अरब देशों की हाल ही में गाजा को लेकर बैठक हुई थी. इसमें इजिप्ट ने इलाके की दोबारा बसाहट को एक योजना सुझाई. अरब लीग ने इसे मान भी लिया, लेकिन अमेरिका और इजरायल इसे नकार रहे हैं. गाजा फिलहाल वो घर बना हुआ है, जिसमें रहने वालों के अलावा बाकी सब घर में बदलाव और साज-सजावट का फैसला ले रहे हैं. जानिए, युद्ध से लगभग खत्म हो चुके गाजा को लेकर इजिप्ट से लेकर अमेरिका क्या चाहते हैं, और क्यों?
तीन दिनों पहले काहिरा में अरब लीग के 22 देशों के लीडर मिले. इस दौरान सबने गाजा पट्टी के रीकंस्ट्रक्शन का इजिप्ट का प्लान मंजूर कर लिया. दोबारा बसाहट के दौरान इसमें गाजावासियों को बाहर निकालने जैसी कोई बात नहीं है.
योजना तीन स्टेप्स में पूरी होगी
- छह महीनों तक चलने वाले पहले चरण में लगभग 3 अरब डॉलर का खर्च आएगा. इसमें मलबा हटाना, 2 लाख घर बनाना और साठ हजार इमारतों का रीकंस्ट्रक्शन होगा. ये सब काम फिलिस्तीनी अथॉरिटी के तहत होगा.
- दूसरे चरण में लगभग 20 अरब डॉलर का खर्च आ सकता है. इस दौरान चार लाख घर और बनाए जाएंगे, साथ में मलबा हटाया जाता रहेगा. इसके साथ ही पानी, टेलीकॉम, बिजली जैसी बेसिक लेकिन खत्म हो चुकी सर्विस शुरू होगी. साथ ही एयरपोर्ट और कमर्शियल पोर्ट भी बनेंगे.
- तीसरे फेज की लागत 30 अरब डॉलर के आसपास हो सकती है. एक्सपर्ट कमेटी नजर रखेगी कि जरूरतमंदों तक मानवीय मदद पहुंचती रहे और शासन ठीक से चले. संभव हो तो चुनाव भी हो सकते हैं. दूसरा और तीसरा फेज चार से पांच साल तक चल सकता है.
फंड कहां से आएगा
इजिप्ट समेत गल्फ देशों का सुझाव है कि इसके लिए यूनाइटेड नेशन्स समेत बाकी इंटरनेशनल संगठन, और विदेशी निजी इनवेस्टर सहायता करें. इस रीकंस्ट्रक्शन का मकसद, युद्ध में तबाह हो चुके गाजा में हमास को हटाकर दोबारा फिलिस्तीनी अथॉरिटी को लाना है.
फिर कहां रुकावट आई
इसमें हमास को खत्म करके गाजा को पूरी तरह फिलिस्तीनी अथॉरिटी को देने की बात है. इसपर कुछ देश तो राजी है, जबकि कुछ कट्टर हमास समर्थक हैं. खासकर इजरायल से बैर रखने वाले देश हमास की चिंगारी को बुझने नहीं देना चाहते ताकि तेल अवीव अस्थिर बना रहे. कुछ देशों का ये भी कहना है कि हमास रहे, या नहीं, इसका फैसला गाजा पट्टी के लोगों प छोड़ देना चाहिए. हमास ने खुद योजना पर मंजूरी दी लेकिन यह भी साफ कर दिया कि वो हथियार नहीं छोड़ेगा. साथ ही ये भी पक्का नहीं कि वो अथॉरिटी को स्वीकार कर सकेगा.
इजरायल इसके विरोध में
उसका आरोप है कि फिलिस्तीनी अथॉरिटी और यूएन की तरफ से गाजा में काम करने वाला संगठन यूएनआरडब्लूए आतंकवाद को कम करने में हमेशा फेल हुए. यहां तक कि तेल अवीव यूएनआरडब्लूए पर हमास से जुड़े होने का आरोप भी लगाता रहा और उसे अपने यहां आने से प्रतिबंधित कर दिया. ऐसे में दोबारा बसाहट का जिम्मा वो उसे नहीं देना चाहेगा.
