अमेरिका के फ्लोरिडा में अश्वेत लोगों को निशाना बनाने का मामला सामने आया. शनिवार को 20 वर्षीय युवक ने एक स्टोर में तीन अश्वेतों की हत्या के बाद खुदकुशी कर ली. मामला नस्लीय हिंसा का बताया जा रहा है. बंदूकधारी के पास कई ऐसी चीजें मिलीं जो वाइट सुप्रीमेसी का इशारा करती हैं, यानी खुद को रंग के आधार पर बेहतर मानने का.
अमेरिका में अश्वेतों के साथ हिंसा का इतिहास काफी पुराना है. वहां एक चरमपंथी समूह ऐसा भी है, जो उनके साथ बर्बरता के लिए बदनाम रहा. उसे कू क्लक्स क्लान के नाम से जाना जाता था. 19वीं सदी में ये ग्रुप तब पनपा, जब देश में गुलामी की प्रथा लगभग खत्म हो चुकी थी. यही बात श्वेत सुप्रीमिस्ट्स को नागवार गुजरी. अश्वेत लोग बराबरी पर बैठने और बात करने लगे थे. ऐसे में लंबे समय तक मालिक के ओहदे पर बैठ चुके चरमपंथियों ने उन्हें सबक सिखाने की सोची. अमेरिका के टेनेसी राज्य में केकेके की नींव डली.
केकेके पहले सोशल क्लब की तरह काम करता था. लोग मिलते, खाते-पीते और नाच-गाना करते. लेकिन भीतर ही भीतर कुछ और पक रहा था. इन्हीं सब के बीच नस्लभेदी गतिविधियों की तैयारी हुई और शुरू हुआ हमलों का दौर. केकेके के सदस्य सारे राज्यों में फैलने और आतंक मचाने लगे. वे अंधेरा होते ही सड़कों पर फैल जाते और अश्वेत लोगों को लहुलुहान होते तक मारते. उसे शुद्धीकरण कहा जाता. अश्वेत महिलाओं से बलात्कार किया जाता.
अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस के मुताबिक कुछ ही समय में केकेके ने 2 हजार से ज्यादा अश्वेत मूल के लोगों की जान ले ली. केकेके की पहचान ये थी कि वे लोग सफेद या हल्के रंग के ही कपड़े पहना करते. उनके मुताबिक ये रंग उनकी पवित्रता और बेहतर नस्ल को दिखाता था. रात में ये सफेद हुड पहनकर चला करते. तब अमेरिका में केकेके का इतना आतंक था कि शाम ढलने के बाद अश्वेत लोग घरों से निकलने में डरने लगे.
साल 1882 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इस ग्रुप और उसकी सोच को गैरकानूनी करार देते हुए ऐसे लोगों पर सख्ती से कार्रवाई की बात की. इसके बाद चुप्पी तो छा गई, लेकिन कई बार केकेके ग्रुप के एक बार फिर एक्टिव होने की बात होती रहती है.
मौजूदा समय में कई चरमपंथी संगठन हैं, जो छिपकर या खुले में नफरत फैला रहे हैं. मसलन, साल 2020 में प्राउड बॉयज का नाम आया था. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान ये खुलकर एक्टिव हुआ. समूह को मुख्य तौर पर मुस्लिम-विरोधी विचारों और तौर-तरीकों के लिए जाना जाता है. यहां तक कि खुद अमेरिकी खुफिया विभाग एफबीआई ने इसे चरमपंथी समूह करार दिया है.
प्राउड बॉयज के सदस्य पुरुष ही होते हैं, जो न केवल रंग, बल्कि जेंडर के आधार पर भी भेदभाव करते और हिंसा फैलाते हैं. ये लाल रंग की कैप पहनते हैं, जिसपर लिखा होता है- मेक अमेरिका ग्रेट अगेन. ये लोग मानते हैं कि अगर श्वेत लोग टॉप पोजिशन पर नहीं आएंगे, अमेरिका उतना ताकतवर नहीं रह जाएगा.
एक और ग्रुप है, जो असल में कई समूहों को मिलाकर एक्टिव क्लब कहलाता है. ये कुछ ही समय पहले अमेरिका में बना. इसके मेंबर न सिर्फ वाइट सुप्रीमेसी की बात करते हैं, बल्कि ये हर उस बात के खिलाफ हैं, जो इंसानों की बराबरी चाहे. यहां तक कि वे LGBTQ के खिलाफ भी बात करते हैं. इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक इस क्लब ने LGBTQ या फिर अश्वेतों के लिए हो रहे इवेंट्स में गड़बड़ियां कीं. किसी भी स्थिति से निपटने के लिए ये लोग पूरी तैयारी रखते हैं. यहां तक कि सदस्यों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग भी दी जाने लगी ताकि मारपीट कर सकें.
एक्टिव क्लब के मेंबर मास्क और हेलमेट पहने होते हैं ताकि उनकी पहचान न हो सके. माना जाता है कि ये आम लोग ही होंगे, जो बाकियों की तरह दफ्तर के काम करते होंगे, लेकिन बाकी समय अपनी नफरत और हिंसा यहां-वहां उलीचते रहते हैं. इसके सदस्य सोशल मीडिया पर भी हेट क्राइम करते हैं. फिलहाल इसे ही सबसे खतरनाक माना जा रहा है. चूंकि कुछ समय बाद अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव होंगे, लिहाजा ये ग्रुप ज्यादा सक्रिय हो सकते हैं. ऐसा वहां पहले भी होता आया है.