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Farmers Protest WTO: संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनैतिक) की अगुवाई में आज किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली. किसानों ने अपने ट्रैक्टर पंजाब और हरियाणा में हाईवे पर खड़े कर दिए.
किसानों ने सोमवार को जो ट्रैक्टर मार्च निकाला, वो विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ के खिलाफ निकाला है. किसान चाहते हैं कि भारत डब्ल्यूटीओ से बाहर निकाल आए. इस दौरान शंभू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों ने डब्ल्यूटीओ का पुतला भी फेंका.
किसानों का ये प्रदर्शन ऐसे वक्त हो रहा है, जब 26 से 29 फरवरी तक अबू धाबी में डब्ल्यूटीओ की एक अहम कॉन्फ्रेंस हो रही है. किसान नेता सरवन सिंह पंढेर का कहना है कि है कि कृषि को डब्ल्यूटीओ से बाहर निकालना चाहिए.
ये पहली बार नहीं है जब किसानों ने इस तरह की मांग की है. किसान लंबे वक्त से डब्ल्यूटीओ से बाहर निकलने की मांग करते आ रहे हैं.
पर क्यों?
किसान संगठन डब्ल्यूटीओ की नीतियों को किसान विरोधी बताते हैं. ऑल इंडिया किसान सभा से जुड़े श्मशेर सिंह नंबरदार ने दावा किया कि डब्ल्यूटीओ के कारण ही सरकार एमएसपी की लीगल गारंटी नहीं दे पा रही है.
किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा, '1995 से पहले तक भारत अपनी स्वतंत्र कृषि नीति के हिसाब से चलता था, लेकिन डब्ल्यूटीओ का सदस्य बनते ही चीजें बदल गईं.' उन्होंने कहा, 'जब तक कृषि सेक्टर को डब्ल्यूटीओ की नीति से बाहर नहीं निकाला जाता, तब तक किसानों को इंसाफ नहीं मिलेगा.'
भारतीय किसान यूनियन एकता सिद्धूपुर के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि डब्ल्यूटीओ की नीतियां भारत के किसानों पर शिकंजा कस रही हैं.
उन्होंने कहा, 'डब्ल्यूटीओ की नीतियां भारतीय किसानों के अनुकूल नहीं है. एमएसपी की गारंटी के बिना किसानों का सर्वाइव करना मुमकीन नहीं है. डब्ल्यूटीओ ने भारत जैसे विकासशील देशों पर एमएसपी रोकने के लिए लगातार दबाव डाला है. एमएसपी और सब्सिडी के बिना हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है.'
डल्लेवाल ने दावा किया कि दुनिया के कुछ देशों में प्रति किसान 80 लाख रुपये की सब्सिडी मिलती है, तो भारत में ये सिर्फ 27 से 28 हजार है.
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WTO का इसमें क्या रोल?
1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ का गठन हुआ था. ये दुनिया का एकमात्र ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जो देशों के बीच कारोबार को लेकर नियम तय करता है.
दुनिया के ज्यादातर देश डब्ल्यूटीओ के सदस्य हैं. भारत 1995 से ही इसका सदस्य है. इसका मकसद दुनियाभर में देशों के बीच होने वाले कारोबार के नियमों का एक ग्लोबल सिस्टम संचालित करना है. अगर किसी दो देशों के बीच कारोबार को लेकर कुछ विवाद भी होता है, तो उसे सुलझाने का काम भी डब्ल्यूटीओ ही करता है.
डब्ल्यूटीओ किसानों या स्थानीय उत्पादकों को सब्सिडी देने को गलत मानता है. उसका मानना है कि ज्यादा सब्सिडी देने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर असर पड़ता है.
विकसित देश पहले ही भारत पर अपने यहां के किसानों को बहुत ज्यादा सब्सिडी न देने का दबाव बनाते रहे हैं. उनका मानना है कि इससे वैश्विक कृषि बाजार पर गलत असर पड़ता है.
सब्सिडी को तीन तरह बांटा
डब्ल्यूटीओ ने सब्सिडी को तीन हिस्सों में बांटा है. पहला- अम्बर बॉक्स, जिसके तहत कोई भी देश अपने यहां के कुल उत्पादन का 10% ही सब्सिडी के रूप में दे सकता है. विकासशील देशों के लिए ये सीमा 10% और विकसित के लिए 5% है.