तेल अवीव डोनाल्ड ट्रंप की प्लानिंग को ज्यादा सटीक बता रहा है
वहां के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू का कहना है कि गाजा पट्टी में शांति बनी रहे, इसके लिए हमास ही नहीं, फिलिस्तीनी अथॉरिटी को भी वहां आने से बचना होगा. इजिप्ट की योजना का विरोध वाइट हाउस से भी आ चुका. नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता ब्रायन ह्यूस का कहना है कि पूरा इलाका मलबे और विस्फोटकों से भरा हुआ है. ऐसे में लोगों को बाहर हटाए बिना यहां रीकंस्ट्रक्शन और खतरनाक हो सकता है.
अभी किस हाल में है गाजा पट्टी
जंग शुरू के बाद से अब तक गाजा में 48200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके. ज्यादातर गाजावासी एक से ज्यादा बार विस्थापित हो चुके. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इलाके की 70 फीसदी से ज्यादा इमारतें खंडहर हो चुकीं. हेल्थकेयर से लेकर बेसिक जरूरत जैसे साफ पानी तक का बंदोबस्त नहीं हो पा रहा.
ट्रंप क्या चाहते हैं
इसी खस्ताहाल और विवादित क्षेत्र को डोनाल्ड ट्रंप रियल एस्टेट की तरह विकसित करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने गाजा पट्टी को खरीदने तक की बात कर डाली. लेकिन फिलहाल ये इलाका इंटरनेशनल स्तर पर विवादित है, जिसकी खरीदी मुमकिन नहीं. अगर खरीदी हो भी जाए तो लगभग जर्जर हो चुके गाजा के इस प्रपोज्ड रीसैटलमेंट के लिए वहां रहने वालों को जगह खाली छोड़नी होगी. ट्रंप की योजना में एक हिस्सा गाजावासियों को कुछ वक्त के लिए देश से हटाने की भी है ताकि काम पूरे जोरों से चल सके.
लेकिन गाजा के लोग जाएंगे कहां
ट्रंप ने इसकी भी योजना बना रखी है. उन्होंने जॉर्डन और इजिप्ट को प्रस्ताव दिया कि वे गाजावासियों को अपने यहां रख लें, बदले में उन्हें सालाना कई बिलियन डॉलर मिलेंगे. हालांकि दोनों ही देशों ने ट्रंप का प्रस्ताव खारिज कर दिया. इसके लिए उनके पास अपनी वजहें हैं, जिसमें एक तो यही है कि कहीं शरणार्थियों के चलते उनके खुद के घर में भूचाल न आ जाए.
पहले भी दे चुके ऐसा प्रस्ताव
ट्रंप ने गाजा पट्टी को खरीदने का इरादा साल 2019 में भी जताया था. अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने कहा था कि फिलिस्तीनी लीडरशिप ठीक से काम नहीं कर रही, लिहाजा वे इस क्षेत्र को किसी को बेच दें तो अच्छा हो. ये बयान तब आया था, जब ट्रंप मिडिल ईस्ट में इजरायल की कई देशों से दोस्तियां करा रहे थे. इस सोच का काफी विरोध हुआ था. दिलचस्प बात ये है कि विरोधियों में गाजावासी कम और पड़ोसी मुल्क ज्यादा थे.
क्या रेफरेंडम हो सकता है
गाजा पट्टी में पुनर्निर्माण को लेकर अरब लीग से लेकर अमेरिका और इजरायल अपने-अपने फैसले सुना रहे हैं. लेकिन कोई भी इसमें जनमत संग्रह की बात नहीं कर रहा, न ही किसी की तरफ से ऐसा प्रस्ताव आया. दरअसल गाजा में हमास और फिलिस्तीनी अथॉरिटी में पहले से ठनी हुई है. इजरायल अलग हमलावर रहा. और ईरान अलग हित साधता रहा. ऐसे में युद्ध से लगभग तबाह इलाके में रेफरेंडम वैसे भी मुश्किल है, जबकि बाहरी शक्तियां इसके लिए फैसले ले रही हैं.