कि इसका एक सेट पैटर्न है. शोध कहते हैं कि कुछ खास तरीके और संख्या के साथ हुए प्रदर्शन ही अपनी मांगें पूरी करवा पाते हैं.

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दिल्ली और आसपास किसान आंदोलन चल रहा है.
दिल्ली और आसपास किसान आंदोलन चल रहा है.

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर किसान आंदोलन शुरू हो चुका. दो साल पहले कृषि कानून निरस्त कराने में भी इस प्रोटेस्ट ने बड़ी भूमिका निभाई थी. किसानों के दिल्ली कूच करने को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. इस बीच सोचने की बात ये है कि दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में लगातार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होते रहते हैं, लेकिन उनमें से बहुत कम ही कामयाब हो पाते हैं. 

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रखी जा रही प्रदर्शनों पर नजर

एक वेबसाइट है- ग्लोबल प्रोटेस्ट ट्रैकर, जिसका काम दुनियाभर के प्रदर्शनों की बात बताना है. इसके मुताबिक साल 2017 से अब तक 400 से ज्यादा ऐसे प्रदर्शन हुए, जिन्हें काफी बड़ा माना जा सकता है. इनमें से 23 प्रतिशत विरोध तीन महीने या उससे ज्यादा चले.

भारत का नाम भी इसमें शामिल है. बीते समय में यहां कई बड़े एंटी-गवर्नमेंट प्रोटेस्ट हुए, जैसे शाहीन बाग और कृषि कानून पर. अब एक बार फिर किसान दिल्ली की सीमाओं पर जमा हैं. उनकी कई मांगें हैं. फिलहाल पुलिस और प्रदर्शनकारी दोनों के बीच हल्का-फुल्का संघर्ष भी चल रहा है. 

डेढ़ दशक में 3 हजार से ज्यादा प्रोटेस्ट

पिछले 15 सालों में कई बदलाव हुए. जाहिर है कि बदलाव होंगे तो बहुत लोग ऐसे भी होंगे, जो उससे सहमत नहीं रहेंगे. यही लोग विरोध के लिए निकल पड़ते हैं. एक ब्रिटिश अमेरिकन स्टडी कहती है कि डेढ़ दशक में प्रदर्शनों की संख्या तीन गुना से भी ज्यादा हो गई. वर्ल्ड प्रोटेस्ट- ए स्टडी में कहा गया कि साल 2006 से 2020 के दौरान 101 देशों में 3 हजार से ज्यादा विरोध हुए. 

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farmer protest on farm law delhi ncr demands photo PTI

क्या सबकी मांग पूरी होती है?

आए-दिन देश से लेकर दुनिया में कोई न कोई प्रदर्शन होता रहता है. लेकिन सर्वे कहते हैं कि इनमें से बहुत कम ही ऐसे होते हैं, जिनकी मांगे पूरी हो जाएं. इंटरनेशनल सेंटर ऑफ नॉनवायलेंट कन्फ्लिक्ट के मुताबिक, ऐसे प्रोटेस्ट की सफलता की गारंटी ज्यादा रहती है, जिनमें हिंसा न हो. शोध कहता है कि शांति से किए जा रहे धरना प्रदर्शनों के सफल होने की गुंजाइश बाकियों से 50 प्रतिशत से भी ज्यादा होती है. वहीं हिंसक प्रदर्शन अक्सर कुचल दिए जाते हैं या फिर प्रदर्शनकारियों में ही दो फांक हो जाती है. 

अहिंसक प्रोटेस्ट को मिलता है लोगों का साथ

बिना तोड़फोड़ वाले विरोध को अक्सर ज्यादा लोगों का साथ मिलता है क्योंकि इससे आम जिंदगी पर असर नहीं होता है. यहां बता दें कि हिंसक प्रोटेस्ट में केवल मारपीट शामिल नहीं, बल्कि निजी या सार्वजनिक प्रॉपर्टी की तोड़फोड़, और सड़कें जाम करना जैसी बातें भी शामिल हैं. औसत की बात करें तो अहिंसक प्रदर्शन की तरफ चार गुना ज्यादा लोग आकर्षित होते रहे.

इसमें भी एक खास नंबर है. अगर किसी प्रदर्शन में कुल आबादी (स्टेट या देश) का 3.5 प्रतिशत भी सक्रिय तौर पर शामिल हो जाए तो वो सफल होगा. जैसे यूके को लें, तो वहां के लोग अगर सरकार से कोई बात मनवाना चाहें तो बर्मिंघम जितनी आबादी के लोगों को प्रदर्शन में उतरना होगा. 

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farmer protest on farm law delhi ncr demands photo Unsplash

किस बात पर होते हैं प्रदर्शन

- अधिकतर विरोध सरकार के खिलाफ होते हैं. इसमें तख्तापलट भी हो सकता है, या फिर किसी खास पॉलिसी के खिलाफ नाराजगी भी. 

- नस्ल या रंगभेद को लेकर भी प्रोटेस्ट होते आए हैं. जैसे अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन चला था, जो दुनिया में फैल गया. 

- करप्शन और महंगाई को लेकर सबसे ज्यादा धरना-आंदोलन होते आए हैं. इसमें एक्सट्रीम केस ये है कि सरकार ही बदल जाती है. 

- कई देशों में किसी खास समुदाय के खिलाफ भी प्रोटेस्ट होते हैं, मसलन, किर्गिस्तान में एंटी-चाइनीज मूवमेंट हुआ था. 

- प्रदर्शनों में फॉरेन एजेंट्स भी इनवॉल्व हो सकते हैं. यानी विदेशी ताकतें मिलकर भी किसी देश में कोई प्रदर्शन उकसाती हैं. 

- ग्लोबल मुद्दों पर भी प्रोटेस्ट होते आए हैं, जैसे क्लाइमेट चेंज, लेकिन आमतौर पर ये छोटे होते हैं. 

क्या हर देश में प्रोटेस्ट की छूट?

लगभग सभी लोकतांत्रिक देश शांतिपूर्ण प्रदर्शन को मंजूरी देते हैं, सिवाय कुछ मिडिल-ईस्टर्न और कम्युनिस्ट देशों के. रूस, चीन, उत्तर कोरिया, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान, उजबेकिस्तान, तजाकिस्तान, किर्गिस्तान, बेलारूस, क्रीमिया और पूर्वी यूक्रेन इसमें शामिल हैं. वैसे फ्रीडम ऑफ असेंबली इन रशिया के आर्टिकल 31 में रूसी फेडरेशन लोगों को शांति से इकट्ठा होने, मीटिंग्स, रैली और मार्च करने की इजाजत देता है, लेकिन आमतौर पर इसमें कई पेंच होते हैं और प्रदर्शनकारी जल्द ही तितर-बितर कर दिए जाते हैं.

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