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क्या है 50 सेंट आर्मी, जिसे China में मुस्लिमों के खिलाफ बोलने के पैसे मिलते हैं?

चीन में violence against Uyghur muslims की खबरें आती रहती हैं. कथित तौर पर वहां के शिनजियांग प्रांत में लाखों मुसलमान detention camps में कैद हैं. अब एक नई बात सामने आई. Islamophobia बढ़ाने के लिए China government ने लंबी-चौड़ी फौज तैयार कर रखी है, जिसका एक काम इस्लाम का अपमान है. इसे 50 सेंट आर्मी कहते हैं.

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चीन से उइगरों पर हिंसा की खबरें लगातार आती रही हैं- प्रतीकात्मक फोटो (Reuters)
चीन से उइगरों पर हिंसा की खबरें लगातार आती रही हैं- प्रतीकात्मक फोटो (Reuters)

कोरोना का दौर था, जब चीन से उइगरों पर अत्याचार की खबरें लगातार आने लगीं. जिस वक्त सारी दुनिया में कारोबार ठप था, तब अमेरिकी एयरपोर्ट पर चीन से आए बालों की लंबी-चौड़ी खेप कई बार पकड़ी गई. कथित तौर पर ये बाल कैंप में कैद महिलाओं के थे, माना जा रहा है कि यहां महिलाओं के न केवल जबरन बाल काटे जा रहे हैं, बल्कि सस्ते लेबर के लिए उनसे जबरन काम लिया जा रहा है. शिनजियांग में उइगरों के साथ अमानवीय व्यवहार की लंबी-चौड़ी लिस्ट है, जिसमें जबरन ऑर्गन निकलना से लेकर नसबंदी तक शामिल हैं ताकि इनकी आबादी कंट्रोल में रहे. 

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सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप लिखने का काम

एक कौम के खिलाफ अत्याचार बढ़ने पर कहीं चीनी जनता भड़ककर अपनी ही सरकार के खिलाफ और उइगरों के साथ न आ जाए, इसके लिए ट्रोल आर्मी को तैयार किया गया. इसका काम है, इस्लामोफोबिया को बढ़ाना. इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के खिलाफ किसी भी तरह की बात को मुद्दे से हटा देना इस आर्मी का असल काम है.

china uighur muslims
50-सेंट आर्मी बाकी ट्रोल्स की तरह चेहरा छिपाकर नहीं, बल्कि खुद को राष्ट्रभक्त दिखाते हुए काम करती है- प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

हर कमेंट पर आधे रुपए के हिसाब से भुगतान

चीनी भाषा में इन्हें वुमाव (Wumao) कहा गया. लेकिन बाकी दुनिया इसे 50 सेंट आर्मी या पार्टी कहती है. माना जा रहा है कि हर पोस्ट की हरेक कमेंट पर इस ट्रोल आर्मी को चीनी मुद्रा में 50 सेंट के हिसाब से दिया जाता है. पूरी पोस्ट लिखने पर कहीं ज्यादा पैसे मिलते हैं, अगर उसपर ज्यादा से ज्यादा लोग आएं.

इस तरह की होती है कमेंट

ये किसी भी प्रोफेशन के हो सकते हैं, जैसे कोई इंजीनियर होगा, कोई टीचर. अपना काम करते हुए ही ये लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव रहेंगे. इनका काम है मौका देखकर कोई न कोई ऐसी बात करना, जो लोगों में धार्मिक कट्टरता को लेकर, खासकर इस्लाम के लिए डर पैदा करे. ये लोग दुनियाभर के ऐसे मामले पोस्ट करते हैं, जहां समुदाय विशेष ने हमला या हिंसा की. इस तरह से ये आम चीनियों के मन में ये बात बैठा देते हैं कि चीनी सरकार अगर उइगरों के साथ कुछ कर भी रही है तो देश की भलाई के लिए ही. साथ ही साथ उइगरों के विकास के झूठे-सच्चे दावे भी किए जाते हैं ताकि लोगों समेत यूनाइटेड नेशन्स भी अंगुली न उठा सके. 

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कितने लोग हैं ट्रोल्स की इस आर्मी में 

इनकी संख्या का पक्का अंदाजा नहीं, लेकिन चूंकि ये काम के साथ-साथ किया जा सकता है तो कई अनुमान ये हैं कि इनकी संख्या 2 लाख से लेकर 5 लाख भी हो सकती है. इसमें युवा से लेकर अधिक उम्र के लोग भी शामिल हैं, बस शर्त इतनी है कि सबको जिनपिंग सरकार के हक में ही लिखना होगा. 

