बीते कुछ सालों में बार-बार ग्लोबल वार्मिंग की बात हो रही है. कार्बन उत्सर्जन बढ़ने की वजह से दुनिया का तापमान तेजी से बढ़ रहा है. यहां तक कि वैज्ञानिक मान रहे हैं कि 6वां महाविनाश भी इसी जहरीली गैस की वजह से आएगा. अब देश कोशिश कर रहे हैं कि कार्बन उत्सर्जन कम हो सके.
डेटा बताते हैं कि पूरी दुनिया में सालाना निकल रहे कुल कार्बन में काफी बड़ा हाथ हवाई यात्रा का है. फ्रांसीसी सरकार ने यही देखते हुए छोटी दूरी की फ्लाइट्स बैन कर दीं. फ्लाइट्स के बारे में लंबे समय से बात हो रही है कि ये जितना प्रदूषण फैला रही हैं, उसपर तुरंत कंट्रोल की जरूरत है.
कितना कार्बन उत्सर्जन होता है हवाई यात्राओं से?
फटाक से यहां से वहां पहुंचा देने वाली फ्लाइट से जितना पॉल्यूशन होता है, उसका अभी सही हिसाब नहीं हो सका, लेकिन माना जा रहा है कि एक बस एक घंटे में जितना पॉल्यूशन करती है, उससे 100 गुना से भी ज्यादा कार्बन फ्लाइट करती है. सुनने में ये भयंकर नहीं लग रहा! तो चलिए, इसे और आसान तरीके से समझते हैं.
अगर एविएशन एक देश होता तो ये दुनिया का वो 6वां देश होता, जो सबसे ज्यादा कार्बन एमिशन कर रहा है. अमेरिका, चीन, रूस, जापान और भारत के बाद हवाई यात्रा का नंबर आता, जिसके कारण दुनिया लगातार प्रदूषित हो रही है.
प्रीमैच्योर मौतों की वजह
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि पूरी दुनिया में हर साल हो रही कम से कम 16 हजार प्रीमैच्योर मौतों की वजह वो हवाई जहाज है, जिसकी टिकट हम बिना सोचे-समझे करते हैं. ये डेटा इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स पब्लिशिंग (IOPscience) का है, जो साथ में ये भी कहता है कि डेथ रेट इससे ज्यादा ही होगी. यहां बता दें कि पाल्यूशन का प्रीमैच्योर मौतों से सीधा ताल्लुक है. एयर पॉल्यूशन की अलग-अलग वजहों को मिलाकर एक औसत देखा गया, जिससे ये अनुमान लगा.
प्रदूषण को खत्म करने में कुदरत को कितना समय लगता है?
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का अध्ययन बताता है कि पूरी दुनिया में सालाना उत्सर्जित हो रहे कुल कार्बन में लगभग 10 प्रतिशत कार्बन में यात्राओं का हाथ है. इसमें भी लगभग 4 प्रतिशत प्रदूषण एयर ट्रैवल से होता है. इसे इस तरह से समझें, जैसे आप लंदन से न्यूयॉर्क की फ्लाइट लें तो उस यात्रा के दौरान जितनी कार्बन निकलेगी, उसे सोखने में एक एकड़ में फैले घने जंगल को एक साल लग जाता है.
कौन से देश कितना हवाई सफर करते हैं?
स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट के मुताबिक, साल 2021 में अमेरिकी लोगों ने सबसे ज्यादा हवाई यात्राएं कीं. वहां 650 मिलियन घरेलू और इंटरनेशनल एयर ट्रैवल हुआ. इसके बाद चीन और फिर यूरोपियन यूनियन का नंबर था. सबसे चिंता की बात ये है कि ये सारे ट्रैवलर केवल 3 प्रतिशत हैं, जो अपनी सुविधा के लिए दुनिया में कार्बन उत्सर्जन बढ़ा रहे हैं.
एयर ट्रैवल कम करने में स्वीडन सबसे आगे
हवाई सफर कम हो सके, इसके लिए कई देश कोशिश करते रहे. स्वीडन इसमें सबसे आगे है. साल 2018 के आखिर में वहां एक टर्म आया- flygskam. स्वीडिश भाषा में इसका मतलब है फ्लाइट शेमिंग, यानी फ्लाइट लेने पर शर्मिंदा करना. छोटी दूरी की फ्लाइट लेने वालों को टोका जाने लगा कि उनकी वजह से दुनिया में तबाही मच रही है.
खुद एयरलाइन्स संभावित यात्रियों को बताने लगीं कि यहां से वहां तक जाने के लिए फ्लाइट की बजाए वे और कौन से ऑप्शन देख सकते हैं. कैंपेन का असर ऐसा हुआ कि घरेलू तो छोड़िए, सालभर के भीतर स्वीडन में इंटरनेशनल फ्लायर्स का नंबर भी धड़ाक से कम हो गया.इसके बाद यूरोप के कई देश छोटे-मोटे स्तर पर ऐसी पहल करने लगे. लेकिन फ्रांस ने इसमें बाजी मार ली, और पॉल्यूशन कम करने का फैसला लोगों पर न छोड़कर छोटी दूरी की फ्लाइट्स ही बैन कर दीं.