राज्यपाल की शक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'राज्यपालों को बिल पर फैसला लेने में देरी नहीं करनी चाहिए. उन पर बैठे रहने की बजाय जितनी जल्दी हो सके, फैसला लेना चाहिए.'
दरअसल, तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इसमें तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन को पेंडिंग पड़े 10 बिल को मंजूरी देने का निर्देश देने की मांग की गई थी. इस याचिका पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 200(1) में 'जितनी जल्दी हो सके' शब्द का अहम संवैधानिक मकसद है. इसका ध्यान रखा जाना चाहिए.'
क्या है पूरा मामला?
- तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि 10 बिल ऐसे हैं जो विधानसभा में पास हो चुके हैं, लेकिन राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए पेंडिंग हैं.
- सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि विधायक राज्यपाल की 'दया' पर निर्भर हैं. दवे ने दावा किया कि ये सब गैर-बीजेपी शासित राज्यों में हो रहा है.
- दवे ने हवाला दिया कि अनुच्छेद 200 के तहत अगर कोई बिल विधानसभा या फिर विधान परिषद (जिस राज्य में), दोनों सदनों में पास हो जाता है तो उसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है. इस पर राज्यपाल या तो उसे मंजूर कर लेते हैं या रोक लेते हैं या फिर राष्ट्रपति के पास भेज देते हैं.
- हालांकि, इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल के पास कोई भी बिल पेंडिंग नहीं है. तीन बिल को राज्यपाल ने मंजूरी दे दी है. जबकि दो बिल को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा गया है.
बिल को मंजूरी पर क्या कहता है संविधान?
- जिस तरह से केंद्रीय स्तर पर कोई भी बिल कानून की शक्ल तब लेता है जब उसपर राष्ट्रपति हस्ताक्षर करते हैं. इसी तरह से राज्य स्तर पर राज्यपाल की मंजूरी के बाद ही बिल कानून बनता है.
- यही बात अध्यादेश पर भी लागू होती है. अगर विधानसभा नहीं चल रही हो तो अध्यादेश लाकर कानून बनाया जा सकता है. लेकिन इसे भी राज्यपाल की मंजूरी जरूरी है.
- संविधान के तहत, राज्यपाल किसी बिल को रोक सकते हैं, उसको संशोधित करने को कह सकते हैं या फिर विधानसभा को दोबारा विचार करने को कह सकते हैं. लेकिन अगर विधानसभा में फिर वही बिल बिना किसी बदलाव के पास हो जाता है तो राज्यपाल के पास उस पर हस्ताक्षर करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता.
- लेकिन यहां भी एक पेंच है. संविधान ने राज्यपाल के हस्ताक्षर करने की कोई समय-सीमा तय नहीं की है.
कहां-कहां है राज्यपाल और सरकार में टकराव?
- तेलंगानाः राज्य में भारत राष्ट्र समिति की सरकार है और के. चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री हैं. यहां बिल पर हस्ताक्षर करने को लेकर टकराव है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया.
- महाराष्ट्रः पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने जून 2022 में तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने का आदेश दिया था. इसमें राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठे. मामला सुप्रीम कोर्ट में है और कुछ ही दिनों में इस पर फैसला आ सकता है.
- केरलः पिछले साल नवंबर में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान में ठन गई थी. वजह ये थी कि राज्य सरकार सभी स्टेट यूनिवर्सिटी के चांसलर पद से राज्यपाल को हटाने के लिए बिल लेकर आई थी.
- तमिलनाडुः इसी साल जनवरी में स्टालिन सरकार और गवर्नर आरएन रवि के बीच टकराव हो गया था. आरोप लगा कि सदन में अभिभाषण के दौरान राज्यपाल ने वो भाषण नहीं पढ़ा था जो राज्य सरकार ने लिखकर दिया था. राज्यपाल ने अपने हिसाब से इस भाषण में बदलाव कर लिए थे.
राज्यपाल क्यों जरूरी?
- संविधान के आर्टिकल 153 के तहत, हर राज्य का एक राज्यपाल होगा. लेकिन एक ही व्यक्ति दो या उससे ज्यादा राज्यों का राज्यपाल नहीं बन सकता. हालांकि, कुछ परिस्थितियों में अतिरिक्त प्रभार जरूर सौंपा जा सकता है.
- राज्यपाल एक संवैधानिक पद होता है और उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. राज्यपाल का कार्यकाल पांच साल के लिए होता है, लेकिन जब तक नया राज्यपाल नियुक्त नहीं हो जाता, तब तक पद पर बने रहते हैं.
- राज्यपाल वही बन सकता है जो भारत का नागरिक होगा और जिसने 35 साल की उम्र पार कर ली होगी. इसके अलावा वो किसी सदन, विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य नहीं होना चाहिए. अगर किसी सांसद या विधायक को राज्यपाल बनाया जाता है तो उसे सांसदी या विधायकी से इस्तीफा देना होता है.
- राष्ट्रपति सभी राज्यों में राज्यपाल नियुक्त करते हैं, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों में एडमिनिस्ट्रेटर (प्रशासक) या उप-राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है.
राज्यपाल के पास क्या-क्या शक्तियां होती हैं?
- राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करते हैं. मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद का गठन करते हैं. और मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करते हैं.
- राज्यपाल राज्य की सभी यूनिवर्सिटीज के चांसलर होते हैं. राज्य के एडवोकेट जनरल, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भी राज्यपाल करते हैं.
- राज्यपाल की अनुमति के बिना फाइनेंस बिल को विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता. कोई भी बिल राज्यपाल की अनुमति के बगैर कानून नहीं बनता. राज्यपाल चाहें तो उस बिल को रोक सकते हैं या लौटा सकते हैं या फिर राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं.
- लेकिन राज्यपाल की ओर से अगर बिल को वापस लौटा दिया जाता है और वही बिल बिना किसी संशोधन के विधानसभा से पास हो जाता है तो फिर राज्यपाल उस बिल को रोक नहीं सकते, उन्हें मंजूरी देनी ही पड़ती है.