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चीन में उइगरों पर हिंसा को लेकर यूनाइटेड नेशन्स में भी कई बार बात हुई, लेकिन कोई फायदा नहीं रहा- प्रतीकात्मक फोटो (Reuters)

एक और दल है जो खुद को राष्ट्रभक्त बताता है

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के सपोर्टर अलग-अलग तरह से उसका साथ देते हैं. 50 सेंट आर्मी तो छोटा हिस्सा है, एक और दल है, जो खुद को जिगान्वु (ziganwu) कहता है. ये मुफ्त में काम करते हैं और खुद को चीनी सरकार का खुलेआम फैन बताते हैं. ये कोई भी आम चीनी हो सकता है, जिसे पश्चिमी सभ्यता से एतराज हो. साथ ही ये लोग ताइवान और हांगकांग को आजाद रखने वालों को जमकर ट्रोल करते हैं. 

चीनी नाश्ते के गुणगान में भी पोस्ट

कोविड की शुरुआत में वुहान डायरी लिखने वाली लेखिका फेंग फेंग को भी जिगान्वु ने खूब परेशान किया था और कहा था कि उन्होंने ही जिनपिंग जैसी अच्छी सरकार के कामों में कमियां गिनाई. कई लोग लेखिका को जान से मारने की धमकियां तक देने लगे. तथाकथित चीनी संस्कृति को लेकर इनके जुनून का अंदाजा इस बात से लगाइए कि अगर किसी ब्लॉगर ने ये भी लिख दिया कि बच्चों को सुबह दूध पीना चाहिए, तो उसे ट्रोल कर दिया जाता है. कहा जाता है कि वे राष्ट्रप्रेमी नहीं है, तभी पारंपरिक चीनी नाश्ते का अपमान कर रहा है.

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यहां तक कि चाइनीज ट्रेडिशनल मेडिसिन को बढ़ावा देने और एलोपैथ को हटाने के लिए भी ये लोग सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं. हर काम के पीछे एक ही लॉजिक- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में किसी भी तरह से वेस्ट का असर न आए. और कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा आगे रहे. 

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साल 2004 से ही चीन में ट्रोल्स का दौर आ गया, तब इन्हें इंटरनेट कंमेटेटर कहा जाता- प्रतीकात्मक फोटो (Getty Images)

चीन को मान सकते हैं ट्रोलिंग की दुनिया का अगुआ
जब बाकी दुनिया इंटरनेट सीख ही रही थी, तब चीन में इस तरह के ग्रुप बनने शुरू हो गए, जो प्रो-पार्टी थे. यहां तक कि कॉलेजों में इन्हें ट्रेनिंग मिलती ताकि ज्यादा से ज्यादा आक्रामक ढंग से ये लिख सकें और सरकार की कमियां गिनाने वालों को चुप करा सकें. इन्हें भाषा की भी ट्रेनिंग मिलती, और लगातार ट्रोल करते रहने की भी, ताकि एक सही जवाब के बाद वे चुप न साध जाएं. 

स्टडी में हुआ ये दावा 
अप्रैल 2017 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने एक स्टडी के बाद दावा किया कि हर साल चीन से लगभग 490 मिलियन ऐसे सोशल मीडिया पोस्ट होते हैं जो वहां की सरकार को अच्छा बताते हुए बाकी दुनिया को बुरा बताएं. ये डेटा आज से लगभग 6 साल पहले का है. ऐसे में जाहिर है कि अब, जबकि कोने-कोने में इंटरनेट है, ये आंकड़ा ऊपर ही गया होगा, या कम तो नहीं ही होगा. 

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शिनजियांग प्रांत में बसे उइगरों पर साल 2017 से ही चीन में पाबंदियां लगने लगीं- प्रतीकात्मक फोटो (Reuters)

कौन हैं उइगर मुस्लिम

जिन उइगरों पर बात हो रही है, हल्की-सी जानकारी उनपर भी. चीन के उत्तर-पश्चिम, खासकर शिनजियांग में बसे इन मुस्लिमों पर पाबंदी की खबरें साल 2017 से ही आने लगी थीं. पहले इनके लंबी दाढ़ी रखने और पब्लिक प्लेस पर मुंह-सिर ढंकने पर रोक लगी. तब ये कहा गया कि इससे चेहरा पहचानने में दिक्कत होती है, और मासूमों की आड़ में आतंकियों को भी बढ़ावा मिलता है. बाद में हालात बिगड़ते चले गए. तब से लेकर इन 6 सालों में अमानवीयता की ढेरों सूचनाएं आ चुकी हैं. 

रिफॉर्म की बात कहती रही सरकार

वैसे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना डिटेंशन सेंटरों की बात से इनकार करते हुए इन्हें री-एजुकेशन या रिफॉर्म सेंटर कहती रही. उनका मानना है कि उइगर मुस्लिम चूंकि अलग भाषा-कल्चर वाले हैं तो उन्हें चीन की मुख्यधारा में लाने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है. ये बात अलग है कि यूनाइटेड नेशन्स ने कई बार कहा कि चीन की सरकार ने पूरे शिनजियांग प्रांत को ही कैदखाने में बदल दिया है. वहां संस्कृति सिखाने के नाम पर लोगों से जर्बदस्ती होती है. उइगरों के अलावा कई दूसरे समुदाय भी हैं, जिनपर लंबे समय पहले इतनी हिंसा हुई, कि उनका अस्तित्व ही खत्म हो गया. 

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