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हर 10 में 7 लोग मांसाहारी, फिर भी हो रहा खाने पर बवाल, क्यों शाकाहारी खाना पसंद करने वालों से नाराज रहते हैं नॉन-वेजिटेरियन्स?

देश में शाकाहार-मांसाहार को लेकर विवाद थमता नहीं दिख रहा. शिक्षाविद सुधा मूर्ति ने हाल में अपने वेजिटेरियन होने की बात बताते हुए कहा कि विदेश में उनका सबसे बड़ा डर ये होता है कि कहीं दोनों तरह के खाने का चम्मच मिला हुआ न हो. इसके बाद से सोशल मीडिया पर वे ट्रोल हो रही हैं. अब IIT बॉम्बे की कैंटीन में भी फूड चॉइस पर विवाद हो गया.

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खाने की चॉइस पर दशकों से विवाद होता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
खाने की चॉइस पर दशकों से विवाद होता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

कथित तौर पर कुछ छात्रों ने कैंटीन की दीवारों पर पोस्टर लगा दिए हैं कि "केवल शाकाहारी छात्रों को यहां बैठने की अनुमति है" और वे उन लोगों को भी जगह खाली करने के लिए मजबूर करेंगे जो मांसाहारी भोजन पसंद करते हैं. इससे पहले भी ऐसे विवाद यहां होते रहे. IIT अकेला नहीं, दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी मांसाहारियों की कैंटीन, शाकाहारियों से अलग किए जाने की मांग कई बार उठ चुकी.

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इस सारी हां-ना के बीच सर्वे ये कहते हैं कि हमारे यहां नॉन-वेजिटेरियन खाने वालों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे- 5 के मुताबिक लक्षद्वीप में 100 फीसदी के लगभग आबादी मीट-ईटर है. मुस्लिम मेजोरिटी वाली इस यूनियन टैरिटरी में रोजाना के खाने में चावल के साथ मांस-मछली की कोई न कोई किस्म होती ही है.

नॉन-वेज खाने वालों की संख्या ज्यादा होने के पीछे एक वजह ये भी है कि ये द्वीपीय प्रदेश है. जमीन के जितने भी हिस्से समुद्र या नदी से सटे होते हैं, वहां मांस खाने वालों की संख्या आमतौर पर ज्यादा रहती है क्योंकि यही जल्दी उपलब्ध होता है. 

food controversy in iit bombay and meat eating population india amid sudha murthy food choice trolling- photo Unsplash

इसके बाद अंडमान का नंबर है, जहां 99.5 प्रतिशत लोग मांसाहार पसंद करते हैं. पूर्वोत्तर यानी नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और असम में लगभग 99 फीसदी आबादी मीट-ईटर्स की है. इनके बाद दक्षिणी राज्य आते हैं. बंगाल में भी मांसप्रेमी ज्यादा हैं, लेकिन वे मछली खाना ज्यादा पसंद करते हैं. सबसे कम मीट खाने वालों में राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और पंजाब आते हैं. यहां की बड़ी आबादी धार्मिक कारणों से मांसाहार से परहेज करती रही.

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सर्वे ये भी क्लेम करता है कि देश में हर 10 में से 7 लोग मांस खाना ज्यादा पसंद करते हैं. ये नतीजा पिछले सर्वे का है, और जिस तेजी से नॉन-वेज खाने वाले बढ़े, इसमें भी इजाफा ही हुआ होगा. 

NFHS-5 के सर्वे में खाने की चॉइस को लेकर भी जेंडर में फर्क दिखता है. 15 से 49 साल के महिला-पुरुषों पर हुए शोध में पता लगा कि 83 प्रतिशत पुरुष नॉन-वेज खाते हैं, जबकि उनकी तुलना में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं ही नॉन वेजिटेरियन खाना पसंद करती हैं. ऐसा क्यों होता है, इसके पीछे का कारण साफ नहीं हुआ. हो सकता है कि सोशल ढांचे के चलते जैसी परवरिश होती है, महिलाएं नॉन-वेज खाने से बचती हों. 

खाने की दो किस्मों के अलावा कई और टाइप भी हैं, जिनमें एक है वीगन डाइट. ये पूरी तरह से शाकाहारी खाना है, जिसमें उन उत्पादों को शामिल नहीं किया जाता जो पशुओं से मिलते हैं, जैसे इस डाइट को मानने वाले लोग दूध और शहद से भी परहेज करते हैं. 

food controversy in iit bombay and meat eating population india amid sudha murthy food choice trolling- photo Pixabay

माई बॉडी, माई चॉइस कहने वालों को भी खाने की पसंद-नापसंद पर एतराज होता है. ये भी हो रहा है कि मांसाहारी आबादी, वेजिटेरियन खाने वालों को ट्रोल करती रहती है. ऐसी कई घटनाएं दुनियाभर में होती रहीं. वेजिटेरियन लोगों से नफरत को वेजिफोबिया और वीगन्स के लिए गुस्से को वेगाफोबिया कहते हैं. 

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ये टर्म साल 2011 में आई, जब दुनिया में शाकाहार बढ़ रहा था, और लोगों का उसके लिए गुस्सा भी. खाने में पोषण को ट्रैक करने वाले एप लाइफसम ने साल 2018 में एक स्टडी की, जिसमें पाया कि शाकाहारी या वीगन डाइट लेने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग लगातार मजाक और व्यंग्य झेलते हैं. उन्हें घास-फूस खाने वाला या नाटक करने वाला माना जाता है. एप ने ये भी माना कि ड्रग्स लेने वालों से लोग जितना नाराज रहते हैं, लगभग वही हाल वेजिटेरियन डाइट लेने वालों का होता है. उन्हें भी लगातार ट्रोल किया जाता है. 

food controversy in iit bombay and meat eating population india amid sudha murthy food choice trolling- photo Unsplash

साल 2018 में यूरोपियन जर्नल ऑफ सोशल साइकोलॉजी में एक रिसर्च आई. न्यूजीलैंड और अमेरिका में हुए इस शोध का नतीजा चौंकाने वाला था. इसके मुताबिक, शाकाहारियों को मांसाहार लेने वाले खतरे की तरह देखते हैं. वे मानते हैं कि इस तरह की डाइट सोसायटी में हो रही कोई साजिश है. ये ठीक वैसा ही है, जैसे LGBTQ से लोगों का बैर. उनकी स्वीकार्यता सोसायटी में काफी कम है, उसी तरह से शाकाहार को भी देखा जाता है.

विक्योरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंगटन के रिचर्स एक्सपर्ट मार्स एस विल्सन ने माना कि ये शायद इसलिए होता है कि शाकाहार लेने वाले लोग मांसाहारियों में गिल्ट जगाते हैं. दुनिया के ज्यादातर मांसाहारी मीट खाते तो हैं, लेकिन जिंदा पशु को मरता हुआ नहीं देख सकते. ऐसे में वेजिटेरियन डाइट लेने वाले लोग उनमें ये भाव लाते हैं कि उनकी वजह से मासूम जानवर मर रहे हैं. यही गिल्ट एग्रेशन की तरह दिखता है. 

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वेजिटेरियन्स पर ये गुस्सा इतना ज्यादा है कि अर्जेंटिना में बाकायदा मांग होने लगी कि नस्ल, रंग से बचाने वाले कानून में एक नियम वेजिफोबिया पर भी होना चाहिए ताकि शाकाहारी सुरक्षित रहें. 

 

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