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इस दुर्घटना के बाद अलग-अलग जिलों के अस्पतालों में शवों का पोस्टमार्टम किया जा रहा है. आगरा, एटा, हाथरस और अलीगढ़ में पोस्टमार्टम जारी है. न्यूज एजेंसी के मुताबिक, ज्यादातर लोगों की मौत का कारण दम घुटना बताया जा रहा है.
यूपी पुलिस ने सत्संग के आयोजकों के खिलाफ FIR दर्ज कर ली है. आरोप है कि इस कार्यक्रम में 80 हजार लोगों के जुटने की अनुमति थी, लेकिन ढाई लाख लोगों को जुटाया गया. हालांकि, FIR में भोले बाबा का नाम दर्ज नहीं है.
FIR में आरोप लगाया गया है कि आयोजकों ने अनुमति मांगते समय सत्संग में आने वाले भक्तों की असल संख्या छिपाई, ट्रैफिक मैनेजमेंट में मदद नहीं की और भगदड़ के बाद सबूत छिपाए.
हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब किसी धार्मिक कार्यक्रम में ऐसी भगदड़ मची हो. इससे पहले भी कई धार्मिक कार्यक्रमों में मची भगदड़ों में दर्जनों मौतें हो चुकी हैं. ढाई साल पहले जनवरी 2022 में जम्मू-कश्मीर के वैष्णो देवी मंदिर में मची भगदड़ में दर्जनभर लोग मारे गए थे.
कैसे मची भगदड़?
हाथरस को भोले बाबा की सत्संग के बाद मची भगदड़ में सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. FIR के मुताबिक, भगदड़ तब मची जब दोपहर दो बजे भोले बाबा अपनी गाड़ी से वहां से निकल रहे थे. जहां-जहां से गाड़ी गुजर रही थी, वहां-वहां से उनके अनुयायी धूल-मिट्टी उठाने लगे. देखते ही देखते लाखों की बेकाबू भीड़ नीचे बैठे या झुके भक्तों को कुचलने लगी और चीख-पुकार मच गई.
FIR में कहा गया है कि दूसरी तरफ लगभग तीन फीट गहरे खेतों में भरे पानी और कीचड़ में भागती भीड़ को आयोजन समिति और सेवादारों ने लाठी-डंडों से रोक दिया, जिसके कारण भीड़ बढ़ती गई और महिलाएं-बच्चे कुचलते गए.
मामले में सिंकदराराउ पुलिस थाने में बाबा के मुख्य सेवादार देवप्रकाश मधुकर और अन्य आयोजकों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है. FIR में भारतीय न्याय संहिता की धारा 105 (गैर-इरादतन हत्या), 110 (गैर-इरादतन हत्या की कोशिश), 126(2) (गलत तरीके से रोकना), 223 (सरकारी आदेश की अवज्ञा), 238 (सबूतों को छिपाना) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
धार्मिक कार्यक्रमों में भगदड़ का लंबा इतिहास
भारत में धार्मिक कार्यक्रमों में भगदड़ का लंबा इतिहास रहा है. जनवरी 2022 में ही वैष्णो देवी मंदिर में मची भगदड़ में दर्जनों लोगों की मौत हो गई थी.
इससे पहले जुलाई 2015 में आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में गोदावरी नदी के तट पर भगदड़ मचने के बाद 27 लोगों की मौत हो गई थी. यहां पर लोग गोदावरी महा पुष्करम नाम का त्योहार मनाने के लिए जुटे थे. मान्यता थी कि गोदावरी में नहाने पर सारे पाप धूल जाते हैं. इस कारण नदी में नहाने को लेकर भगदड़ मची और लोग मारे गए.
अक्टूबर 2013 में मध्य प्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ मंदिर में नवरात्रि के दौरान भगदड़ मचने पर 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. तब अफवाह फैल गई थी कि जिस पुल से भक्त गुजर रहे हैं, वो टूटने वाला है.
भारत में 2005 और 2008 में भगदड़ की तीन बड़ी घटनाएं हुई थीं. जनवरी 2005 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधारदेवी मंदिर में मची भगदड़ में 340 से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. ये सब तब हुआ जब महिलाएं और बच्चे नारियल के पानी के कारण फिसल गए और फिर अंदर आ रही भीड़ कुचलती चली गई.
सितंबर 2008 में राजस्थान के जोधपुर शहर के चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह के बाद मची भगदड़ में 250 से ज्यादा भक्तों की मौत हो गई थी. उसी साल अगस्त में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के नैना देवी मंदिर में चट्टानें फिसलने की अफवाहों पर भगदड़ मच गई थी, जिसमें 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
धार्मिक कार्यक्रमों में क्यों मचती है भगदड़?
साल 2013 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन ने एक स्टडी की थी. इसमें 1954 से 2012 के बीच हुई भगदड़ की 34 घटनाओं का विश्लेषण किया गया था.
इस स्टडी में बताया गया था कि भारत में भगदड़ के दौरान जितने लोग मारे गए, उनमें से 79% धार्मिक कार्यक्रमों में हुई भगदड़ के कारण हुई थी. जबकि, 18% मौतें दूसरी तरह के जुटाव और 3% राजनीतिक कार्यक्रमों में मची भगदड़ के कारण हुई थी. स्टडी में कहा गया था कि एक मामूली सी दुर्घटना, जानबूझकर किया गया कोई काम और एक छोटी सी अफवाह भी भगदड़ मचा सकती है.
धार्मिक आयोजनों में भगदड़ क्यों होती है? इस बारे में स्टडी में बताया गया था कि ज्यादातर धार्मिक आयोजन ग्रामीण इलाकों, पहाड़ी इलाकों या फिर नदी तटों के आसपास होते हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए जियोग्राफिकल रिस्क पैदा करते हैं. खड़ी ढलानें, फिसलन, कीचड़ और संकरे रास्ते बड़ा खतरा होते हैं. इनसे न सिर्फ सुरक्षा से समझौता होता है, बल्कि भगदड़ मचने की स्थिति में हालात बदतर हो जाते हैं.
इतना ही नहीं, धार्मिक आयोजनों में श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है. देर रात से लेकर अल-सुबह तक श्रद्धालु आते हैं, जिस कारण भीड़ और बढ़ती जाती है.
हाथरस में लापरवाही ही लापरवाही
हाथरस में भोले बाबा की सत्संग के दौरान खूब लापरवाही बरती गई. इन्हीं लापरवाहियों ने 121 जिंदगियों को लील लिया. बताया जा रहा है कि पूरे मैदान को समतल करके कम से कम 10 एकड़ जमीन को बराबर करना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. मैदान के चारों तरफ रास्ते भी नहीं बनाए गए. सिर्फ एक कच्चा रास्ता था.
सबसे बड़ी लापरवाही तो यही रही कि आयोजकों ने पुलिस को 80 हजार लोगों के आने की बात कहकर अनुमति ली थी, लेकिन यहां ढाई लाख से ज्यादा लोग पहुंचे. जिस रास्ते से बाबा का काफिला गुजरा, वहां बैरिकैडिंग भी नहीं थी और न ही एंट्री-एग्जिट प्वॉइंट बनाए गए थे.