लगभग दो हफ्तों के भीतर ही सीरिया में बड़ा बदलाव हुआ. विद्रोही संगठनों ने प्रेडिसेंट बशर अल-असद की सरकार गिरा दी. यहां तक कि असद को देश छोड़कर भागना पड़ा. अब देश की कमान अस्थाई तौर पर हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के हाथों में है. ये खुद ही लंबे समय तक अलकायदा से प्रभावित रहा. अब डर ये है कि सत्ता के खाली रहते हुए कहीं ये देश दोबारा आतंकी ताकतों का ठिकाना न बन जाए. इसमें भी इस्लामिक स्टेट के दोबारा लौटने का डर ज्यादा है, जिसे देखते हुए अमेरिका अभी से खाली जगहों पर हमले कर रहा है.
कब और कैसे बना इस्लामिक स्टेट
इस्लामिक स्टेट की नींव सीरिया में शुरू हुए सिविल वॉर के दौरान पड़ी. तब वहां अलकायदा तैयार हुआ जो एक तरह का अंब्रेला संगठन था. इसके नीचे कई छोटे-छोटे समूह थे. इन्हीं में से एक था अल-कायदा इन इराक. इसके मिलिटेंट ज्यादा आक्रामक, ज्यादा कट्टर थे. ताकत बढ़ती गई, और बाद में इसने खुद को एकदम अलग तैयार कर लिया. इसका नाम भी अल-कायदा इन इराक से बदलकर इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट (ISIS) हो चुका था.
साल 2011 से अगले चार ही सालों के भीतर इस्लामिक स्टेट ने सीरिया के सभी बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया. यहां तक कि इराक में भी उसकी धमक सुनाई देने लगी. कुल मिलाकर लगभग 1 लाख वर्ग किलोमीटर की टैरिटरी पर इसका पक्का राज चलता था, जबकि आसपास के इलाकों में भी असर दिखने लगा था.
इस तरह हुआ औपचारिक खात्मा
साल 2016 से अगले सालभर के लिए अमेरिका समेत कई देशों ने मिलकर सीरिया और इराक में सैन्य अभियान चलाया और इस्लामिक स्टेट को खत्म करने लगे. आखिरकार साल 2017 तक इसने सीरिया और इराक में अपना ज्यादातर इलाका खो दिया. अगले कुछ समय में पूरे देश को ही इस्लामिक स्टेट मुक्त घोषित कर दिया गया. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. आतंकी संगठन के लोग अब भी वहां एक्टिव हैं.
अब भी पहाड़ों और रेगिस्तान में कैंप
आईएस ने अपना अधिकतर कब्जा खो दिया है, लेकिन यह पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ. सीरिया के रेगिस्तान और इराक के कुछ दूरदराज के इलाकों में आईएस के लड़ाके अभी भी छिपे हुए हैं और छिटपुट हमले करते रहते हैं. वे रेगिस्तान में गुफाओं, सुरंगों और छोटे-छोटे गांवों में छिपे रहते हैं, जहां सेना नहीं जा पाती. इराक और सीरिया का बॉर्डर भी इनके लिए शरणस्थली बना हुआ है, जो काफी खुफिया है. यूफ्रेटिस नदी घाटी का एक हिस्सा भी इन्हीं लड़ाकों का गढ़ है.
अब बात करें अलकायदा की तो ये बेसिकली एक अंब्रेला था, जिसके नीचे एक सी सोच वाले कई आतंकी गुट पनप रहे थे. इस्लामिक स्टेट के अलावा अब भी इसके कई समूह हैं. मिसाल के तौर पर अल-नूसरा फ्रंट. यही गुट अब एचटीएस के नाम से सीरिया का सबसे बड़ा विद्रोही समूह बना हुआ है. वैसे यह खुद को अलकायदा से अलग बताता है, लेकिन इसकी विचारधारा और कई सदस्य पुराने गुट से जुड़े हुए हैं. इसका मतलब ये है कि अब जबकि देश में किसी तरह की सरकार नहीं, शून्य की स्थिति में ये सब एकसाथ एक्टिव हो सकते हैं.
सीरिया में दोबारा सक्रिय होने में क्या फायदा
इस देश में तेल और गैस के बड़े भंडार हैं. इस्लामिक स्टेट इनपर कब्जा करके अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करना चाहता है. यही वजह है कि वो यहां से भागकर भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ.
अमेरिकी सैनिक तेल भंडारों के आसपास बने हुए हैं लेकिन असद सरकार के गिरने के साथ उनकी हालत भी कमजोर पड़ सकती है. सैनिकों के साथ और भी कई चुनौतियां हैं, जैसे स्थानीय लोग उनके विरोध में रहे. सीरिया और इराक के चरमपंथी गुटों को कई और देशों का भी समर्थन हैं, जिससे आर्मी की मजबूती पर असर हो रहा है. इसके अलावा खुद अमेरिका के भीतर से अपने सैनिकों को वापस लौटाने की मांग उठती रही, जिससे उनकी संख्या कम होती चली गई.
अब सत्ता शून्यता में इस्लामिक स्टेट फिर सिर न उठाए, इसे लेकर अमेरिका अलर्ट हो चुका. यही वजह है कि रविवार को उसने दोनों देशों के बॉर्डर पर स्थित इस्लामिक स्टेट के ठिकानों पर लगभग 75 बार हवाई हमले किए. ये अटैक पहली बार नहीं. यूएस आर्मी पिछले सालों में भी रह-रहकर आतंकी शिविरों पर छोटे-मोटे अटैक करती रही. लेकिन ये हमला बड़ा है और उम्मीद की जा रही है कि इससे इस्लामिक स्टेट या अलकायदा के असर में काम करते आतंकियों को सीधा इशारा मिल सकेगा.
अमेरिका क्यों देता रहता है लगातार दखल
इसकी पहली वजह तो ये है कि सुपरपावर होने के नाते वो बीच-बचाव या हस्तक्षेप को अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानता है.
कई आर्थिक, सामरिक हित भी हैं. जैसे तेल और गैसों के भंडार एक बड़ा कारण हैं, जिसके चलते यूएस को सीरिया में इतनी दिलचस्पी रही.
मध्य पूर्व क्षेत्र में अमेरिका का एक मजबूत असर रहा और वो नहीं चाहता कि इसमें ईरान या तुर्की जैसे देश उसकी टक्कर पर आएं.