FIFA World Cup Qatar 2022 को लेकर बहुत से देश नाराज हैं. कई मानवाधिकार संगठन इसके बॉयकॉट की बात कर रहे हैं. इंटरनेशनल लेबर संगठन ने भी कतर को होस्ट बनाए जाने पर एतराज उठाते हुए कहा था कि ये देश लाखों विदेशी मजदूरों की बीमारी और असमय मौत के लिए जिम्मेदार है. इसपर गुस्सा जताते हुए एक ब्रिटिश अखबार डेली मेल ने इवेंट को 'गोल्फ इन द गटर' तक कह डाला था. हालांकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. कतर में खेल शुरू भी हो चुके.
ये स्पोर्ट्सवॉशिंग है, जो नाजी जर्मनी से शुरू होकर दुनियाभर में फैल गया. अब देश अपने काले कारनामे छिपाने के लिए इसका सहारा लेते हैं.
सबसे पहले स्पोर्ट्सवॉशिंग को समझिए
कोई व्यक्ति, संस्था या सरकार अपनी खराब छवि को सुधारने के लिए खेल या किसी बड़े इवेंट की मदद लेता है. इस दौरान वो निहायत भले होस्ट की भूमिका में रहता है. खूब तैयारियां की जाती हैं. खाने-पीने का उम्दा इंतजाम होता है. ये सब इसलिए कि लोग आएं, भोजन-संगीत-खेल का आनंद लें और बुरी इमेज को भूल जाएं.
इसे रेपुटेशन लॉड्रिंग भी कहते हैं. इसके जरिए न केवल अपनी इमेज सुधारी जाती है, बल्कि बड़े-बड़े जुर्म, पैसों का गबन और यहां तक कि सामूहिक हत्याकांड जैसी चीजों को छिपाने के लिए भी देश इसका सहारा लेते हैं.
जर्मनी ने की थी शुरुआत
अब बड़े आयोजन यूं ही तो होंगे नहीं, तो देशों में इस बात की होड़ रहती है कि वे वर्ल्ड कप या फिर ओलिंपिक जैसे इवेंट्स की मेजबानी हासिल कर सकें. इसकी शुरुआत जर्मनी में नाजियों से हुई थी. साल 1936 में बर्लिन ने विंटर और समर दोनों ही गेम्स का आयोजन अपने यहां किया. हिटलर तब वहां सबसे ताकतवर शख्स के तौर पर उभर चुका था. लेकिन इस आयोजन के दो मकसद थे. एक पहले वर्ल्ड वॉर में हार के बाद देशों को दिखाना कि वो वापस मजबूत हो चुका है. दूसरा, अपने यहां हो रही नाइंसाफियों को छिपाना.
ये वो समय था, जब हिटलर यहूदियों को ही नहीं, अपने से अलग दिखने वाली हर कौम, हर सोच को कुचल रहा था. यहां तक वो लोग भी कंस्ट्रेशन कैंप में भेजकर मारे जा रहे थे, जो गे या लेस्बियन थे. दिमागी या शारीरिक तौर पर कमजोर लोगों को मारा जा रहा था क्योंकि नाजियों के मुताबिक वो मुल्क को कमजोर कर रहे थे.
ओलिंपिक की जोड़ का एक और आयोजन!
बर्बरता के किस्से लगभग पूरी दुनिया में फैल चुके थे. तभी इंटरनेशनल कॉफ्रेंस फॉर द रिस्पेक्ट ऑफ ओलिंपिक आइडियल ने पेरिस में एक मीटिंग बुलाई और बात उठाई कि क्या जर्मनी को पछाड़ने के लिए ओलिंपिक की बराबरी का दूसरा इवेंट होना चाहिए. हिटलर के विरोधी होने के बावजूद ज्यादा देश इस आइडिया को गले से उतार नहीं सके, और जर्मनी ने ही आयोजन लीड किया. खूब पैसे बहाए गए. साथ आए देशों के खिलाड़ियों को खूब मान-सम्मान मिला. कई देश हिटलर की हिंसा लगभग भूल गए. ये एक तरह से दूसरे वर्ल्ड वॉर की तैयारी थी.
फिर तो स्पोर्ट्सवॉशिंग का चलन निकल गया
हाल ही बात करें तो सऊदी अरब के बारे में भी कहा जा रहा है कि वो छवि चमकाने के लिए ऐसे इवेंट्स अपने यहां करवा रहा है. जैसे सऊदी के शाही परिवार पर आरोप है कि उसने अपने आलोचक पत्रकार जमाल खाशोजी की हत्या करवा दी. इसके बाद इस देश में कई खेलों का आयोजन हुआ, जिसमें भारी पैसे लगाए गए. जैसे सिर्फ घुड़दौड़ की प्रतियोगिता सऊदी कप में देश ने 60 मिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च किए. ह्यूमन राइट्स संस्था ग्रांट लिबर्टी के मुताबिक साल 2018 में हत्या के बाद से सऊदी में कई हाई प्रोफाइल खेल हुए, जिसमें 1.5 बिलियन डॉलर से ज्यादा पैसे लगाए गए.
कतर को लेकर क्या है फसाद?
इस अरब देश पर लंबे समय से विदेशी कामगारों के साथ बदसुलूकी का आरोप लगता रहा. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक यहां विदेशी मजदूरों की अचानक मौत हो रही है. वे बंदे कमरों में जानवरों की तरह रखे जाते हैं. उनके खाने-पीने और बीमारी में मेडिकल ट्रीटमेंट का भी कोई पुख्ता इंतजाम नहीं होता. आईएलओ ने बाकायदा आंकड़े देते हुए पूछा कि फलां-फलां साल में एकाएक इतने लेबर्स की मौत क्यों हुई, जो देश आने से पहले स्वस्थ और युवा थे.
कपड़ों और रहन-सहन पर भी सजा
इस देश में महिलाओं के लिए नजरिया भी खास सही नहीं. जैसे कपड़ों पर भारी पाबंदी है. अगर कोई महिला स्टेडियम के भीतर या आसपास कंधे-घुटने दिखाती ड्रेस में पाई गई तो उसपर भारी पेनल्टी लगेगी. एलजीबीटीक्यू समुदाय को भी यहां मान्यता नहीं. इस तरह के संबंधों को गैर-कुदरती माना जाता है और सजा मिलती है. यहां तक कि विदेशी सैलानी अगर खेल देखने यहां आना चाहें तो उनके लिए भी कड़ी पाबंदियां हैं. बिना शादी के जोड़ों को अव्वल तो यहां होटल में कमरा नहीं मिलेगा, और अगर वे किसी भी तरह साथ पाए गए तो 7 साल की कैद भी हो सकती है.