दूसरा है ग्रीन बॉक्स, जिसमें सरकार की उन सब्सिडी को रखा जाता है, जिससे व्यापार पर न के बराबर या फिर बहुत कम असर पड़ता है. तीसरा है ब्लू बॉक्स, जिसके तहत सब्सिडी पर खर्च की कोई सीमा नहीं है.
अब दिक्कत ये है कि सब्सिडी की लिमिट 10% है, लेकिन भारत इससे कहीं ज्यादा दे रहा है. इसे ऐसे समझिए कि 2020-21 में भारत में चावल की पैदावार 45.56 अरब डॉलर की रही थी, जबकि सरकार ने 6.9 अरब डॉलर की सब्सिडी दे दी थी. इस हिसाब से कुल उत्पादन पर भारत ने 15.14% की सब्सिडी दे दी थी. ज्यादा सब्सिडी को लेकर भारत को अक्सर विरोध का सामना करना पड़ता है.
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पर इसका अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर असर कैसे?
अमेरिका और यूरोपीय देश भारत पर ज्यादा सब्सिडी देने का इल्जाम लगाते रहे हैं. उनका दावा है कि ज्यादा सब्सिडी देने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर असर पड़ता है.
इसे एक उदाहरण से समझिए. मान लीजिए कि सारा खर्चा जोड़कर किसी फसल की लागत 100 रुपये बैठती है. अब इस पर सरकार ने 40 रुपये की सब्सिडी दे दी. तो 100 रुपये की लागत की जो फसल 10 रुपये के लाभ के साथ 110 रुपये में बिकनी चाहिए थी. वो किसान 70 रुपये में भी बेच देता है.
जनवरी 2022 में अमेरिका के 28 सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को चिट्ठी लिखकर भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में मुकदमा चलाने की मांग भी की थी.
चिट्ठी में आरोप लगाया था कि भारत तय नियम का उल्लंघन कर 10% से ज्यादा सब्सिडी दे रहा है. इस वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत का अनाज कम कीमत में उपलब्ध है. और अमेरिका के किसानों का इसका नुकसान हो रहा है.
बाहर आने से किसानों की परेशानी हल हो जाएगी?
किसान संगठन चाहते हैं कि भारत सरकार डब्ल्यूटीओ से बाहर आ जाए. उनका दावा है कि बिना डब्ल्यूटीओ से बाहर निकले, एमएसपी पर कानून नहीं बन सकता.
किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने मीडिया से कहा था कि अमेरिका में हरेक किसान को सालभर में 85 हजार डॉलर की सब्सिडी मिलती है, जबकि भारत में एक किसान को 258 डॉलर की सब्सिडी ही मिलती है.
पंढेर का कहना है कि अमेरिका में किसानों के पास औसतन 400 एकड़ जमीन है, जबकि भारत में किसानों के खेत का आकार 3-4 एकड़ ही है. ऐसी परिस्थितियों में सिर्फ एमएसपी ही किसानों को बचा सकती है.
क्या बाहर आ सकता है भारत?
भारत इस संगठन के गठन की शुरुआत से ही इसका सदस्य है. और इससे बाहर निकलना उतना आसान नहीं है, जितना कहा जाता है.
हालांकि, जानकार मानते हैं कि बिना डब्ल्यूटीओ से बाहर निकले भी एमएसपी की गारंटी दी जा सकती है. दरअसल, 2013 में डब्ल्यूटीओ की बैठक में 'पीस क्लॉज' जोड़ा गया था. इसका मकसद था कि कोई भी देश अपनी खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी की सीमा को बढ़ा सकता है.
इस पीस क्लॉज में ये भी प्रावधान किया गया था कि कोई भी विकासशील देश अगर अपनी कुल पैदावार का 10 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी देता है, तो दूसरा देश उसका विरोध नहीं करेगा.
हालांकि, एक तर्क ये भी दिया जाता है कि ये पीस क्लॉस एक अस्थायी व्यवस्था है. यानी, 10% से ज्यादा सब्सिडी देने की कोई कानूनी गारंटी नहीं है.